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विपक्षी राज्यों में चुनाव आयोग की चुनौती

चुनाव आयोग इस हफ्ते से पूरे देश में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण शुरू करने जा रहा है। पहले चरण में 10 से 15 राज्यों में एसआईआर कराया जाएगा, जिसमें वो पांच राज्य शामिल हैं, जहां अगले साल चुनाव होने वाले हैं। चुनाव आयोग पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी में एसआईआर कराएगा। इसके लिए सारी तैयारी हो गई है। बूथ लेवल अधिकारी यानी बीएलओ नियुक्त हो गए हैं और चुनाव आयोग ने तय किया है कि बिहार की तरह हर राज्य में अधिकतम तीन महीने में एसआईआर का काम पूरा कर लिया जाएगा। लेकिन सभी राज्यों में बिहार जैसे हालात नहीं हैं। बिहार में एनडीए की सरकार थी, जिसकी वजह से राज्य के प्रशासन और स्थानीय प्रशासन ने चुनाव आयोग के साथ पूरा सहयोग किया और निर्धारित अवधि में एसआईआर का काम पूरा हो गया। लेकिन क्या विपक्षी पार्टियों के शासन वाले राज्यों में ऐसा हो पाएगा?

चुनाव आयोग इस बात को लेकर चिंतित है क्योंकि अगले साल जिन राज्यों में चुनाव होने  वाले हैं उनमें से तीन राज्यों में विपक्षी पार्टियों की सरकार है। इन राज्य सरकारों ने पहले ही असहयोग का ऐलान कर दिया है, जिसको लेकर विवाद चल रहा है। हालांकि इन सरकारों ने एसआईआर के लिए तैयारी कर ली है और अपने बूथ लेवल एजेंट्स को जरूरी निर्देश दिए हैं। लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि राज्य प्रशासन और स्थानीय प्रशासन का बहुत सहयोग नहीं मिलेगा। बिहार के मुकाबले बीएलए को काम करने में असुविधा होगी। उनके कामकाज पर ज्यादा सवाल उठेगा। बिहार में तो गड़बड़ी की कम खबरें आई थीं, लेकिन पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल में ज्यादा खबरें आएंगी। चुनाव आयोग के कामकाज में ज्यादा मीनमेख निकाला जाएगा। हालांकि आयोग को भरोसा है कि सुप्रीम कोर्ट ने एसआईआर को मंजूरी दे दी है और अदालत के आदेश के मुताबिक आयोग ने भी आधार को मतदाता की पहचान के सत्यापन के लिए जरूरी दस्तावेज के तौर पर स्वीकार कर लिया है। फिर भी विपक्षी शासन वाले राज्यों में एसआईआर का काम आसान नहीं होगा।

By NI Political Desk

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