इक्कीसवीं सदी में अकाल, भूख!
हम असाधारण समय में जी रहे हैं। इक्कीसवीं सदी में कैसी सुर्ख़ियां पढ़ने को मिल रही है। बात दो टूक है। साफ कहां जा रहा ह...
हम असाधारण समय में जी रहे हैं। इक्कीसवीं सदी में कैसी सुर्ख़ियां पढ़ने को मिल रही है। बात दो टूक है। साफ कहां जा रहा ह...
विडंबना है कि अफ़ग़ानिस्तान ने 15 अगस्त को जब स्वतंत्रता दिवस मनाया, तो गुलाब की पंखुड़ियाँ उन मर्दों पर बरसीं जिन्होंने...
नक़्शा—तीन अक्षरों का छोटा-सा शब्द, मासूमियत से भरा और तभी अक्सर नज़रअंदाज़ किया जाने वाला। हमें सिखाया गया कि यह बस दु...
क्या होता है जब कोई राष्ट्र-राज्य मिट जाता है या मिटा दिया जाता हैं? सामान्य जवाब है—कुछ भी नहीं। कुछ दिनों तक जरूर शोर...
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासन में हर साल भारत को एक नए सवेरे का वादा मिला है! हर वर्ष का हिसाब यदि लगाए तो प्रति वर...
सीधी बात पर आते हैं। भारत के डॉग–लवर्स मातम में हैं। टूटे हुए, बिखरे हुए, जैसे सरकार उनके ड्रॉइंग रूम से ‘ब्रूनो’ को सोफ...
भारत कई चीज़ों का पर्याय हो सकता है, लेकिन अपॉलिटिकल बिलकुल नहीं। हम इस पर भी राजनीति करते हैं कि क्या खाएँगे, किसकी पूज...
वही हुआ जो होना था। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी क्लास याकि अपनी जात वापिस बताई! दुनिया ने फिर जाना कि ‘अ...
हर अगस्त, राजधानी दिल्ली ख़ुद को याद करने के लिए सजता है। रेडियो देशभक्ति के गीतों के सुर गुंजाते है। चौराहों पर, बारिश...
इन दिनों नैरेटिव से ही सब कुछ है। राजनीति, कूटनीति, यहाँ तक कि पत्रकारिता भी इसी पर थिरकती है। अब एक असरदार विमर्श, नैरे...
सन्नाटा और आसमान भारी और हवा नमी से लदी हुई। इन दिनों सुबह भी ठहरी सी होती है। न अखबार के हॉकर का इंतजार होता है और न दू...
हिरोशिमा अस्सी साल पहले जापान का एक छोटा-सा शहर था। उसकी साधारणता भी अनकही थी। उसी शहर पर 6 अगस्त 1945 की सुबह 8:15 बजे,...
स्वतंत्र भारत ने ज्यादातर समय इज़राइल से एक दूरी रखी। इतना नाता जरूर रखा कि आपात स्थिति में मदद मिल जाए और उसकी इमेज पर ...
डोनाल्ड ट्रंप को अमेरिका के राष्ट्रपति की कुर्सी जितना ही मोह अपनी ही शख्सियत से भी है। उन्हे डोनाल्ड ट्रंप बने रहना ही ...
मैं यह लिखना नहीं चाहती थी लेकिन यह सोचते-सोचते लिखा है कि आखिर ऐसा क्या है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी असहज दिख रहे है...