क्वॉड के गठन का मकसद बेशक चीन का मुकाबला करना रहा हो, मगर कभी ये मकसद दो-टूक घोषित नहीं किया गया। इसीलिए ये हकीकत कायम है कि इस मंच पर बातें तो खूब होती हैं, मगर वे आगे नहीं बढ़ती हैं।
क्वाड्रैंगुलर सिक्युरिटी डायलॉग (क्वॉड) के विदेश मंत्रियों की बैठक में पहलगाम हमले की निंदा की गई। इसे अंजाम देने वाले आतंकवादियों, उनके संगठनकर्ताओं, और उन्हें आर्थिक मदद देने वालों को दंडित करने का आह्वान किया गया। मगर ये आतंकवादी कौन हैं और उनकी पीठ पर किसका हाथ है, इसका कोई उल्लेख भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के इस समूह के बयान में नहीं हुआ। यानी पाकिस्तान का नाम नहीं आया। ना ही ऑपरेशन सिंदूर का उल्लेख हुआ। इसके बदले सीमापार आतंकवाद सहित दहशतगर्दी के सभी रूपों की निंदा की गई। याद करें, तो पहलगाम में आतंकवादी हमले के तुरंत बाद तमाम देशों ने लगभग इसी शब्दावली में उसकी निंदा की थी।
अब अगर उतनी ही बात क्वॉड ने कही है, तो भारत के लिए यह कितने संतोष की बात होनी चाहिए, यह विचारणीय प्रश्न है। भारतीय विदेश नीति एक बार फिर से पाकिस्तान केंद्रित हो गई है- यानी हर मंच पर पाकिस्तान की निंदा और विश्व मंचों पर उसे अलग-थलग कराना भारतीय विदेश नीति का सर्व-प्रमुख मकसद बन गया दिखता है। मगर परस्पर विरोधी उद्देश्यों के लिए कार्यरत शंघाई सहयोग संगठन से लेकर क्वॉड तक इसमें भारत को कामयाबी मिलती नहीं दिखी है। क्वॉड की बैठक में चीन की आलोचना भी परोक्ष रूप से की गई। क्वॉड ने बगैर चीन का नाम लिए रेयर अर्थ खनिजों को ‘हथियार बनाने’ की निंदा की और इस बारे में एकाधिकार तोड़ने का इरादा जताया।
मगर इसकी कोई कार्य- योजना घोषित नहीं हुई है। मसलन, कौन इसमें पहल करेगा, निवेश कौन करेगा और कैसे वो सूरत लाई जाएगी, जिसमें चीन इन खनिजों का निर्यात रोक कर बाकी दुनिया में आधुनिक तकनीक से जुड़े कारोबार को बाधित ना कर दे। इसी तरह बिना चीन का नाम लिए दक्षिण और पूर्वी चीन सागर में मुक्त नौवहन की वकालत की गई। आरंभ से ही क्वॉड की यह दिक्कत रही है। उसके गठन का मकसद बेशक चीन का मुकाबला करना रहा हो, मगर कभी ये मकसद दो-टूक घोषित नहीं किया गया। इसीलिए ये हकीकत कायम है कि इस मंच पर बातें तो खूब होती हैं, मगर वे आगे नहीं बढ़ती हैं।