मुद्रास्फीति दर का घटना तब मांग को प्रोत्साहित करता है, जब आम आमदनी भी बढ़े। ऐसा होने का संकेत नहीं है। फिर अंतरराष्ट्रीय व्यापार के मोर्चे पर बढ़ रही चुनौतियां हैं, जिनकी वजह से ताजा राहत अल्पकालिक साबित हो सकती है।
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति की दर जुलाई में आठ साल के सबसे निचले स्तर- यानी 1.55 प्रतिशत रही। खाद्य पदार्थों की महंगाई दर को अलग कर दें, तो कोर यानी मुख्य मुद्रास्फीति दर 4.1 फीसदी रही, जो जून में 4.4 प्रतिशत थी। यानी कुल मिलाकर महंगाई बढ़ने की दर में गिरावट का ट्रेंड है। बहरहाल, इससे यह धारणा नहीं बननी चाहिए कि असल में महंगाई घट रही है। ताजा सरकारी आंकड़े सिर्फ यह कहते हैं कि महंगाई अब पहले की तुलना में कम तेजी से बढ़ रही है। महंगाई दर जुलाई 2024 में जिस स्तर पर थी, अब उससे 1.55 प्रतिशत ऊपर है, लेकिन चूंकि पहले महंगाई इससे काफी अधिक तेजी से बढ़ रही थी, इसलिए इस दर में आई गिरावट को राहत की खबर समझा गया है।
बहरहाल, असल सवाल यह है कि क्या इससे आम उपभोग में बढ़ोतरी होगी, ताकि बाजार में मांग बढ़े? इसकी संभावना कम है, क्योंकि मुद्रास्फीति दर कम रहना तब मांग को प्रोत्साहित करता है, जब आम आमदनी मुद्रास्फीति की तुलना में अधिक बढ़े। ऐसा होने का संकेत नहीं है। दूसरी तरफ अंतरराष्ट्रीय व्यापार के मोर्चे पर बढ़ रही चुनौतियां हैं, जिनकी वजह से ताजा राहत अल्पकालिक साबित हो सकती है। अमेरिका के टैरिफ युद्ध के कारण अनेक कारोबार पर तलवार लटक रही है, जहां बड़ी संख्या में रोजगार जाने का अंदेशा है। वैसी स्थिति में आम आमदनी में और गिरावट आएगी।
गौरतलब है, उपभोग और मांग का ना बढ़ना हाल के वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था की मुख्य समस्या रही है। केंद्र ने इसका समाधान निकालने की जरूरत को नजरअंदाज किया है। जबकि पेट्रोलियम पदार्थों के सस्ते आयात का लाभ आम उपभोक्ताओं को देकर तथा जीएसटी दरों में अनुकूल संशोधन कर वह ऐसा करने की स्थिति में है। फिलहाल, सरकार चाहे तो ऐसे कदम उठा कर मुद्रास्फीति दर में गिरावट से बनी अनुकूल स्थिति का लाभ उठा सकती है। खाने-पीने की चीजों की महंगाई नियंत्रित रहे और सरकार की पहल से लोगों की जेब में पैसा बचे, तो उस स्थिति में वे अवश्य ही अधिक उपभोग के लिए प्रेरित होंगे, जिससे अर्थव्यवस्था में गति आएगी।