राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

राहुल का बढ़ रहा ग्राफ!

बिहार के चुनाव में कोई जीते-हारे, पर राहुल गांधी की गूंज बढ़ेगी। राहुल गांधी अब वह चेहरा है जो न केवल निडरता का पर्याय है, बल्कि अकेला चेहरा है, जिससे भारत में विपक्ष जिंदा दिखता है। सोचें राहुल गांधी नहीं होते तो तेजस्वी हों या अखिलेश या कांग्रेस के एक्स-वाई-जेड नेता उनसे मोदी सरकार का क्या बिगड़ना था? तब प्रधानमंत्री मोदी का विरोध तो दूर उन्हें टोकने वाला भी नहीं होता। याद करें कि अरविंद केजरीवाल से ले कर ममता बनर्जी, नवीन पटनायक, वाम मोर्चे के नेताओं के पिछले ग्यारह वर्षों में मोदी सरकार, भाजपा, आरएसएस और हिंदू राजनीति के खिलाफ क्या सुर निकले हैं? जो अखबार-मीडिया कभी प्रधानमंत्रियों याकि वाजपेयी-मनमोहन की सरकारों के खिलाफ गला फाड़ चिल्लाता था वह मोदी राज में कैसा रेंगता हुआ है!  लोकतंत्र की तमाम एजेंसियां, अदालत हों या सीएजी या चुनाव आयोग कैसे आज मौन या मिमियाते हुए हैं?

हां, ग्यारह वर्षों में मोदी सरकार ने प्रमाणित किया है कि हिंदुओं से ज्यादा भयाकुल, भूखा, झूठा जनमानस दुनिया में बिरला है। लोगों को झुकने के लिए कहो तो रेंगते हैं और दो हजार, पांच हजार, दस हजार रुपए की रेवड़ियों, सरकारी खैरात में लोकतांत्रिक स्वाभिमान, ईमानदारी को बेच खाते हैं। जुमलों, झांकियों और सरकारी खौफ में कथित पढ़े-लिखे भी वैसे ही हुकूम बजाते हैं, जैसे सदियों पहले अकबर के दरबार या ईस्ट इंडिया कंपनी के हरकारे बन कर बजाते थे।

इस सबके बीच में कौन सी एक बुलंद आवाज है? वे है राहुल गांधी! इसलिए क्योंकि राहुल गांधी बिका नहीं। राहुल गांधी झुका नहीं। राहुल गांधी डरा नहीं। न ही राहुल गांधी भूखा, लालची या भ्रष्ट है तो यह क्या 140 करोड़ लोगों की भीड़ में अनहोनी नहीं?

मैंने वाजपेयी के समय में भी लिखा था (और वह सही हुआ था) तथा मोदी-शाह के समय में भी लिखा है कि वाजपेयी का शाइनिंग इंडिया सोनिया गांधी का अवसर है। ऐसे ही राहुल घर बैठे कहे तब भी देरसबेर निर्भयता के बूते उभरेंगे। वाजपेयी के समय प्रमोद महाजन, जसवंत सिंह, वेंकैया-अनंत-जेटली-सुषमा, ब्रजेश मिश्रा ने अपने-अपने अहंकारों में वाजपेयी में खूब हवा फूंकी, शाईनिंग इंडिया हुआ बताया। सोनिया गांधी के जीरो अवसर। और क्या हुआ? वैसे ही अब अमित शाह, योगी और संघ परिवार नरेंद्र मोदी की झांकियों-लीलाओं में अवतार बूझते हैं। भारत विकसित, आत्मनिर्भर, विश्वगुरू और सुपर पॉवर वाला हो गया है, जबकि जमीनी हकीकत की नोटबंदी से ऑपरेशन सिंदूर की दास्तान का असल भारत अलग ही है।

पर मोदी-शाह की वेस्ट इंडिया कंपनी की वही खूबी है जैसे ईस्ट इंडिया कंपनी के चंद अंग्रेजों (सिर्फ कुछ हजार) ने अपनी भाव-भंगिमा, वेशभूषा, चेहरे की लाली, मुनाफे-व्यापार-पैसे से कभी बंगाल-बिहार-अवध के हिंदुस्तानियों में जादू, तिलिस्म बनाया था। उसी बूते वे फैलते गए तो मोदी राज भी फैला है। 2014 में हल्ला बनाने के नए औजारों जैसे सोशल मीडिया, 3डी होलोग्राफिक रैलियों, नमो रथ तथा छप्पन इंची छाती के जुमलों से शुरू हुआ सिलसिला लगातार चला हुआ है और भक्त माने हुए है कि नरेंद्र मोदी अवतार हैं और उनका कोई विकल्प नहीं है।

इस सबके बावजूद विरोध की एक आवाज! और वह राहुल गांधी की!

इस आवाज को पिछले ग्यारह वर्षों में खत्म करने के लिए क्या नहीं हुआ? उसे पप्पू करार दिया।  कांग्रेस को खत्म करने की हर संभव कोशिश हुई। कांग्रेसियों का दलबदल करा उन्हें मंत्री बनाया। मुकद्मे किए। राहुल गांधी को अभियुक्त बनाया। जेल में डालने के भय से लेकर भगोड़ा करार देने, उन्हें भ्रष्ट, चरित्रहीन करार देने के हर संभव उपाय और प्रचार हुए!

बावजूद इसके राहुल गांधी न डिगे न फिसले। सोचे, जहां एक कांस्टेबल या लाठी से अंबानी-अडानी से लेकर अफसर, गरीब-गुरबे सभी घबरा उठते है वही ऐसे समाज में राहुल गांधी का निर्भयी विरोध क्या मतलाब है? और यह सवाल ही हैरानी पैदा करने वाला है।

राहुल गांधी ने अडानी-अंबानी, क्रोनी पूंजीवाद और भ्रष्टाचार पर बेबाकी से बोला है तो चुनाव प्रक्रिया, चुनाव आयोग पर भी बोला। उन सभी लोगों (कोई 55-60 प्रतिशत गैर-भाजपाई वोट) को आवाज दी है जो अखबार, राजनीति, टीवी, विधायिका, कार्यपालिका सभी तरफ अनुसनी में है।

तय मानें राहुल गांधी पर कितना ही किंतु-परंतु हो पर इस सप्ताह चुनाव आयोग की बखिया उधेड़ने की प्रेस कांफ्रेस के बाद लोगों में यह गूंज थी कि बंदा सही बोलता है और कभी न कभी तो पाप का घड़ा फूटेगा!

Tags :

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *