नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को उसकी सीमा बताई। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रपति और राज्यपालों के विधानसभा से पास विधेयकों को मंजूरी देने के लिए समय सीमा तय करने के फैसले दाखिल याचिका पर सुनवाई हुई। इस सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट संविधान को फिर से नहीं लिख सकता है। पहले भी सरकार कह चुकी है कि संविधान संशोधन का अधिकार न्यायपालिका के पास नहीं है।
चीफ जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने पूछा, ‘जब खुद राष्ट्रपति ने राय मांगी है तो इसमें दिक्कत क्या है? क्या आप वाकई इसे चुनौती देना चाहते हैं’? बेंच ने कहा कि कोर्ट इस मामले में सलाहकारी अधिकार क्षेत्र में बैठी है, यानी अभी यह कोई अंतिम आदेश नहीं, बल्कि केवल राय देने की प्रक्रिया है।
केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने सुप्रीम कोर्ट के अप्रैल 2025 वाले फैसले पर सवालिया लहजे में कहा कि क्या अदालत संविधान को फिर से लिख सकती है? उन्होंने कहा कि कोर्ट ने राज्यपाल और राष्ट्रपति को आम प्रशासनिक अधिकारी की तरह देखा, जबकि वे संवैधानिक पद हैं। केंद्र की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, ‘संविधान सभा ने जान बूझकर राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए कोई समय सीमा नहीं रखी थी’। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए विधेयकों को मंजूरी देने की तीन महीने की समय सीमा तय की है। तमिलनाडु के विधेयकों को लंबित रखने के मामले में अदालत ने यह फैसला सुनाया था।
मंगलवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तमिलनाडु मामले में दखल इसलिए देना पड़ा क्योंकि राज्यपाल लंबे समय तक विधेयकों को रोके रहे और लोकतांत्रिक प्रक्रिया रुक गई। चीफ जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदुरकर की बेंच में मंगलवार को केरल और तमिलनाडु सरकार की शुरुआती आपत्तियों पर सुनवाई हुई। दोनों राज्यों का उनका कहना है कि राष्ट्रपति ने जो सवाल उठाए हैं, उनमें से ज्यादातर का जवाब पहले ही तमिलनाडु वाले फैसले में मिल चुका है। गौरतलब है कि अप्रैल के फैसले पर राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 142 के तहत रेफरेंस भेजा है।