नई दिल्ली। भारत और अमेरिका के बीच व्यापार संधि पर बहुत जल्द मुहर लगेगी। दोनों देशों के वार्ताकारों के बीच बातचीत अंतिम दौर में है। गुरुवार को वार्ताकारों ने वर्चुअल मीटिंग की। बताया जा रहा है कि व्यापार संधि को अंतिम रूप देने के लिए जल्दी ही अमेरिकी टीम भारत आ सकती है। जानकार अधिकारियों का कहना है कि दोनों देशों के बीच व्यापार संधि का मसौदा तैयार करने की कवायद शुरू हो गई है। अधिकारियों ने बताया है कि वार्ता में कोई भी नया मुद्दा बाधा नहीं बन रहा है। माना जा रहा है कि अगले साल के शुरू में समझौते पर दस्तखत हो सकता है।
इस बीच बर्लिन डायलॉग में हिस्सा लेने जर्मनी गए उद्योग और वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि भारत की अमेरिका से वार्ता हो रही है और भारत एक निष्पक्ष व न्यायसंगत संधि पर दस्तखत करेगा। गोयल ने जर्मनी में कहा, ‘हम जल्दबाजी में संधि नहीं करते हैं और हमारे सिर पर बंदूक लगा कर कोई हमसे निर्धारित समय सीमा में संधि नहीं करा सकता है’। बर्लिन डायलॉग में उन्होंने कहा कि भारत यूरोपीय संघ और अमेरिका सहित कई देशों और क्षेत्रों के साथ व्यापार संधि पर बातचीत कर रहा है।
हालांकि भारत में एक अधिकारी ने कहा कि दोनों देश समझौते की डेडलाइन को लेकर काफी गंभीर हैं और उसके हिसाब से वार्ता आगे बढ़ रही है। बहरहाल, पीयूष गोयल ने जर्मनी में कहा कि किसी भी व्यापार संधि को दीर्घावधि के नजरिए से देखा जाना चाहिए। उन्होंने अमेरिका की ओर से लगाए गए टैरिफ का जिक्र किए बगैर कहा कि भारत ऊंचे टैरिफ से निपटने के लिए नए बाजार की तलाश कर रहा है। अपनी शर्तों पर संधि करने के सवाल पर गोयल कहा कि व्यापार संधि हमेशा लंबे समय के नजरिए से की जाती है। यह सिर्फ टैरिफ या सामान और सेवा तक पहुंच के बारे में नहीं है, यह भरोसे और रिश्ते के बारे में भी है।
गौरतलब है कि भारत और अमेरिका के बीच व्यापार संधि के लिए कई दौर की वार्ता हुई है। लेकिन कृषि और डेयरी सेक्टर को अमेरिकी उत्पादों के लिए खोलने के सवाल गतिरोध बना हुआ है। भारत इसके लिए तैयार नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार कह चुके हैं कि भारत अपने किसानों और पशुपालकों के हितों से समझौता नहीं करेगा। जर्मनी में पीयूष गोयल ने भी कहा कि भारत हमेशा राष्ट्रीय हित के आधार पर ही फैसले करता है।
बहरहाल, पीयूष गोयल ने रूस से तेल खरीदने के कारण भारत पर अमेरिका की ओर से लगाए गए टैरिफ का हवाला देते हुए कहा, ‘मैं आज के अखबार में पढ़ रहा था, जर्मनी तेल पर अमेरिकी पाबंदी से छूट मांग रहा है। ब्रिटेन ने पहले ही अमेरिका से तेल खरीदने की छूट ले ली है या शायद उसे मिल भी गई है तो फिर सिर्फ भारत को ही क्यों चुना जा रहा है’। गौरतलब है कि ट्रंप ने रूस से तेल खरीदने के कारण भारत पर 25 फीसदी अतिरिक्त टैरिफ लगाया है। अब अमेरिका ने रूस के दो सबसे बड़े कच्चे तेल उत्पादकों, रोसनेफ्ट और लुकोइल पर पाबंदी लगा दी है। इसके बाद भारत की कंपनियां तेल खरीद घटा रही हैं।


