ब्रिक्स जैसे बहुपक्षीय मंचों पर सहमति नहीं बनते देख, अब चीन ने अपनी पहल कर दी है। चीन के सेंट्रल बैंक के गवर्नर पान गोंगशेंग ने एलान किया है कि अब दुनिया ‘बहु-ध्रुवीय अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक व्यवस्था’ में प्रवेश कर रही है।
जब दुनिया का ध्यान पश्चिम एशिया में भड़के युद्ध पर टिका है, चीन ने नई विश्व मौद्रिक व्यवस्था का अपना खाका पेश कर दिया है। कारोबार भुगतान को डॉलर से मुक्त करने की चर्चा कई वर्षों से है। मगर ब्रिक्स जैसे बहुपक्षीय मंचों पर इस बारे में सहमति नहीं बनते देख, अब चीन ने अपनी पहल कर दी है। अपनी कार्यशैली के मुताबिक अब तक वह में चुप्पी साधे हुए था। मगर बुधवार को चीन के सेंट्रल बैंक- पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना के गवर्नर पान गोंगशेंग ने दो-टूक कहा कि अब दुनिया ‘बहु-ध्रुवीय अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक व्यवस्था’ में प्रवेश कर रही है। इसमें रेनमिनबी (चीनी मुद्रा) अन्य कई मुद्राओं से प्रतिस्पर्धा में होगी। उन्होंने कहा कि अमेरिकी डॉलर का वर्चस्व दूसरे विश्व युद्ध के बाद कायम हुआ, जो अब तक बरकरार रहा है।
लेकिन “किसी एक मुद्रा पर अत्यधिक निर्भरता” हानिकारक है। तो ‘भविष्य में विश्व मौद्रिक व्यवस्था एक ऐसे रूप में विकसित होगी, जिसमें कई मुद्राएं सह-अस्तित्व में रहेंगी और वे एक दूसरे से होड़ करते हुए एक दूसरे के लिए अवरोध एवं संतुलन का काम करेंगी।’ जाहिरा तौर पर डॉनल्ड ट्रंप के ट्रेड वॉर के कारण चीन को डॉलर केंद्रित व्यवस्था को सीधी चुनौती देने का मौका मिला है। अमेरिकी बॉन्ड एवं अन्य प्रतिभूतियों की कीमत गिरी है। इस कारण विभिन्न देशों एवं निवेशकों को डॉलर में निवेश जोखिम भरा नजर आने लगा है।
वैसे तो यूक्रेन युद्ध शुरू होने के तुरंत बाद डॉलर के विकल्प पर सोचा जाने लगा था, मगर मौजूदा ट्रंप काल में ये प्रक्रिया काफी तेज हो गई है। इसका लाभ यूरो और रेनमिनबी जैसी मुद्राओं को मिला है। रेनमिनबी अब दुनिया में दूसरी सबसे बड़ी वित्तीय मुद्रा और तीसरी सबसे बड़ी भुगतान मुद्रा बन गई है। नतीजतन कई देशों ने अंतरराष्ट्रीय भुगतान के चीन के सिस्टम- सिप्स- को अपना लिया है। छह सेंट्रल बैंकों के बारे में तो ऐसा एलान बुधवार को ही हुआ। तो कुल मिलाकर दुनिया का वित्तीय ढांचा तेजी से बदल रहा है। डॉलर का वर्चस्व अमेरिकी ताकत एवं खुशहाली का प्रमुख आधार रहा है। मगर अब उसे गंभीर चुनौती मिली है।


