रूस की शर्तों के मुताबिक ट्रंप ने समझौता किया, तो यूक्रेन का भूगोल बदल जाएगा। साथ ही यूरोप विश्व शक्ति संतुलन में अप्रसांगिक हो जाएगा। वैसा समझौता करना असल में दो बड़ी ताकतों का अपने-अपने प्रभावों क्षेत्रों का बंटवारा करना होगा।
आज दुनिया की निगाहें डॉनल्ड ट्रंप और व्लादीमीर पुतिन की शिखर वार्ता पर हैं। क्या इससे यूक्रेन युद्ध रोकने की संभावना बनेगी? ऐसा हुआ, तो वह किन शर्तों पर होगा? शिखर वार्ता के लिए रूसी राष्ट्रपति को अलास्का आमंत्रित करने के ट्रंप के फैसले ने इन प्रश्नों पर उम्मीद और अंदेशे दोनों पैदा किए हैँ। सबसे ज्यादा आशंकाग्रस्त यूक्रेन और यूरोपीय देशों के नेता हैं, जिन्हें लगता है कि ट्रंप ने रूस को अलग-थलग करने के उनके प्रयासों पर पानी फेर दिया है। अब रूस की शर्तों के मुताबिक उन्होंने समझौता भी कर लिया, तो यूक्रेन का भूगोल निर्णायक रूप से बदल जाएगा। साथ ही यूरोप विश्व शक्ति संतुलन में अप्रसांगिक हो जाएगा।
ट्रंप का पुतिन से वैसा समझौता करना एक तरह से दो बड़ी ताकतों का अपने-अपने प्रभावों क्षेत्रों का बंटवारा करना होगा। फिर यही पैटर्न चीन के आसपास और अन्य क्षेत्रों में भी दोहराया जा सकता है। इसीलिए यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदीमीर जेलेन्स्की और तमाम यूरोपीय नेताओं ने बुधवार को अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ ऑनलाइन मीटिंग की। इसमें यूरोप ने अपनी शर्तें बताईं। यूरोपीय नेता चाहते हैं कि रूस को तुरंत बिना शर्त युद्धविराम पर राजी कराया जाए। जेलेन्स्की अड़े हुए हैं कि वे यूक्रेन की जमीन के किसी हिस्से पर दावा नहीं छोड़ेंगे।
साथ ही वे सुरक्षा गारंटी भी चाहते हैं, जिसका परोक्ष अर्थ है यूक्रेन को नाटो का संरक्षण मिलना। ये शर्तें पुतिन को मंजूर होंगी, इसकी कोई संभावना नहीं है। बहरहाल, ऑनलाइन मीटिंग के बाद ट्रंप के इस बयान से यूरोप को राहत मिली है कि पुतिन युद्ध रोकने पर राजी नहीं हुए, तो उन्हें इसका गंभीर परिणाम भुगतना होगा। मगर ऐसे सख्त बयान के शिखर वार्ता पर संभावित परिणाम को लेकर कई कयासों को बल मिल गया है। अटकलें लगाई जा रही हैं कि वार्ता नाकाम रही, तो उसके क्या नतीजे होंगे। अतीत में बिना प्रगति के वार्ताओं के खत्म होने के बाद अक्सर देखा गया कि रूस ने हमले और तेज कर दिए। तो क्या आज शांति की राह निकलेगी या युद्ध की आग में और घी पड़ेगा, निगाहें यह देखने पर टिकी हुई हैं।