बड़ा सवाल है कि क्या भारतीय न्याय प्रणाली के तहत किसी व्यक्ति को वित्तीय जुर्माना चुका कर आपराधिक अभियोग से मुक्त होने का अवसर दिया जाना चाहिए? आधुनिक न्याय प्रणाली में फौजदारी मामलों से इस तरह मुक्त होने की कोई अवधारणा नहीं होती।
सुप्रीम कोर्ट ने बैंक धोखाधड़ी के एक बहुचर्चित मामले के अभियुक्तों से पैसा वापस लेकर मामला खत्म करने की इजाजत दे दी है। स्टर्लिंग बायोटेक लिमिटेड कंपनी के मालिक संदेसरा बंधुओं को इजाजत दी गई है कि वे 5,100 करोड़ रुपये का भुगतान कर गंभीर आरोपों में चल रहे मुकदमों से मुक्त हो जाएं। जबकि उन पर 14,000 करोड़ रुपये के घपले का इल्जाम है। नितिन एवं चेतन संदेसरा उन भगोड़ों में हैं, जो वित्तीय संस्थाओं को भारी चूना लगा कर देश से भाग निकले। चेतन की पत्नी दीप्ति और उनके परिवार के सदस्य हितेश पटेल को भी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने भगोड़ा घोषित कर रखा है।
गौरतलब है कि ईडी ने इस परिवार की लगभग 14,500 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त कर रखी है। उनमें से 4,700 करोड़ रुपये की संपत्ति भारत के अंदर है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत संदेसरा बंधु 5,100 करोड़ रुपये चुका देंगे, तो यह संपत्ति उन्हें वापस मिल जाएगी। विदेशों में जब्त 9,778 करोड़ की संपत्ति भी उनकी पहुंच से फिलहाल बाहर है। यह दीगर है कि उसे हासिल करना भारत सरकार के लिए भी कठिन बना हुआ है। मुकदमा खत्म होते ही संदेसरा परिवार की यह संपत्ति भी मुक्त हो जाएगी। उससे भी बड़ा सवाल यह है कि क्या भारतीय न्याय प्रणाली के तहत किसी व्यक्ति को वित्तीय जुर्माना चुका कर आपराधिक अभियोग से मुक्त होने का अवसर दिया जाना चाहिए?
इस्लामी देशों में ब्लड मनी देकर आरोपी हत्या के जुर्म से भी बरी हो जाते हैं। मगर जिन देशों में आधुनिक न्याय प्रणाली है, वहां फौजदारी मामलों से इस तरह मुक्त होने की कोई अवधारणा नहीं होती। इसीलिए सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्णय असहज करने वाले मालूम पड़े हैं। इनमें वोडाफोन आइडिया और निर्माण कार्यों को बाद की तारीख में हरी झंडी देने संबंधी मामले शामिल हैं। ताजा मामले में कोर्ट ने कहा है कि इसे भविष्य के लिए उदाहरण नहीं माना जाएगा। लेकिन संदेसरा बंधुओं को यह लाभ मिला है, तो आखिर किस तर्क पर विजय माल्या या नीरव मोदी या वैसे अन्य आर्थिक अभियुक्तों को इससे वंचित रखा जा सकता है?
