जिस तरह अहमदाबाद हादसे को लेकर दुनिया भर के लोगों की निगाहें इसके असल कारणों के इंतज़ार पर टिकी हुई हैं तो यह कहना ग़लत नहीं होगा कि विमान निर्माता बोइंग इस बात पर पूरा ध्यान देगी कि उसके रसूख पर कोई आंच न आए। यहाँ इस बात का उल्लेख आवश्यक होगा कि बोइंग अपने विमानों में आने वाली तकनीकी कमियों के चलते काफ़ी समय से सवालों के घेरे में पहले से ही है।
अहमदाबाद में हुए दर्दनाक विमान हादसे के बाद हर किसी के मन में यह डर बैठ गया है कि भारत में विमान यात्रा सुरक्षित है या नहीं। विमान कंपनियों की बात करें तो वे आज भी विमान यात्रा को यात्रा का सबसे सुरक्षित साधन मानते हैं। परंतु वहीं यदि एविएशन के जानकारों की मानें तो उनकी राय अलग ही है। हादसा चाहे अहमदाबाद का हो या केदारनाथ में होने वाले एक के बाद एक हेलीकॉप्टर हादसों का हो, सवाल उठता है कि इन हादसों की जांच में क्या सत्य कभी बाहर आएगा? क्या जांच करने वाली समितियां या एजेंसियाँ हादसों के असली कारण को जनता के सामने लाएँगे? क्या ऐसे हादसों के दोषियों को सज़ा देकर एक ऐसी नज़ीर बनेगी जिससे ऐसे हादसों को टाला जा सके?
अहमदाबाद के विमान हादसे के बाद केंद्र सरकार ने एक उच्च स्तरीय जांच समिति का गठन किया है। इस समिति में कई बड़े मंत्रालयों के उच्च अधिकारी शामिल हैं। यहाँ सवाल उठता है कि इन सभी वरिष्ठ अधिकारियों में कितने अधिकारी ऐसे हैं जिन्हें नागरिक उड्डयन का अनुभव है? ऐसे कितने अधिकारी हैं जो कि एविएशन के हर पहलू की जानकारी रखते हैं? इस इस समिति की संरचना को देखते हैं, तो स्थिति तुरंत स्पष्ट हो जाती है। केंद्रीय गृह सचिव, ये एक नौकरशाह हैं जिन्हें नागरिक उड्डयन का कोई विशेष ज्ञान नहीं।
सचिव, नागरिक उड्डयन मंत्रालय ये अभी कुछ समय पहले ही मंत्रालय में नियुक्त किए गए हैं। इन्हें भी उड्डयन का कोई पूर्व अनुभव नहीं है। संयुक्त सचिव, गृह मंत्रालय, गुजरात राज्य गृह विभाग के प्रतिनिधि, राज्य आपदा प्रतिक्रिया विभाग के प्रतिनिधि, पुलिस आयुक्त, अहमदाबाद, इन सभी को भी नागरिक उड्डयन का अनुभव नहीं है। ऐसे में यह भी सवाल उठता है कि क्या ऐसे विमान हादसों की जांच के लिए भारत में कोई सक्षम एजेंसी है या नहीं?
वहीं जिस तरह अहमदाबाद हादसे को लेकर दुनिया भर के लोगों की निगाहें इसके असल कारणों के इंतज़ार पर टिकी हुई हैं तो यह कहना ग़लत नहीं होगा कि विमान निर्माता बोइंग इस बात पर पूरा ध्यान देगी कि उसके रसूख पर कोई आंच न आए। यहाँ इस बात का उल्लेख आवश्यक होगा कि बोइंग अपने विमानों में आने वाली तकनीकी कमियों के चलते काफ़ी समय से सवालों के घेरे में पहले से ही है। तो ऐसे में हादसे के पीछे बोइंग कंपनी की कमी के अलावा अन्य कारण खोजा जाएगा।
यह कारण विमान के रख-रखाव को लेकर भी हो सकता है। विमान में मिलावटी ईंधन का होना भी एक कारण हो सकता है। इसके अलावा विमान हादसे में मारे गए दोनों पायलटों पर भी गाज गिर सकती है। मानवीय गलती बता कर पायलटों पर गाज गिराना सबसे आसान लगता है क्योंकि जो व्यक्ति इस दुनिया में है ही नहीं वो अपना पक्ष कैसे रखेगा। बहरहाल इस हादसे की जांच में आगे क्या होता है ये तो आने वाला समय ही बताएगा।
विमान दुर्घटनाओं की श्रृंखला में उत्तराखण्ड में स्थित केदारनाथ धाम में एक के बाद एक दो हेलीकॉप्टर दुर्घटनाएँ हुई। रुद्रप्रयाग में हेलीकॉप्टर दुर्घटना धार्मिक पर्यटन, विशेष रूप से केदारनाथ जैसे ऊंचाई वाले और भीड़भाड़ वाले तीर्थस्थलों में उपयोग होने वाले हेलीकॉप्टरों की सुरक्षा को लेकर बढ़ती चिंता को उजागर करती है। पीक सीजन के दौरान अधिक उड़ानें भरने का दबाव अक्सर सुरक्षा प्रोटोकॉल से समझौता करने की ओर ले जाता है। कई ऑपरेटर लाइसेंस प्राप्त इंजीनियरों द्वारा अनिवार्य पोस्ट-फ्लाइट निरीक्षणों के बजाय तेज़ी से उड़ानें दोहराने को प्राथमिकता देते हैं।
यह खास तौर पर चिंताजनक है, क्योंकि इस क्षेत्र में कठिन भूभाग और अप्रत्याशित मौसम की स्थिति होती है। ऐसे में न सिर्फ अनुभवी इंजीनियरों द्वारा इन हेलीकॉप्टरों की जांच की जानी चाहिए बल्कि ऐसे क्षेत्र में उड़ान भरने के लिए भी अनुभवी पायलटों की नियुक्ति की जानी चाहिए। इन बुनियादी पहलुओं को कभी भी नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए। इन ऑपरेशनों में डीजीसीए द्वारा सख्त नियामक निगरानी की कमी जोखिम को और बढ़ा देती है। कई ऑपरेटर ्लेड, हाइड्रोलिक सिस्टम और इंजन की गुणवत्ता जैसे महत्वपूर्ण हिस्सों की हर उड़ान के बाद कड़ाई से जांच होनी चाहिए, न कि दिन में केवल एक बार। जब इन निरीक्षणों को छोड़ दिया जाता है या जल्दबाज़ी में किया जाता है, तो हर विमान उड़ता हुआ खतरा बन जाता है।
भारत में विमान परिचालन की गुणवत्ता और नियमों के अनुपालन की ज़िम्मेदारी डीजीसीए की होती है। ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ डीजीसीए ने किसी किसी ऑपरेटर को मामूली सी गलती के लिए कड़ी से कड़ी सज़ा दी है तो वहीं दूसरी और किसी अन्य ऑपरेटर को बड़ी से बड़ी गलती के चलते मामूली सी चेतावनी देकर ही छोड़ दिया है। डीजीसीए में बढ़ते भ्रष्टाचार को लेकर कई बार इसी कॉलम में पहले भी लिखा जा चुका है। लेकिन डीजीसीए नींद से जागने का नाम नहीं लेता।
ऐसे में बढ़ते हुए हादसों के चलते डीजीसीए को तुरंत सख्त सुरक्षा अनुपालन लागू करना चाहिए, जिसमें निरीक्षणों का डिजिटल लॉगिंग, उड़ान संचालन की रीयल-टाइम निगरानी और गैर-अनुपालन पर उड़ान रद्द करने की सजा शामिल हो। इसके अलावा, उत्तराखंड या अन्य राज्य सरकारों को भी प्रतिदिन की उड़ानों की संख्या सीमित करनी चाहिए। तीर्थयात्रियों या साधारण यात्रियों की सुरक्षा के साथ कभी भी लाभ के लिए समझौता नहीं करना चाहिए। उम्मीद है कि केंद्र व राज्य सरकार विमान यात्राओं में होने वाली लापरवाहियों को गंभीरता से लेगी और दोषियों को कड़ी से कड़ी सज़ा देगी।