राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

लोकपाल नया जंजाल?

लोकपाल का रिकॉर्ड ऐसा है, जिससे उस पर हो रहे सरकारी खर्च के औचित्य पर सवाल खड़ा हो जाता है। यह लोगों के कमजोर भरोसे का ही संकेत है कि इस संस्था के पास आने वाली शिकायतों में भारी गिरावट आ चुकी है।

वैसे तो मांग बहुत पुरानी थी, लेकिन 2011 में अन्ना आंदोलन के दौरान लोकपाल की स्थापना को भारतीय व्यवस्था की हर मर्ज के इलाज के रूप में पेश किया गया। नैतिक और राजनीतिक बल के अभाव में तत्कालीन यूपीए सरकार इस आंदोलन के आगे झुकती चली गई। इस तरह ऐसे लोकपाल की स्थापना का कानून बना, जिसके जांच अधिकार के दायरे प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, सांसद और वरिष्ठ सरकारी अधिकारी सभी आते हैं। नरेंद्र मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद पहले तो इस संस्था की नियुक्ति में ना-नुकुर दिखाई, मगर आखिरकार 2019 में उसने सात सदस्यीय लोकपाल का गठन कर दिया। अब वही लोकपाल लग्जरी बीएमडब्लू कारों की खरीदारी का टेंडर निकालने के कारण विवाद के घेरे में है।

जो संस्था प्रशासन एवं राजनीति को स्वच्छ बनाने के लिए गठित हुई, उसके सदस्य खुद करदाताओं के धन पर अपनी विलासिता का इंतजाम करते दिख रहे हैं, तो लोकपाल आंदोलन के अनेक समर्थक भी आवाक हैं। वैसे गुजरे छह साल में लोकपाल का रिकॉर्ड भी वैसा ही है, जिस पर ध्यान जाने पर इस संस्था पर हो रहे कुल सरकारी खर्च के औचित्य पर स्वतः सवाल खड़ा हो जाता है। यह लोगों के टूटे भरोसे का ही संकेत है कि इस संस्था के पास दर्ज कराई जाने वाली शिकायतों की संख्या में भारी गिरावट आ चुकी है।

2021-22 और 2022-23 में लोकपाल के पास लगभग ढाई- ढाई हजार शिकायतें दर्ज हुई थीं, मगर उसके बाद के वर्षों में यह संख्या तीन सौ से कम रही है। स्थापना के बाद से अब तक इस संस्था के पास कुल 6,955 शिकायतें दर्ज कराई गई हैं, जिनमें से लोकपाल ने सिर्फ 289 में प्रारंभिक जांच का आदेश दिया और सिर्फ सात मामलों में अभियोग लगाने की इजाजत दी। इन आंकड़ों से खुद अंदाजा लग जाता है कि प्रशासन को भ्रष्टाचार मुक्त करने के मकसद में लोकपाल कितना सहायक हुआ है। हकीकत है कि भ्रष्टाचार को उजागर करने में इससे कई गुना ज्यादा कारगर आरटीआई कानून हुआ। मगर उस कानून के बावजूद इस ‘रामबाण’ के लिए आंदोलन चला, जिसका ऐसा विपरीत हश्र होता दिख रहा है!

Tags :

By NI Editorial

The Nayaindia editorial desk offers a platform for thought-provoking opinions, featuring news and articles rooted in the unique perspectives of its authors.

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *