प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बिहार के मंत्री नितिन नबीन को भाजपा का राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनाने का फैसला किया। इसके साथ ही हर तरफ सन्नाटा फैल गया। नामों की अटकलें थम गईं। पहले संघ और भाजपा की जानकारी रखने वाले लोग दो या तीन नाम बता रहे थे कि इनमें से किसी को अध्यक्ष बनाया जाएगा। जब देर होने लगी तो नामों की संख्या बढ़ती गई। एक समय तो आठ नामों की सूची सामने आ गई कि इनमें से किसी को अध्यक्ष बनाया जाएगा। लेकिन उस लॉन्ग लिस्ट में भी नितिन नबीन का नाम नहीं था। मोदी और शाह की कार्यशैली 11 साल तक देखने के बाद भी राजनीतिक विश्लेषक समझ नहीं सके कि लाइम लाइट में रहने वाले या राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति करने वाले किसी व्यक्ति को राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं बनाया जाएगा। जो नाम बताए जा रहे थे उसमें किसी सवर्ण नेता का नाम नहीं लिया जा रहा था। जबकि दो बातें पहले दिन से स्पष्ट थीं। एक, अध्यक्ष सवर्ण होगा और दूसरा किसी राज्य की राजनीति करने वाला विधायक, मंत्री होगा।
असल में दो दशक से ज्यादा समय से भारतीय जनता पार्टी सवर्ण राष्ट्रीय अध्यक्ष बना रही है। जिन्ना प्रकरण के बाद जब लालकृष्ण आडवाणी हटे तो राजनाथ सिंह भाजपा के अध्यक्ष बने। राजनाथ सिंह के बाद नितिन गडकरी को लाया गया। वे उस समय महाराष्ट्र की राजनीति करते थे और विधान परिषद के सदस्य थे। राज्य के सड़क परिवहन मंत्री के तौर पर उन्होंने अच्छा काम किया था। उनके बाद फिर राजनाथ सिंह अध्यक्ष बने। उनके बाद अमित शाह और फिर जेपी नड्डा को अध्यक्ष बनाया गया। अब कायस्थ समाज से आने वाले नितिन नबीन को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है और परंपरा के हिसाब से अगले साल जनवरी में वे राष्ट्रीय अध्यक्ष बन जाएंगे। यानी इस सदी के शुरुआती दो चार साल छोड़ दें तो भाजपा ने सवर्ण अध्यक्ष ही बनाया है। भाजपा के नेता हमेशा कहते रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अति पिछड़ा समाज से होने की पहचान इतनी मजबूत है कि किसी तरह का मैसेज देने के लिए दूसरे पिछड़े नेता की जरुरत नहीं है।
वैसे भी भाजपा की सरकार में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री हैं तो राष्ट्रीय अध्यक्ष कौन है इससे बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है। कोई भी पार्टी जब सरकार में होती है तो संगठन का ज्यादा महत्व नहीं रह जाता है। दूसरी बारीक बात भाजपा के एक नेता ने यह समझाई कि राष्ट्रीय चुनाव में हमेशा मोदी का चेहरा होता है इसलिए राष्ट्रीय अध्यक्ष का कोई अर्थ नहीं है। जब राज्यों के चुनाव की बारी आती है तो वहां जरूर राज्य के नेतृत्व का चेहरा दिखाना होता है। इसलिए भाजपा राज्यों में पिछड़ी जाति के नेताओं को आगे बढ़ा रही है। कुछ अपवादों को छोड़ दें तो भाजपा ने राज्यों में पिछड़ी जाति के नेताओं को महत्व दिया है। ज्यादातर जगहों पर भाजपा ने संतुलन बनाया है। जहां सरकार है वहां मुख्यमंत्री या प्रदेश अध्यक्ष दोनों में से एक पिछड़ा है। भाजपा राज्य के स्तर पर पिछड़ा, दलित, आदिवासी चेहरे ज्यादा दिखा रही है क्योंकि उसको पता है कि अस्मिता की राजनीतिक लोकल स्तर पर ज्यादा अहम है।


