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राहुल को लेकर बदलता नैरेटिव

भारतीय जनता पार्टी और सोशल मीडिया का उसका इकोसिस्टम राहुल गांधी को लेकर लगातार नैरेटिव बदल रहा है। इससे ऐसा लग रहा है कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह की राजनीतिक योजना में अगर कोई बाधा दिख रही है तो वह रहुल गांधी हैँ। इसलिए पहले दिन से उनकी साख बिगाड़ने और उनकी राजनीति स्थापित नहीं होने देने के प्रयास सतत हैं। इसी प्रयास के तहत उनको पप्पू बताया गया।  इसके लिए पूरा तंत्र खड़ा किया गया। हालांकि जब यह प्रयास शुरू हुआ उस समय तक वे दो बार सांसद हो चुके थे। उन्होंने 2009 के बाद सरकार और कांग्रेस संगठन में भी दिलचस्पी लेकर राजनीति की थी। उस समय तक यानी जब भाजपा की कमान लालकृष्ण आडवाणी के हाथ में थी या आडवाणी, वाजपेयी के जमाने के नेताओं के हाथ में थी तब तक राहुल गांधी को पप्पू साबित करने की जरुरत किसी ने नहीं समझी थी।

मगर 2014 में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के दावेदार के तौर पर लड़े तब उनके प्रचार तंत्र ने राहुल को पप्पू साबित करने की मुहिम छेड़ी। यह प्रचार कई बरसों तक चला। उनके बारे में कई झूठी सच्ची बातें फैलाई गईं। उनके वीडियो एडिट करके प्रचारित कराया गया और ऐसी बातें दिखाई गईं, जो उन्होंने कभी नहीं कही थीं। इससे समाज के एक बड़े वर्ग में धारणा भी बनी। इस काम में देश की प्रतिबद्ध मीडिया ने भी सरकार और भाजपा का साथ दिया।

इसके बाद वह दौर आया, जब राहुल गांधी को पप्पू की बजाय अगंभीर नेता साबित करने का अभियान चला। इसमें कांग्रेस से भाजपा में गए कई नेताओं ने बड़ी भूमिका निभाई। उन्होंने अपने अनुभव बताने शुरू किए, घटनाएं बताईं और यह साबित किया कि राहुल का मन राजनीति में नहीं लगता है। यह बताया गया कि वे बड़ी हिचकिचाहट के साथ राजनीति में आएं और नेहरू-गांधी परिवार की राजनीति की सहज उत्तराधिकारी प्रियंका गांधी वाड्रा हैं। कुछ समय तक यह अभियान चला।

इस अभियान के तहत उनके सबैटिकल यानी अचानक बिना किसी को बताए छुट्टी मनाने जाने जाने या कहीं अदृश्य हो जाने या काम से दूरी बना लेने की बातों का प्रचार हुआ। एक समय सचमुच वे काफी समय के लिए कहीं चले गए थे। यह अभियान किसी न किसी रूप में अब भी चलता रहै। अब भी वे चाहे किसी काम के लिए दिल्ली से बाहर या देश से बाहर जाएं तो भाजपा की ओर से इसका प्रचार किया जाता है। पिछले दिनों जब राहुल गांधी ने हरियाणा की मतदाता सूची में गड़बड़ी का खुलासा करने वाली प्रेस कॉन्फ्रेंस की और बताया कि ब्राजील की मॉडल की तस्वीरों का इस्तेमाल अनेक मतदाता आई कार्ड में किया गया तो उसका जवाब देने के लिए केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके उसी नैरेटिव को आगे बढ़ाया कि राहुल गांधी विदेश जाते हैं। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी बिना बताए थाईलैंड और मलेशिया चले जाते हैं इसलिए उनको हर जगह विदेशी दिखाई देते हैं। इसका मकसद राहुल की साख बिगाड़ना और उनके लगाए आरोपों को मजाक में उड़ा देना था। यह काम भाजपा बहुत कायदे से करती आई है। राहुल की छुट्टियों और यात्राओं को इस नजरिए से पेश किया जाता है।

इसके बाद तीसरे दौर की शुरुआत किसान आंदोलन के आसपास हुई, जब उनको खुल कर देश विरोधी बताया जाने लगा। उसी समय के आसपास भारत के घरेलू राजनीतिक विमर्श में बड़ी गंभीरता के साथ और व्यापक रूप से जॉर्ज सोरोस की एंट्री हुई थी। पता नहीं कहां कहां से तस्वीरें निकाली गईं कि राहुल गांधी अमेरिका में जा कर किससे मिले और ब्रिटेन जाकर किससे?। कहा गया कि वे जिन लोगों से मिले उसमें कोई ऐसा था, जो सोरोस के लिए काम करता था। यह नैरेटिव बनाने का प्रयास हुआ कि सोरोस की फंडिंग से राहुल गांधी देश विरोधी अभियान चल रहे हैं। हालांकि किसान आंदोलन से पहले सीएए के विरोध में भी देश विरोध का नैरेटिव बना था लेकिन किसान आंदोलन से विदेशी टूलकिट की बहुत चर्चा हुई और राहुल गांधी पर निशाना साधा गया। वह अभियान अभी तक तक चल रहा है।

अब पप्पू और अगंभीर नेता के बाद राहुल गांधी को देश विरोधी और अर्बन नक्सल का समर्थक साबित करने का अभियान है। मतदाताओं को बताया जा रहा है कि राहुल गांधी देश विरोधी ताकतों की शह पर नरेंद्र मोदी की सरकार और भारत को बदनाम करने की साजिश कर रहे हैं। इसी नैरेटिव के तहत उनके चुनाव आयोग के खुलासे पर भी सवाल हैं। कहा जा रहा है कि विदेशी ताकतों के इशारे पर राहुल देश की संस्थाओं को बदनाम कर रहे हैं। जबकि संस्थाएं किस तरह से काम कर रही हैं, यह किसी को नहीं दिख रहा है। राहुल इन संस्थाओं की संवैधानिक जिम्मेदारी और मर्यादा याद दिला रहे हैं लेकिन इसके लिए उनके ऊपर देश विरोध का टैग लगाया जा रहा है। हालांकि जैसे ही भाजपा ने उनको देश विरोधी या देश के खिलाफ साजिश रचने वाला बताना शुरू किया वैसे ही पप्पू और अगंभीर नेता वाला नैरेटिव उसने खुद ही फेल कर दिया। कोई व्यक्ति पप्पू यानी मूर्ख और साजिशी दोनों एक साथ नहीं हो सकता है। जाहिर है भाजपा अब उनकी चुनौती को गंभीर मानने लगी है।

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By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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