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सर्व कल्याणकारी सूर्यदेव

पंचांग के अनुसार स्वच्छता, शुद्धता और पावनता की महत्ता से संबंधित चार दिवसीय कार्तिक छठ महोत्सव की शुरुआत 2025 में 25 अक्टूबर 2025 शनिवार को नहाय-खाय के साथ होगा। 26 अक्टूबर 2025 रविवार को विधि-विधान पूर्वक लोहंडा, खरना का आयोजन होगा। 27 अक्टूबर 2025 सोमवार को सूर्यास्तगामी भगवान सूर्य को संध्याकालीन अर्घ्य दिया जाएगा। डूबते सूर्य को शाम का अर्ध्य शाम 5:10 बजे से शाम 5:58 बजे तक देना बेहद शुभ होगा। 28 अक्टूबर 2025 मंगलवार को उदीयमान सूर्य को प्रातःकालीन अर्घ्य अपर्ण करेंगे।

छठ महोत्सव पर विशेष

अति प्राचीन काल से पूजनीय सूर्य प्रत्यक्ष देवता हैं, जो सृष्टि को जीवन, प्रकाश और ऊर्जा प्रदान करते हैं। वे अपने सर्वोच्च दिव्य स्वरूप में इस जगत को प्रत्यक्ष दिखाई देते हैं। ऋग्वेद में सूर्य को भगवान का नेत्र कहा गया है। भगवान का अर्थ है- भूमि, गगन, वायु, आकाश अर्थात अन्तरिक्ष और नीर का संयोग। सूर्यदेव को पंच महाभूतों के प्रकाशक होने के कारण भगवान का नेत्र कहा गया है। संपूर्ण जगत के कर्ता-धर्ता सूर्य के कारण ही जीवों में प्राणतत्व आता है। कृषि उपज अन्न, फल, वनस्पति व सब्जियों की महत्ता भी इनके कारण ही बनी हुई है। सूर्य राष्ट्र का भरण-पोषण करने वाला है। इसमें बढ़ाने की शक्ति है। इससे ही जगत को सुन्दर रूप मिला है तथा राष्ट्र को घी-दूध से भरपूर करता है। सूर्य को कोई लांघ नहीं सकता है। शरीर में प्राण-अपान को जोड़ने वाला भी सूर्य ही है।

पृथ्वी पर जीवन के लिए आवश्यक प्रकाश और ऊष्मा प्रदान करने वाले सूर्य ही संपूर्ण ब्रह्मांड की उत्पत्ति, पालन और संहार के कारण हैं। सम्पूर्ण जगत के नेत्र सूर्य के द्वारा दिवा- रात्रि का सृजन होता है। इनसे अधिक निरंतर साथ रहने वाला और कोई देवता नहीं है। इनके उदय होने पर ही संपूर्ण जगत का उदय होता है, और इनके अस्त होने पर समस्त जगत सो जाता है। सूर्य ही कालचक्र के प्रणेता है। सूर्य से ही दिन -रात, पल, मास, पक्ष तथा संवत आदि का विभाजन होता है। संपूर्ण संसार के प्रकाशक सूर्य के बिना अंधकार के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। सूर्य आत्माकारक ग्रह है, यह राज्य सुख, सत्ता, ऐश्वर्य, वैभव, अधिकार आदि प्रदान करता है। यह सौरमंडल का प्रथम ग्रह है। सूर्य सम्पूर्ण सौर जगत का आधार स्तम्भ है।

सारा सौर मंडल, ग्रह, उपग्रह, नक्षत्र आदि सभी सूर्य से ही शक्ति पाकर इसके इर्द- गिर्द घूमा करते हैं। परमात्मा ने सूर्य को जगत में प्रकाश करने, संचालन करने, अपने तेज से शरीर में ज्योति प्रदान करने, तथा जठराग्नि के रूप में आमाशय में अन्न को पचाने का कार्य सौंपा है। ज्योतिष मान्यतानुसार यह सिंह राशि का स्वामी है। सूर्य को राजा का पद प्राप्त है। वे नवग्रहों के राजा हैं। मान्यतानुसार सूर्य की उपासना से व्यक्ति को आत्मविश्वास व तेज, बल, यश और धन की प्राप्ति होती है और रोगों से मुक्ति मिलती है। सूर्य को नित्य प्रातः जल चढ़ाना शुभ व फलदायी है। प्रतिदिन सूर्य को जल चढ़ाने से दिल से जुड़ी बीमारियों में स्वास्थ्य लाभ मिलने की मान्यता के कारण लोग नित्य स्नान कर सूर्य की ओर मुख कर जलार्पण करते हैं। पौराणिक मान्यतानुसार चैत्र व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के षष्ठी तिथि को सूर्योपासना का मुख्य दिन माना जाता है। झारखण्ड, बिहार, पश्चिम बंगाल, पूर्वी उत्तर प्रदेश, नेपाल आदि क्षेत्रों में इस दिन सूर्योपासना की एक विशेष पद्धति सदियों से प्रचलित है। कार्तिक अथवा चैत्र शुक्ल की चतुर्थी से षष्ठी -सप्तमी तक चलने वाले इस अनुपम लोकपर्व को छठ पर्व, छइठ या षष्‍ठी पूजा के नाम से जाना जाता है। सूर्योपासना के लिए स्तोत्रों का पाठ, मंत्र जाप और सूर्य यंत्र की स्थापना जैसी विधियां प्रचलित हैं।

भारतीय पंचांग के अनुसार स्वच्छता, शुद्धता और पावनता की महत्ता से संबंधित चार दिवसीय कार्तिक छठ महोत्सव की शुरुआत 2025 में 25 अक्टूबर 2025 शनिवार को नहाय-खाय के साथ होगा। 26 अक्टूबर 2025 रविवार को विधि-विधान पूर्वक लोहंडा, खरना का आयोजन होगा। 27 अक्टूबर 2025 सोमवार को सूर्यास्तगामी भगवान सूर्य को संध्याकालीन अर्घ्य दिया जाएगा। डूबते सूर्य को शाम का अर्ध्य शाम 5:10 बजे से शाम 5:58 बजे तक देना बेहद शुभ होगा। 28 अक्टूबर 2025 मंगलवार को उदीयमान सूर्य को प्रातःकालीन अर्घ्य अपर्ण करेंगे। सुबह के अर्घ्य के लिए प्रात: 5:33 बजे से सुबह 6:30 बजे तक शुभ मुहूर्त बताया गया है।

वेदों में अंकित सूर्य की स्तुतियों, पौराणिक ग्रंथों में प्राप्य सूर्य की उत्पत्ति, प्रभाव, स्तुति, मंत्र आदि से स्पष्ट होता है कि समस्त चराचर जगत की आत्मा सूर्य की उपासना भारत में अत्यंत प्राचीन काल से ही प्रचलित है। वेद में सूर्य से संबंधित अनेक सूक्त व मंत्र अंकित हैं। पौराणिक व ज्योतिषीय ग्रंथों में भी ज्योतिष शास्त्र के नवग्रहों के राजा सूर्यदेव की उत्पत्ति, महता, उपासना के लाभ आदि के संबंध में अनेक आख्यान, प्रसंग व कथाएं निबद्ध हैं। ऋग्वेद में सूर्य से संबंधित अनेक सूत्र व मंत्र अंकित होसे स्पष्ट है कि ऋग्वेद के देवताओं में सूर्यदेव का महत्वपूर्ण स्थान है। सूर्य का शाब्दिक अर्थ है -सर्व प्रेरक। यह सर्व प्रकाशक, सर्व प्रवर्तक होने से सर्व कल्याणकारी है। यजुर्वेद ने चक्षो सूर्यो जायत कह कर सूर्य को भगवान का नेत्र माना है। ऋग्वेद के तीसरे मंडल में अंकित प्रसिद्ध गायत्री मंत्र सूर्यपरक ही है। अथर्ववेद 11/4 के अनुसार पृथ्वी पर द्युलोक का प्राण सूर्य किरणों द्वारा ही आता है। अंतरिक्ष का प्राण वृष्टि द्वारा पृथ्वी  पर पहुंचता है। वृष्टि का कारण सूर्य ही है।

अथर्ववेद आगे कहता है- सूर्य ही दृढ़ता व आर्यत्व का प्रतीक है। ऐतरेय उपनिषद प्रथम खण्ड के अनुसार इसी हेतु प्रलयावस्था में परमात्मा ने ईक्षण (तप) किया तो सर्वप्रथम सूर्यलोक को ही बनाया। अर्थात ईश्वर ने अम्भस् ,मरीची, मर और आप-इन चार लोकों को रचा। सूर्य अपनी किरणों से जलों को खींचता है, इसलिए वही अम्भस् है। मरीचि किरणों को कहते हैं। उनका आना- जाना आकाश द्वारा ही होता है इसलिए मरीचि से अंतरिक्ष अभिप्रेत है। मरणधर्मा प्राणियों के रहने से मर नाम पृथ्वी का है। आपः -नीचे की ओर बहने की प्रवृत्ति होने से जल को पृथ्वी के नीचे होने की बात कही गई है। पृथ्वी और सूर्य के मध्य में अंतरिक्ष का होना स्वाभाविक है। छान्दोग्य उपनिषद में सूर्य को प्रणव निरूपित करते हुए उनकी ध्यान साधना से पुत्र प्राप्ति का लाभ बताया गया है।

ब्रह्मवैवर्त पुराण सूर्य को परमात्मा स्वरूप मानता है। सूर्योपनिषद में सूर्य को ही संपूर्ण जगत की उत्पत्ति का एक मात्र कारण, संपूर्ण जगत की आत्मा तथा ब्रह्म निरुपित करते हुए कहा गया है कि संपूर्ण जगत की सृष्टि तथा उसका पालन सूर्य ही करते है। सूर्य ही संपूर्ण जगत की अंतरात्मा हैं। मार्कंडेय पुराण के अनुसार पहले यह संपूर्ण जगत प्रकाश रहित था। उस गहन अंधकार काल में कमलयोनि ब्रह्मा प्रकट हुए। उनके मुख से सर्वप्रथम ॐ शब्द निकला, जो सूर्य का तेजरुपी सूक्ष्म रूप था। तत्पश्चात ब्रह्मा के चार मुखों से चार वेद प्रकट हुए, जो ॐ के तेज में एकाकार हो गए। यह वैदिक तेज ही आदित्य है, जो विश्व का अविनाशी कारण है। यह वेद स्वरूप सूर्य ही सृष्टि की उत्पत्ति, पालन व संहार के कारण हैं। ब्रह्मा की प्रार्थना पर सूर्य ने अपने महातेज को समेट कर स्वल्प तेज को ही धारण किया। ब्रह्मा के शरीर से उत्पन्न हुए सूर्य आदि देव हैं और आकाश में चमकते हैं। लेकिन दूसरे सूर्य हैं मरीचि के पुत्र कश्यप और उनकी पत्नी अदिति से उत्पन्न देवता संज्ञाधारी बारह आदित्यों में एक। सृष्टि रचना के समय ब्रह्मा के पुत्र मरीचि हुए, जिनके पुत्र ऋषि कश्यप का विवाह अदिति से हुआ।

अदिति ने घोर तप द्वारा भगवान सूर्य को प्रसन्न किया। सूर्य ने उसकी इच्छा पूर्ति के लिए सुषुम्ना नाम की किरण से उसके गर्भ में प्रवेश किया। गर्भावस्था में भी अदिति को चांद्रायण जैसे कठिन व्रतों का पालन करते देख ऋषि राज कश्यप ने क्रोधित होकर अदिति से कहा- तुम इस तरह उपवास रख कर गर्भस्थ शिशु को मारने की इच्छा रखती हो क्या? यह सुनकर अदिति ने गर्भ के बालक को उदर से बाहर कर दिया, जो अपने अत्यंत दिव्य तेज से प्रज्वल्लित हो रहा था। भगवान सूर्य शिशु रूप में उस गर्भ से प्रगट हुए। प्रजापति कश्यप ने अपने उस पुत्र को विवस्वान नाम दिया। अदिति को मारिचम अंडम भी कहा जाता था, इसलिए यह बालक मार्तंड नाम से प्रसिद्ध हुआ। ब्रह्मपुराण में अदिति के गर्भ से जन्मे सूर्य के अंश को विवस्वान कहा गया है। देवासुर संग्राम में सभी दैत्य विवस्वान के तेज़ को देखकर भाग खड़े हुए थे।

पौराणिक, ऐतिहासिक विवरणियों के अनुसार वैदिक मंत्रों के माध्यम से सूर्योपासना का प्रचलन भारत में अत्यंत प्राचीन काल से रही है, लेकिन वैदिक सत्य ज्ञान से दूर होने से समाज में एकेश्वरवाद के स्थान पर उपजी बहुदेववाद की प्रथा के प्रारंभ होने पर मूर्ति पूजा का प्रचलन हुआ, तो अन्य देवों की भांति यत्र- तत्र सूर्य मंदिरों का भी निर्माण हुआ। भविष्य पुराण में ब्रह्मा और विष्णु के मध्य एक संवाद में सूर्य पूजा एवं सूर्य मंदिर निर्माण का महत्व अंकित है। ब्रह्म पुराण के अनुसार ऋषि दुर्वासा के श्राप से कुष्ठ रोग से पीड़ित श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब ने सूर्य की आराधना करके इस रोग से मुक्ति पाई थी। भारत में अति प्राचीन काल में निर्मित सूर्य के कई मंदिर आज विश्व प्रसिद्ध निर्माणों में गिनी जाती हैं।

भारत के उड़ीसा प्रान्त में अवस्थित कोणार्क का सूर्य मंदिर, गुजरात के मेहसाना जिले में पुष्पावती नदी के किनारे प्रतिष्ठित मोढेरा सूर्य मंदिर, जम्मू और कश्मीर प्रदेश के अनंतनाग ज़िले के मट्टन नगर के समीप स्थित ललितादित्य मुक्तपीड के राजकाल में बना सूर्य देवता के मार्तंड रूप को समर्पित मंदिर, बिहार के भोजपुर जिले के बेलाउर ग्राम के पश्चिमी एवं दक्षिणी छोर पर अवस्थित बेलाउर सूर्य मंदिर, श्रीकृष्ण के पौत्र राजा साम्ब द्वारा भारत के बावन स्थानों पर स्थापित बावन सूर्यपीठों में से नालंदा में अवस्थित दो सूर्यपीठों- सिलाव प्रखंड का बड़गांव और एकंगरसराय प्रखंड का औंगारी धाम आदि स्थलों के प्राचीन सूर्य मंदिर अत्यंत प्रसिद्ध हैं। वैदिक, पौराणिक ग्रंथों के साथ ही आयुर्वेदिक, ज्योतिषीय, हस्तरेखा से संबंधित ग्रंथों में भी सूर्य का शास्त्रोक्त महत्व के प्रसंग अनेकशः अंकित हैं।

By अशोक 'प्रवृद्ध'

सनातन धर्मं और वैद-पुराण ग्रंथों के गंभीर अध्ययनकर्ता और लेखक। धर्मं-कर्म, तीज-त्यौहार, लोकपरंपराओं पर लिखने की धुन में नया इंडिया में लगातार बहुत लेखन।

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