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ये थाली किसकी चिंता?

महंगाई बढ़ने और उसके अनुरूप आमदनी ना बढ़ने पर पहली कोशिश भोजन को अप्रभावित रखने की होती है। जब भारत में बहुत से लोग थाली में भी कटौती करने पर मजबूर हैं, तब बाकी उपभोग पर उसकी मार पड़ना लाजिमी है।

मार्केट रेटिंग फर्म क्राइसिल की थाली की लागत के बारे में ताजा रिपोर्ट फिर से इस हकीकत पर रोशनी डालती है कि भारत में आम इनसान की जिंदगी कितनी मुहाल होती जा रही है। क्राइसिल का ताजा अनुमान है कि सिर्फ एक महीने- अक्टूबर में शाकाहारी थाली की औसत लागत 20 प्रतिशत बढ़ी। बढ़ोतरी का ये सिलसिला लंबा हो चुका है। मांसाहारी थाली की लागत में पिछले महीनों में जरूर कुछ गिरावट देखी गई थी, लेकिन वो सिलसिला अक्टूबर में टूट गया। बीते महीने मांसाहारी थाली की लागत पिछले वर्ष के अक्टूबर की तुलना में पांच प्रतिशत बढ़ गई।

क्राइसिल के मुताबिक थाली की कुल कीमत में सब्जियों का हिस्सा 40 प्रतिशत होता है। अक्टूबर में प्याज और आलू के दाम में क्रमशः 46 और 51 फीसदी का इजाफा हुआ। अक्टूबर 2023 में टमाटर औसतन 29 रुपये किलोग्राम उपलब्ध था, जबकि बीते अक्टूबर में यह औसतन 64 रुपये किलो बिका। बेशक इन सब्जियों के दाम आने वाले हफ्तों में गिरेंगे। उससे थाली की औसत लागत में राहत मिल सकती है। मगर अक्टूबर में दालें 11 प्रतिशत और खाद्य तेल 10 प्रतिशत महंगे हुए। ऐसी वस्तुओं की कीमत में जो वृद्धि हो जाती है, वह शायद ही कभी आगे जाकर घटती है। सिर्फ अक्टूबर की इस सूरत से समझा जा सकता है कि आम लोगों के आम उपभोग में क्यों गिरावट आई है, जिससे अब कॉरपोरेट सेक्टर की बड़ी कंपनियों की बिक्री भी प्रभावित होने लगी है।

किसी भी परिवार में महंगाई बढ़ने और उसके अनुरूप आमदनी ना बढ़ने पर पहली कोशिश भोजन को अप्रभावित रखने की होती है। जब भारत में बहुत से लोग थाली में भी कटौती करने पर मजबूर हैं, तब बाकी उपभोग पर उसकी मार पड़ना स्वाभाविक है। मगर दुखद यह है कि इस थाली की प्रभु वर्ग में किसी को चिंता नहीं है। राजनीतिक दलों में जाति और मजहबी पहचान की सियासत से चुनावों में अपनी बैतरणी पार करने का भरोसा अटूट बना हुआ है, जबकि मीडिया का सारा विमर्श इस सायास कोशिश से प्रेरित है कि ऐसे मुद्दों को चर्चा से दूर रखा जाए। नतीजा आम लोग भुगत रहे हैं।

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