Naya India-Hindi News, Latest Hindi News, Breaking News, Hindi Samachar

कानून का ये हाल!

judiciary supreme court

साल 2013 में जाकर यूपीए-2 की सरकार ने कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न रोकने का अधिनियम (संक्षेप में पॉश कानून) बनाया। लेकिन उस पर अमल का हाल क्या है, यह खुद सुप्रीम कोर्ट के ताजा दिशा-निर्देशों से जाहिर होता है।

कार्य स्थलों पर यौन उत्पीड़न रोकने के लिए व्यापक दिशा-निर्देश सुप्रीम कोर्ट ने 27 साल पहले जारी किए थे। 1997 में सुप्रीम कोर्ट ने ये निर्देश जारी किए, जिन्हें ‘विशाखा गाइडलाइन्स’ के रूप में जाना जाता है। उन दिशा-निर्देशों की भावना के मुताबिक कानून बनाने में 15 साल लग गए। इस बीच कई सरकारें आईं और गईं। 2013 में जाकर यूपीए-2 की सरकार ने यह अधिनियम (संक्षेप में पॉश कानून) बनाया, लेकिन उस पर अमल का हाल क्या है, यह खुद सुप्रीम कोर्ट के ताजा निर्देशों से जाहिर होता है। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की बेंच ने निर्देश दिया है कि पॉश कानून को पूरे देश में समान रूप से लागू किया जाए।

अदालत ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 31 दिसंबर 2024 तक हर जिले में एक अधिकारी नियुक्त करने को कहा है। यह अधिकारी 31 जनवरी 2025 तक स्थानीय शिकायत समिति का गठन करेगा और तालुका स्तर पर नोडल अधिकारी नियुक्त करेगा। कोर्ट ने जिला मजिस्ट्रेटों को निर्देश दिया है कि वे पॉश अधिनियम की धारा 26 के तहत सार्वजनिक और निजी संगठनों का सर्वेक्षण करें और मार्च 2025 तक रिपोर्ट पेश करें। जाहिर है, कानून बनने के 11 साल बाद भी ये सारे कदम नहीं उठाए गए हैँ।

ताजा निर्देश एक याचिका पर आया, जिसमें गुजारिश की गई है कि कोर्ट केंद्र और राज्य सरकारों से पूछे कि क्या सभी मंत्रालयों और विभागों में यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच की समिति का गठन हो गया है। जस्टिस बीवी नागरत्ना की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि इस कानून को पूरे देश में लागू किया जाना है। कोर्ट तीन महीने के भीतर सर्वेक्षण करने और 31 मार्च 2025 तक रिपोर्ट जमा करने का निर्देश दे रहा है। पॉश अधिनियम की धारा 26 में प्रावधान है कि कोई विभाग, मंत्रालय या निजी संगठन अपने यहां जांच समिति का गठन नहीं करता है, तो उस पर 50,000 रु. तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। मगर ऐसी समितियां आज तक बनी ही नहीं हैं। यह देश में कानून के आदर की आम हालत की ही एक झलक है।

Exit mobile version