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अपराध की जड़ें कहां

अध्ययनकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे कि अपराध का सीधा ताल्लुक आर्थिक गैर-बराबरी से है। उनका निष्कर्ष है कि आर्थिक विषमता में हर एक प्रतिशत वृद्धि पर अपराध की दर में आधा फीसदी बढ़ोतरी होती है।

अपने देश में बढ़ते अपराध की जड़ों की तलाश करनी हो, तो देश की अर्थव्यवस्था के स्वरूप पर गौर करना चाहिए। ये बात फिर से एक अध्ययन से साबित हुई है। अध्ययन आईआईटी खड़गपुर के शोधकर्ताओं ने किया। वे इस नतीजे पर पहुंचे कि अपराध का सीधा ताल्लुक बढ़ रही आर्थिक गैर-बराबरी से है। उनका निष्कर्ष है कि विषमता में हर एक प्रतिशत वृद्धि पर अपराध की दर में आधा फीसदी बढ़ोतरी होती है। अध्ययनकर्ताओं ने अध्ययन के लिए नाइट टाइम आर्टिफिशियल लाइट्स विधि का उपयोग किया। इसी विधि से नीदरलैंड्स की वेगेनाइजेन यूनिवर्सिटी के अनुसंधानकर्ताओं ने भी अध्ययन किया था। उनका और इस तरह के कई अन्य अध्ययनों के निष्कर्ष भी लगभग ऐसे ही रहे हैं।

हालांकि एक प्रतिशत गैर-बराबरी बढ़ने पर अपराध में कितनी बढ़ोतरी होती है, इस पर विभिन्न अध्ययनों के निष्कर्ष अलग रहे हैँ। आईआईटी खड़गपुर के विशेषज्ञों के मुताबिक उनके अध्ययन से इस समझ की पुष्टि हुई है कि अपराध किसी का व्यक्तिगत चयन भर नहीं होता, बल्कि उसके लिए सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियां भी दोषी होती है। आर्थिक गैर-बराबरी ऐसे हालात तैयार करती है, जो कुछ लोगों को अपराध करने की तरफ ले जाते हैँ। आईआईटी खड़गपुर के अध्ययन का एक निष्कर्ष यह भी है कि अपराधियों को सजा सुनाए जाने की दर जहां अधिक होती है, वहां अपराध की दर में कमी आती है।

तो सबक है कि शहरों को अपराध मुक्त बनाने के लिए आपराधिक न्याय प्रणाली को दुरुस्त करने के साथ-साथ इसके आर्थिक- सामाजिक पहलुओं पर भी गौर करना अनिवार्य है। चूंकि ताजा अध्ययन में भारत के 49 शहरों को शामिल किया गया, तो माना जाएगा कि इसका सैंपल साइज पर्याप्त है। अध्ययनकर्ताओं ने उन शहरों में मौजूद आर्थिक विषमता सहित ऐसे उन अन्य तमाम पहलुओं पर गौर किया, जिनका संबंध अपराध को कम या ज्यादा रखने से होता है। वैसे अपराध विज्ञान में यह समझ पहले से मौजूद रही है कि अपराध का अपना अर्थशास्त्र होता है। यानी अपराध सिर्फ कानून-व्यवस्था का मुद्दा नहीं हैं। सिर्फ थाना-पुलिस से उन्हें रोका नहीं जा सकता। मगर अफसोस यह है कि नीति-निर्माता अक्सर इन पहलुओं को नजरअंदाज किए रहते हैं।

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