सुधांशु शुक्ला की अंतरिक्ष यात्रा 29 मई से शुरू होनी थी। उसे तीन बार टालने के बाद नई तारीख 22 जून तय हुई। लेकिन शुक्रवार को खबर आई कि इसे भी टाल दिया गया है। अगली तारीख बाद में बताई जाएगी।
अंतरिक्ष में जाने का भारतीय यात्री सुधांशु शुक्ला का लगातार लंबा होता इंतजार अमेरिकी अंतरिक्ष उद्योग में लगी बीमारी का एक और स्पष्ट उदाहरण है। शुक्ला की यात्रा 29 मई से शुरू होनी थी, जिसे पहले आठ जून, 10 जून और 11 जून के लिए टाला गया। फिर इसकी तारीख 22 जून तय की गई। लेकिन शुक्रवार को खबर आई कि इसे भी टाल दिया गया है और अगली तारीख बाद में बताई जाएगी। यह यात्रा नेशनल एरॉनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) के एक्सियोम-4 मिशन के तहत होनी है। शुक्ला और तीन अन्य यात्रियों को इसके तहत अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र पर पहुंचाया जाएगा, जहां वे दो हफ्तों तक रहेंगे।
अब नासा ने कहा है कि उसे कक्षीय प्रयोगशाला के ऑपरेशन्स के पुनर्मूल्यांकन के लिए और समय चाहिए। अभी बमुश्किल तीन महीने गुजरे हैं, जब भारतीय मूल की अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स को धरती पर लौटने के लिए नौ महीने की अतिरिक्त प्रतीक्षा करनी पड़ी थी। इसकी वजह बोइंग के स्टारलाइनर अंतरिक्ष यान में तकनीकी खराबी बताई गई थी। सुनीता जून 2024 में आठ दिन के परीक्षण मिशन पर अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन गई थीं, लेकिन स्टारलाइनर के थ्रस्टर्स और हीलियम सिस्टम में गड़बड़ी के कारण वे नौ महीनों तक वहीं अटकी रहीं। नासा दुनिया की प्रतिष्ठित और बहुचर्चित एजेंसी रही है। कभी वह अपनी बारीक गणनाओं और अंतरिक्ष संबंधी ऑपरेशन्स को सटीक ढंग से संपन्न करने के लिए जानी जाती थी। तब वह पूर्णतः अमेरिका की सरकारी एजेंसी थी।
मगर निजीकरण की चली हवा के दौर में उसके राजकीय बजट में लगातार कटौती और नतीजतन मुनाफा प्रेरित निजी क्षेत्र की फंडिंग पर बढ़ती गई निर्भरता ने नासा को उन खूबियों से मरहूम कर दिया है। एक्सियोम-4 भी निजी क्षेत्र का मिशन है। शुक्ला को इसके जरिए अंतरिक्ष यात्रा कराने के लिए भारत ने तकरीबन 500 करोड़ रुपये की फीस अदा की है। इसके बावजूद उड़ान का उनका इंतजार लंबा होता गया है। इस प्रकरण में सहज ही याद आता है कि 1984 में तत्कालीन सोवियत संघ और भारत सरकार के सहयोग से कितनी सहजता से राकेश शर्मा ने अंतरिक्ष यात्रा संपन्न कर ली थी।