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मोर्चा खुल गया है

Jaisalmer, Dec 21 (ANI): Union Finance Minister Nirmala Sitharaman and Union Minister for State for Finance Pankaj Chaudhary during the 55th meeting of the GST Council, in Jaisalmer on Saturday. (ANI Photo)

गैर-भाजपा शासित आठ राज्यों की मांग है कि जीएसटी की 28 प्रतिशत और 12 प्रतिशत की दरों को खत्म करने के निर्णय के एवज में केंद्र पांच साल तक राज्यों को दो लाख करोड़ रुपये का मुआवजा देने पर राजी हो।

गैर-भाजपा शासित आठ राज्यों ने जीएसटी में प्रस्तावित “सुधार” को लेकर मोर्चा खोल दिया है। पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, तेलंगाना, पंजाब, केरल, कर्नाटक, झारखंड और हिमाचल प्रदेश ने 3-4 सितंबर को होने वाली जीएसटी काउंसिल की बैठक से पहले अपना एजेंडा सार्वजनिक किया है। इसके मुताबिक ये राज्य मांग करेंगे कि जीएसटी की 28 प्रतिशत और 12 प्रतिशत की दरों को खत्म करने के निर्णय के एवज में केंद्र पांच साल तक राज्यों को दो लाख करोड़ रुपये का मुआवजा देने पर राजी हो। इसके अलावा ऐसे उपाय किए जाएं, जिससे जीएसटी में प्रस्तावित कटौती व्यापारियों के लिए मुनाफा बढ़ाने का जरिया ना बन जाए, बल्कि उनका लाभ उपभोक्ताओं तक पहुंचे।

आशंका है कि इन मांगों पर केंद्र के राजी ना होने पर जीएसटी काउंसिल में प्रस्तावित “सुधार” पर सहमति नहीं बन सकेगी। वहां परंपरा आम सहमति से निर्णय की रही है। तो क्या केंद्र इन मांगों को मान लेगा? या वह इस परंपरा को तोड़ने की हद तक जाएगा? इस घटनाक्रम से यह तो साफ है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिना संवाद और सहमति बनाए स्वतंत्रता दिवस को लाल किले की प्राचीर से जीएसटी “सुधार” का “तोहफा” देने का एलान कर दिया। जबकि एंबिट कैपिटल रिसर्च नामक एजेंसी ने सरकारी आंकड़ों के आधार पर किए अपने आकलन में बताया है कि 12 एवं 28 फीसदी दरें खत्म करने से राजस्व को होने वाले नुकसान का 66 फीसदी हिस्सा राज्यों को वहन करना होगा। जबकि 34 फीसदी बोझ केंद्र पर पड़ेगा।

ऐसे में राज्यों की बिना सहमति के कोई घोषणा करना संघीय भावना के अनुरूप नहीं था। इससे अन्य मामलों में भी गलत संदेश गया, इसकी मिसाल यह है कि बाद में केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) ने मीडिया को प्रस्तावित दरों के बारे में अटकलें ना लगाने की सलाह दी। बोर्ड ने कहा कि इससे बाजार के रुख पर अनुचित प्रभाव पड़ रहा है। यानी जीएसटी में “सुधार” के मुद्दे पर भाजपा बनाम विपक्ष तथा केंद्र बनाम राज्यों के बीच टकराव का एक और मोर्चा खुलता दिख रहा है। इसे दूरदृष्टि के साथ संभालने की जरूरत है।

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