Wednesday

09-07-2025 Vol 19

अदालती सुनवाई और चुनाव आयोग की जल्दबाजी

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एक तो सामाजिक संस्थाएं और राजनीतिक दलों ने अदालत में जाने में देरी की और ऊपर से सर्वोच्च अदालत ने सुनवाई के लिए तारीख तय करने की हड़बड़ी नहीं दिखाई। बिहार में मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण के मसले पर दायर जनहित याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में 10 जुलाई को सुनवाई होगी। वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने सोमवार को इस पर जल्दी सुनवाई का आग्रह किया लेकिन अदालत ने गुरुवार की तारीख तय की। अब सवाल है कि उस दिन क्या होगा? क्या अदालत सीधे चुनाव आयोग की ओर से चलाए जा रहे अभियान पर रोक लगा देगी? ऐसा लग रहा है कि चुनाव आयोग को पहले दिन से अंदाजा था कि इस मामले में याचिकाएं अदालत में दायर होंगी। इसलिए उसने गोली की रफ्तार से इस काम को आगे बढ़ाया है या कम से कम ऐसा दावा कर रही है कि बहुत तेज रफ्तार से काम हो रहा है।

सुप्रीम कोर्ट में जिस दिन याचिकाओं पर सुनवाई की तारीख तय हुई यानी सोमवार, सात जुलाई को उस दिन चुनाव आयोग ने दावा किया कि बिहार के तीन करोड़ यानी करीब 38 फीसदी मतदाताओं ने मतगणना प्रपत्र भर कर जमा करा दिया। सोचें, चुनाव आयोग ने सभी मतदाताओं तक मतगणना प्रपत्र पहुंचाने की अंतिम तारीख सात जुलाई तय की थी। पहले तीन जुलाई तक मतगणना प्रपत्र बांटना था। लेकिन उसमें देरी हो गई और चुनाव आयोग ने दावा किया कि सात जुलाई तक सभी जगह मतगणना प्रपत्र पहुंचा दिया गया। लेकिन उसी दिन चुनाव आयोग ने यह भी दावा किया कि तीन करोड़ लोगों ने प्रपत्र भर कर जमा करा दिया। इससे पहले चुनाव आयोग ने बिहार के अखबारों में बड़ा विज्ञापन देकर लोगों से कहा था कि अगर जरूरी दस्तावेज नहीं हैं तो कोई बात नहीं है, लोग फॉर्म जमा करा दें और जरूरी दस्तावेज बाद में जमा करा देंगे। इसके बाद कहा जा रहा है कि प्रपत्र जमा कराने की रफ्तार तेज हुई।

ऐसा लग रहा है कि चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से पहले ज्यादा से ज्यादा प्रपत्र जमा कराने की रणनीति अपनाई है। सोचें, अगर सात जुलाई तक 38 फीसदी प्रपत्र जमा हो चुके हैं तो 10 जुलाई की सुनवाई तक यानी अगले तीन दिन में और कितने प्रपत्र जमा हो जाएंगे? कोई हरानी नहीं होगी, अगर चुनाव आयोग की ओर से 10 जुलाई को अदालत में कहा जाए कि 60 फीसदी से ज्यादा लोगों ने मतगणना प्रपत्र जमा करा दिया है और इस आधार पर यह दावा किया जाए कि बिहार के मतदाताओं को कोई समस्या नहीं है और वे मतगणना प्रपत्र भर कर जमा करा रहे हैं। इसके बाद विपक्ष की ओर कहा जाएगा कि लाखों लोगों के नाम कट सकते हैं। क्या इस तर्क पर चुनाव आयोग प्रक्रिया रोकेगा या कह देगा कि अगर इतनी बड़ी संख्या में नाम कटेंगे तब देखा जाएगा! तभी हैरानी की बात है कि पार्टियों ने याचिका दायर करने में इतना समय क्यों लगाया? चुनाव आयोग ने 24 जून को इसकी घोषणा की थी और 25 जून से प्रक्रिया शुरू कर दी थी। उसी समय पता चल गया था कि यह बहुत अलोकतांत्रिक प्रक्रिया है और इसका मकसद मतदाता सूची से लोगों का नाम काटना है। इसके बावजूद किश्तों में याचिका दायर हुई। पहले एडीआर ने, फिर महुआ मोइत्रा ने, फिर राजद व पीयूसीएल ने, तब कांग्रेस, योगेंद्र यादव आदि ने याचिका दी। इसमें 10 दिन से ज्यादा समय निकल गया।

NI Political Desk

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