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और अंत में बेचारे गालिब…

दुनिया भर में शेरो शायरी पसदं करने वाले लोग इस पर एक राय रखते हैं कि मिर्जा असदुल्ला खां गालिब ऐसे शायर हैं, जिनको सबसे ज्यादा गलत कोट किया गया और सबसे कम समझा गया। वैसे कई लोग कहते हैं कि गालिब समझ में आए तो मजा आता है लेकिन समझ में न आए तो ज्यादा मजा आता है। बहरहाल, गालिब का जिक्र इसलिए क्योंकि संसद के शीतकालीन सत्र के आखिरी हफ्ते के पहले दिन यानी सोमवार, 15 दिसंबर को कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल ने एक शेर पढ़ा, जिसे उन्होंने गालिब का बताया। मेघवाल ने कांग्रेस को नसीहत देते हुए कहा, ‘उम्र भर गालिब यही भूल करता रहा, धूल चेहरे पर थी और आईना साफ करता रहा’। असल में यह शेर गालिब का नहीं है। लेकिन अंग्रेजी के एक प्रतिष्ठित अखबार ने बिना सवाल उठाए अगले दिन इसे जस का तस छाप दिया।

जून 2019 में यानी 17वीं लोकसभा के चुनाव के बाद हो रहे पहले सत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यही शेर पढ़ा था। उन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अभिभाषण के बाद कांग्रेस को नसीहत देने के लिए यह शेर पढ़ा। उसी समय जावेद अख्तर ने सोशल मीडिया एक पोस्ट करके कहा था कि प्रधानमंत्री ने गालिब का बता कर जो शेर पढ़ा है वह असल में गालिब का नहीं है। उन्होंने यह भी लिखा की शेर की दोनों लाइनें शायरी के मीटर पर सही नहीं उतरती हैं। असल में गालिब के पूरे दीवान में यह शेर नहीं है। कुछ संदर्भ मिलते हैं, जिनमें इसे असर फैजाबादी का शेर बताया गया है। लेकिन सोशल मीडिया ने इसे गालिब का शेर बता कर प्रचारित कर दिया और आम लोगों के साथ प्रधानमंत्री और मंत्री भी किसी और का शेर गालिब के नाम से पढ़ते रहे। अपनी विरासत के प्रति बेखबरी का एक नमूना यह भी है।

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By NI Political Desk

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