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पाकिस्तान फिर महाशक्ति रूतबे में!

यह कहना गलत नहीं है कि डोनाल्ड ट्रंप को पाकिस्तान ने खरीद लिया है। बात सिर्फ क्रिप्टोकरेंसी याकि ट्रंप और उनके परिवार का पाकिस्तान द्वारा धंधा बढ़वाने की ही नहीं है। ऐसा तो भारत भी कर सकता है। अपने अडानी-अंबानी मजे से ट्रंप को मुनाफा कमवा सकते थे। असल बात डोनाल्ड ट्रंप के ईगो को ठेस पहुंचने की है। उन्होंने सीजफायर कराया तो भारत ने उन्हें श्रेय देने या वाहवाही करने के बजाय उन्हें झूठा ठहराया तो स्वाभाविक है जो अहंकारी व्यक्ति बिदके। उधर पाकिस्तान ने ट्रंप की वाहवाही की, उनसे धंधे का मौका लपका। नतीजतन भारत हाशिए में तथा पाकिस्तान का सेना प्रमुख असीम मुनीर ट्रंप के जन्मदिन पर आयोजित सैन्य परेड में मेहमान।

इतना ही नहीं यूएस सेंट्रल कमान (सेंटकॉम) के कमांडर कुरिल्ला का संसद की सशस्त्र सेना समिति के सामने दिया यह बयान गंभीर है कि ‘अमेरिका के भारत और पाकिस्तान दोनों से संबंध हैं। भारत से संबंध रखने के लिए पाकिस्तान के साथ अपने रिश्तों की बलि नहीं चढ़ाई जा सकती। और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान का योगदान ‘असाधारण’ है’।

अमेरिकी सेना का यह सार्वजनिक स्टैंड अमेरिका-पाकिस्तान के रिश्तों में मील का पत्थर है। कहने वाले कह  सकते हैं कि अमेरिका चीन की गोदी में पाकिस्तान को जाने से रोकना चाह रहा है। फालतू बात है। अमेरिका जानता है कि चीन से पाकिस्तान के रिश्ते दशकों पुराने हैं। चीन ही उसका स्थायी गॉडफादर है। पर डोनाल्ड ट्रंप को इसमें हर्ज इसलिए नहीं है क्योंकि उन्हें चीन और पाकिस्तान दोनों से धंधा करना है। पाकिस्तान यदि अमेरिका और चीन दोनों के आगे बिक कर भारत से लड़ना चाह रहा है तो ट्रंप प्रशासन मजे से कहेगा कि भारत और पाकिस्तान जानें, हमें क्या लेना-देना!

नोट रखें ईरान की धुनाई, उसके एटमी महाशक्ति बनने के मंसूबे के धूल में मिलने से भी पाकिस्तान आगे इस्लामी देशों की जमात में अकेला परमाणु महाशक्ति होने से रूतबा पाएगा। इससे एक तरफ मुस्लिम देशों में पाकिस्तान का रूतबा तो वही अमेरिका की सैनिक रणनीति में वह ‘असाधारण’ सहयोगी तो तीसरी तरफ वह चीन की सेना के नए हथियारों के भारत के खिलाफ परीक्षण का एक मोर्चा भी! बताने की आवश्यकता नहीं है कि चीन उसके साथ है तो उसका पिछलग्लू रूस भी पाकिस्तान का हिमायती रहेगा।

क्या यह सिनेरियो चिंताजनक नहीं है? अब क्या कहें! हमें अपने सूरमाओं, छप्पन इंची छातियों से पूछना चाहिए? अजित डोवाल और जयशंकर से तो जरूर!

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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