यह जनवाद कब भरोसा गंवाएंगा?
भारत इन दिनों अलग ही तरह के नए जनवाद की लहर पर सवार है। हर चुनाव इस ज्वार को और ऊँचा कर देता है। लहर अब इतनी प्रबल है कि...
भारत इन दिनों अलग ही तरह के नए जनवाद की लहर पर सवार है। हर चुनाव इस ज्वार को और ऊँचा कर देता है। लहर अब इतनी प्रबल है कि...
कितना हैरानी भरा है यह! आप चाहें तो सिर पकड़ लें, मन टूटता महसूस करें, चिंता में घुल जाएँ, पर सच दो टूक, अडिग खड़ा है। फिर...
कांग्रेस को अब आत्ममंथन की ज़रूरत नहीं है बल्कि कायाकल्प याकि राजनीतिक पुनर्जन्म, या फिर एक शांत, गरिमापूर्ण राजनैतिक मौ...
एक समय था जब फॉलोअर्स की संख्या से क़ीमत तय होती थी। जिसके ज़्यादा अनुयायी, वही असरदार, वही ‘प्रासंगिक’। मतलब भीड़ का आक...
और इसलिए नहीं क्योंकि हम एक संतुष्ट, आत्मसंतोषी देश बन चुके हैं बल्कि इसलिए कि हम विरोध करना ही भूल गए हैं।पिछले एक हफ़्...
सत्ता, एक बार मिल जाए तो छूटती नहीं। वह धीरे-धीरे रगों में आदत बनकर उतर जाती है, और फिर वही मृगतृष्णा बनी हुई होती! ...
बिहार को मैं दूर से देख रही हूँ! कुछ वैसे ही जैसे एक ही सूरज ढलते हुए हर बार कुछ अलग लगता है, फिर भी हर बार वैसा ही। रिप...
डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि वे तीस साल बाद फिर से परमाणु परीक्षण शुरू करेंगे। उधर पाकिस्तान ने धमकी दी है कि तालिबान को फ...
क्या जलवायु चिंता से शुरू कोप (COP) सम्मेलन कुछ मायने रखता हैं? या सिर्फ बस एक नौटंकी है? यह प्रश्न अब स्थाई है पर बे...
हर साल, घड़ी की तरह, हंगामा फिर शुरू है। दीया बुझा भी नहीं होता कि नसीहत, प्रवचन बरसने लगे हैं। हवा के प्रदूषण के एक्यूआ...
हम ऐसे समय में जी रहे हैं जब संस्थाएँ और गठबंधन, जो कभी सामूहिक इच्छा के प्रतीक थे, अपना अर्थ अब खोते हुए हैं। जैसे संयु...
दुनिया हमेशा धुएँ की हल्की-सी गंध में जीती आई है, कुछ स्मृति से उठती, कुछ स्थाई या घटना विशेष से जलती हुई। यदि इतिहास से...
हर गणराज्य के दो चेहरे होते हैं, एक जो आज़ादी के वादे से जगमगाता है, दूसरा वह जो भ्रष्टाचार की अनदेखी, दण्डहीनता की चुप ...
हम खतरनाक समय में जी रहे हैं! और यह न रूपक में, न मनोदशा में, बल्कि मापी जा सकने वाली सच्ची बात है। यह किसी हेडलाइन या च...
शांति, शांति तब तक ही रहती है जब तक वह स्वीकार्य है। जैसे ही सत्ता भारी पड़ने लगती है—प्रभावशाली, स्वार्थी और आत्ममुग्ध—...