आवश्यक है कि विदेश नीति में किसी परिवर्तन से पहले उसके सभी आयामों पर गंभीरता से विचार हो। सिर्फ अमेरिका को सख्ती का संकेत देने के लिए अथवा जज्बाती प्रतिक्रिया में ऐसा करना भारत के हित में नहीं होगा।
अमेरिका से बिगड़ते संबंधों के साथ भारत में अचानक चीन से रिश्ते सुधारने और रूस से संबंध और गहरा करने की जरूरत पर अधिक जोर दिया जाने लगा है। संकेत हैं कि भारत सरकार ने इससे संबंधित प्रक्रियाओं को तेज कर दिया है। उधर, ऐसा लगता है कि चीन ने इस नई परिस्थिति में अपने लिए अवसर देखा है। भारत और अमेरिका के बीच दरार चौड़ी हो जाए, तो चीन के लिए यह अच्छी स्थिति होगी। यह अमेरिका की चीन को घेरने की रणनीति के लिए एक झटका होगा, जिसे स्वरूप देने में गुजरे डेढ़ दशक में अमेरिका ने अपनी काफी ऊर्जा लगाई है। तो खबर है कि चीन ने भारत को उर्वरकों के निर्यात रोकने की नीति में ढिलाई दे दी है और कथित रबर डंपिंग के मामले में भारत के खिलाफ जांच रोक दी है।
इधर भारत ने दोनों देशों के बीच सीधी विमान सेवा शुरू करने का ठोस संकेत दिया है। इसी बीच खबर आई है कि चीन के विदेश मंत्री वांग यी 18 अगस्त को भारत आएंगे। वांग सीमा विवाद पर वार्ता के लिए चीन के विशेष प्रतिनिधि भी हैं। नई दिल्ली में भारत के विशेष प्रतिनिधि अजित डोवल से उनकी बातचीत होगी। साथ ही एलान हुआ है कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर 21 अगस्त को मास्को जाएंगे। ये तमाम कूटनीतिक गतिविधियां शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तय चीन यात्रा से पहले हो रही हैं।
रूस और चीन दोनों भारत के साथ अपनी त्रिपक्षीय वार्ता का क्रम फिर शुरू करने पर जोर दे रहे हैं। इसलिए ताजा गतिविधियों को उस प्रयास से जोड़ कर देखा जा रहा है। भारत इसके लिए तैयार होता है या नहीं, यह देखने की बात होगी। ऐसा हुआ, तो वह भारत की विदेश नीति में बड़े परिवर्तन का संकेत होगा? स्पष्टतः उसके दूरगामी परिणाम होंगे। इसलिए आवश्यक है कि ऐसे किसी परिवर्तन से पहले उसके सभी आयामों पर गंभीरता से विचार किया जाए। सिर्फ अमेरिका को सख्ती का संकेत देने के लिए अथवा जज्बाती प्रतिक्रिया के तहत ऐसा करना भारत के हित में नहीं होगा।