Economy

  • फिर भी चक्का जाम!

    मंत्रियों और सरकार समर्थक विश्लेषकों के मुताबिक यह नए निवेश के लिए आदर्श समय है। मगर हकीकत यह है कि अब तक निवेश- उत्पादन- रोजगार सृजन- उपभोग एवं वृद्धि और उससे प्रेरित नए निवेश का चक्का हिला तक नहीं है। संभव है कि नरेंद्र मोदी सरकार के अंदर सचमुच यह समझ हो कि अर्थव्यवस्था में गति भरने के लिए वह जो कर सकती थी, कर दिया है। केंद्रीय मंत्री यह कहते सुने गए हैं कि अब यह निजी क्षेत्र पर है कि सरकार की बनाई अनुकूल स्थितियों के अनुरूप आचरण वह करे। निजी क्षेत्र से उम्मीद जोड़ी गई है कि...

  • आरएसएस का अर्थ-चिंतन

    संघ के अर्थ-समूह में कही गई बातें मोदी सरकार की आर्थिक सफलता के दावों का सिरे से खंडन करती हैँ। कहा जा सकता है कि ये भारत की जमीनी माली हालत का उचित वर्णन हैं। हालांकि ये बातें नई नहीं हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के ‘अर्थ समूह’ की बैठक में वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी ने लगभग 70 स्लाइड्स के जरिए दिखाया कि देश की आर्थिक प्राथमिकताएं किस हद तक गलत दिशा में हैं। उन्होंने बढ़ती आर्थिक गैर-बराबरी की आलोचना की और भारत में प्रति व्यक्ति आय की निम्न दर की ओर ध्यान खींचा। 91 वर्षीय जोशी ने ग्रोथ केंद्रित...

  • अपराध की जड़ें कहां

    अध्ययनकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे कि अपराध का सीधा ताल्लुक आर्थिक गैर-बराबरी से है। उनका निष्कर्ष है कि आर्थिक विषमता में हर एक प्रतिशत वृद्धि पर अपराध की दर में आधा फीसदी बढ़ोतरी होती है। अपने देश में बढ़ते अपराध की जड़ों की तलाश करनी हो, तो देश की अर्थव्यवस्था के स्वरूप पर गौर करना चाहिए। ये बात फिर से एक अध्ययन से साबित हुई है। अध्ययन आईआईटी खड़गपुर के शोधकर्ताओं ने किया। वे इस नतीजे पर पहुंचे कि अपराध का सीधा ताल्लुक बढ़ रही आर्थिक गैर-बराबरी से है। उनका निष्कर्ष है कि विषमता में हर एक प्रतिशत वृद्धि पर...

  • भारत की डेड इकोनॉमी: ट्रंप

    नई दिल्ली। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत के खिलाफ लगातार दूसरे दिन नाराजगी जाहिर की। भारत पर 25 फीसदी टैरिफ लगाने और रूस से कारोबार करने की वजह से जुर्माना लगाने की घोषणा के एक दिन बाद गुरुवार को कहा कि भारत की इकोनॉमी डेड हो गई है। उन्होंने भारत के साथ साथ रूस की इकोनॉमी को भी डेड बताया। इस डेड इकोनॉमी के विवाद के बीच शुक्रवार, एक अगस्त से भारत के उत्पादों पर अमेरिका में 25 फीसदी टैरिफ लगने लगेगा। राष्ट्रपति ट्रंप ने बुधवार, 30 जुलाई को इसकी घोषणा की थी। अभी भारत के उत्पादों पर...

  • बढ़ती हुई चुनौतियां

    केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने अपनी ताजा मासिक समीक्षा रिपोर्ट में आगाह किया है कि कर्ज लेने की रफ्तार धीमी है और निजी निवेश सुस्त बना हुआ है। इनका असर भारत की आर्थिक वृद्धि पर पड़ सकता है। भारतीय अर्थव्यवस्था की चुनौतियां बढ़ रही हैं और अच्छी बात है कि केंद्रीय वित्त मंत्रालय उससे ना सिर्फ वाकिफ है, बल्कि उसने अपना आकलन देश को बताया भी है। अपनी ताजा मासिक समीक्षा रिपोर्ट में उसने आगाह किया है कि कर्ज लेने की रफ्तार धीमी है और निजी निवेश सुस्त बना हुआ है। इनका असर भारत की आर्थिक वृद्धि पर पड़ सकता है।...

  • पुराना पड़ गया फॉर्मूला?

    आसान शर्तों पर ऋण की उपलब्धता बढ़ा कर अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने की भारतीय रिजर्व बैंक की कोशिशें कामयाब नहीं हुई है। मनी सप्लाई बढ़ाने के कदमों का क्रेडिट ग्रोथ पर ना के बराबर असर हुआ है। यह समझ अब गलत साबित हो रही है कि बैंकों के पास ऋण देने के लिए अधिक नकदी उपलब्ध होने पर आर्थिक वृद्धि दर तेज होती है। मान्यता है जब बैंक आसान शर्तों पर कर्ज देते हैं, तो लोग ऋण लेकर टिकाऊ उपभोक्त सामग्रियों या मकान आदि की अधिक खरीदारी करते हैं। इससे बढ़ी मांग के कारण उद्योगपति निवेश बढ़ाते हैं, जिससे आर्थिक...

  • महाकुंभ का असर अर्थव्यवस्था पर नहीं दिखा

    वित्त वर्ष 2024-25 के आंकड़े आ गए हैं। भारत सरकार के सांख्यिकी विभाग की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक इस वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के बढ़ने की दर 6.5 फीसदी रही। इसके साथ ही यह भी आंकड़ा आया कि पिछले वित्त वर्ष की आखिरी तिमाही यानी जनवरी से मार्च 2025 के बीच जीडीपी बढ़ने की दर 7.4 फीसदी रही। यह आंकड़ा एक साल पहले यानी जनवरी से मार्च 2024 की विकास दर 8.4 फीसदी से एक फीसदी कम रही। सरकार के आंकड़ों के मुताबिक ज्यादातर सेक्टर में गिरावट रही। ध्यान रहे उससे पहले के वित्त...

  • भारत की आर्थिकी पर अमेरिकी टैरिफ का होगा असर

    भारत को यूरोपीय संघ, आसियान और मध्य पूर्व जैसे वैकल्पिक बाजारों पर ध्यान देना चाहिए। भारत-ईयू मुक्त व्यापार समझौते को तेज करना महत्वपूर्ण होगा। आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया जैसी पहलों को मजबूत करके घरेलू उत्पादन और खपत को बढ़ावा देना चाहिए। छोटे और मध्यम उद्यमों के लिए सब्सिडी, कर राहत और निर्यात प्रोत्साहन योजनाओं को लागू करना चाहिए। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा घोषित “पारस्परिक टैरिफ” (रेसीप्रोकल टैरिफ) नीति ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को हिला दिया है। इस नीति के तहत, भारत पर 27% का टैरिफ लगाया गया है, जबकि अन्य देशों जैसे चीन (34%), वियतनाम (46%), और यूरोपीय संघ...

  • मौका पर खत्म एमएसएमई धंधे

    भारत का कपड़ा क्षेत्र भी लाभ उठाने की स्थिति है। पड़ोसी देशों के मुकाबले कम शुल्क की वजह से देश के परिधान और वस्त्र क्षेत्र को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है। वियतनाम, बांग्लादेश, कंबोडिया, पाकिस्तान और चीन जैसे प्रतिस्पर्धी कपड़ा निर्यातक देशों को काफी अधिक शुल्क का सामना करना पड़ा है। अब भी अमेरिका भारतीय वस्त्रों का सबसे बड़ा खरीदार बना हुआ है। वित्त वर्ष 2023-24 में भारत का कपड़ा निर्यात करीब 36 अरब डॉलर था, जिसमें से अमेरिका का हिस्सा कररीब 28 फीसदी यानी 10 अरब डॉलर था। भारत के घरेलू स्टील उद्योग को राहत मिली है...

  • सुखबोध की बात नहीं

    किसी विकास यात्रा के आगे बढ़ने का अपना क्रम होता है। भारत को एक ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने में छह दशक लगे, लेकिन उसके बाद सात-सात साल में उसमें एक-एक ट्रिलियन और जुड़े। अब चार साल बाद अगला ट्रिलियन जुड़ा है। भारत की सकल घरेलू अर्थव्यवस्था के 4.3 ट्रिलियन डॉलर होने संबंधी आईएमएफ का आंकड़ा आने के बाद से सत्ता समर्थक हलकों में सुखबोध की लहर दिखी है। खुद प्रधानमंत्री ने विस्मय भरे लहजे में पूछा है कि आजादी के बाद पहले 70 वर्ष में भारत 11वें नंबर की अर्थव्यवस्था बना, तो आखिर ऐसा क्या हुआ कि गुजरे पांच-सात...

  • झंझावात का अब अहसास?

    nirmala sitharaman: वित्त मंत्रालय ने कहा है कि भू-राजनीतिक तनावों, व्यापार नीति संबंधी अनिश्चितताओं और अंतरराष्ट्रीय बाजार में कॉमोडिटी के मूल्यों में उतार-चढ़ाव के कारण अगले वित्त वर्ष में भारत के आर्थिक विकास के लिए गंभीर जोखिम पैदा हो गए हैँ। दुनिया में मची उथल-पुथल से भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए भी प्रतिकूल हालात बने हैं, उसका अहसास अब भारत सरकार को भी हुआ है। लगातार ‘मजबूत आर्थिक बुनियाद’ के दावे को आगे बढ़ाते रहे वित्त मंत्रालय ने अब कहा है कि भू-राजनीतिक तनावों, व्यापार नीति संबंधी अनिश्चितताओं और अंतरराष्ट्रीय बाजार में कॉमोडिटी के मूल्यों में उतार-चढ़ाव के कारण अगले वित्त...

  • राज्यों की वित्तीय सेहत बिगड़ रही है

    states inancial health: उत्तर भारत के राज्यों के मुकाबले अपेक्षाकृत समृद्ध तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने पिछले दिनों एक कार्यक्रम में कहा कि उनके राज्य की मासिक आय साढ़े 18 हजार करोड़ रुपए है। इसमें से साढ़े छह हजार करोड़ वेतन, भत्ते और पेंशन में चला जाता है और साढ़े छह हजार करोड़ रुपया कर्ज के ब्याज का भुगतान करने में जाता है। सभी तरह की लोक कल्याण की योजनाओं और विकास की परियोजनाओं के लिए सिर्फ साढ़े पांच हजार करोड़ रुपए बचते हैं। उनकी सरकार ने बेरोजगारों को हर महीने चार हजार रुपए देने की घोषणा की है...

  • फूट रहे हैं बबूले

    एमएससीआई- ईम में भारत का वजन 200 आधार अंक घटा है। जनवरी में भारतीय कंपनियों के साझा वजन का हिस्सा 18.41 था। इसी तरह एमएससीआई ईम इन्वेस्टेबल मार्केट इंडेक्स में भारत का हिस्सा गिर कर 19.7 पर आ गया है। भारत के शेयर बाजारों का पूंजी मूल्य लगातार घट रहा है। लाजिमी है, उभरते बाजारों के संकेतक- एमएससीआई ईएम में भारत का प्रभाव भी कमजोर पड़ रहा है। पिछले सितंबर के बाद से भारतीय शेयर बाजारों के मूल्य में एक खरब रुपये से ज्यादा की गिरावट आ चुकी है। नतीजतन एमएससीआई- ईम में भारत का वजन 200 आधार अंक घट...

  • राज्यों की आर्थिक सेहत का बड़ा सवाल

    चुनावों में ‘मुफ्त की रेवड़ी’ बांटने के चलन को दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है। दिल्ली हाई कोर्ट के रिटायर जज जस्टिस एसएन ढींगरा ने जनहित याचिका दायर की है, जिसमें दो बातों पर अदालत से आदेश देने की मांग की गई है। पहली बात तो यह है कि आम नागरिकों से अवैध तरीके से उनका निजी और चुनावी डाटा हासिल करने और किसी तीसरे पक्ष के साथ उसे साझा करने से रोका जाए और दूसरी बात यह है कि ‘मुफ्त की रेवड़ी’ बांटने के कदाचार पर रोक लगाई जाए। यह याचिका बहुत सही समय पर दायर की...

  • नाकाम उपाय, चूकता रास्ता

    दूसरी तिमाही की तुलना में अक्टूबर-दिसंबर के बीच निजी निवेश में 1.4 फीसदी की गिरावट आई। पहली तिमाही में भारी गिरावट के बाद दूसरी तिमाही में सकारात्मक संकेत दिखे थे। मगर तीसरी तिमाही ने उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। निजी निवेश में गिरावट का सिलसिला इस वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में भी जारी रहा। दूसरी तिमाही की तुलना में अक्टूबर-दिसंबर के बीच इसमें 1.4 फीसदी की गिरावट आई। ताजा खबर के मुताबिक पहली तिमाही में भारी गिरावट के बाद दूसरी तिमाही में कुछ सकारात्मक संकेत दिखे थे। मगर तीसरी तिमाही ने उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। तो...

  • आंकड़ों में असलियत

    एनएसओ के अग्रिम अनुमान में कहा गया है कि 2024-25 में अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर चार साल के न्यूनतम स्तर पर रहेगी। ध्यानार्थ है कि अग्रिम अनुमान के आंकड़ों को ही अगले वित्त वर्ष के बजट का आधार बनाया जाता है। अब केंद्र ने भी माना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था रफ्तार खो रही है। वैसे तो पहले दिखी उच्च वृद्धि का भी आधार मजबूत नहीं था। कोरोना काल में माइनस में गई वृद्धि दर के आधार पर अर्थव्यवस्था उठी, तो वृद्धि दर काफी ऊंची दिख रही थी। इस बीच अर्थव्यवस्था के उत्तरोत्तर वित्तीयकरण से वित्तीय संपत्तियों में इजाफे से भी...

  • आंकड़ों के आईने में

    उत्पादक Economy में बेहतर रोजगार पैदा नहीं होंगे, तो लोग ऋण पर अधिक आश्रित होते जाएंगे, जबकि संसाधन संपन्न लोगों के पास वित्तीय संपत्तियों में निवेश के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचेगा। भारत में यही हो रहा है।  भारतीय रिजर्व बैंक की एक ताजा रिपोर्ट से सामने आए तीन पहलुओं ने ध्यान खींचा है। पहली यह कि आम भारतीय परिवारों पर औसत कर्ज में बढ़ोतरी का सिलसिला थम नहीं रहा है। दूसरीः भारतीय मध्य वर्गीय परिवारों में शेयर और बॉन्ड में निवेश के प्रति आकर्षण कायम है। तीसरीः रियल एस्टेट क्षेत्र संकटग्रस्त बना हुआ है, क्योंकि उसमें निवेश के...

  • गिरता निर्यात, बढ़ता घाटा

    Economy: समाधान देश के अंदर ही पूरा सप्लाई चेन तैयार करना है। लेकिन यह धीरज के साथ दूरगामी निवेश और नियोजन से ही हो सकता है। इस दिशा में पहल का कोई संकेत नहीं दिखता। नतीजतन, व्यापार घाटा अपरिहार्य बना हुआ है। also read: ऑस्ट्रेलिया सीरीज के बीच रविचंद्रन अश्विन ने क्रिकेट को कहा अलविदा, 14 साल के सुनहरे सफर का अंत चालू वित्त वर्ष में सिर्फ दो महीने ऐसे रहे, जब वस्तु व्यापार में उसके पिछले महीने की तुलना में व्यापार घाटा कम हुआ। लेकिन अप्रैल 2024 को आधार बनाएं, तो तब से नवंबर तक घाटा कुल मिला कर बढ़ा...

  • विषमता पर दो दृष्टियां

    economic inequality: पिकेटी का सुझाव है कि भारत को जीडीपी-टैक्स अनुपात में सुधार कर अतिरिक्त संसाधन इकट्ठा करना चाहिए। उसका निवेश मुफ्त स्कूली शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं और इन्फ्रास्ट्रक्चर को सशक्त करने में किया जाना चाहिए। यही विकसित देश बनने का रास्ता है। also read: IND vs AUS: गाबा में फ्लॉप शो! विराट, यशस्वी और गिल की नाकामी से टीम इंडिया की लुटिया डूबी बढ़ती आर्थिक गैर-बराबरी पर राजधानी में एक गंभीर चर्चा हुई। इसमें दो नजरिए उभर कर सामने आए। एक नजरिये की नुमानंदगी भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन ने की। उन्होंने कहा कि न्यायपूर्ण आर्थिक विकास...

  • ब्याज दर में कटौती समाधान नहीं है

    भारतीय रिजर्व बैंक के नए गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कामकाज संभाल लिया है। उनको भी उसी तरह वित्त मंत्रालय का अनुभव है, जैसे उनके पूर्ववर्ती शक्तिकांत दास को था। उन्होंने छह साल तक केंद्रीय बैंक के प्रमुख का पद संभाला। उनसे पहले उर्जित पटेल गवर्नर थे। इन दोनों का कार्यकाल बहुत उतार चढ़ाव का रहा। उर्जित पटेल के समय नोटबंदी हुई थी। सरकार ने 2016 के नवंबर में पांच सौ और एक हजार रुपए के नोट चलन से बाहर कर दिए थे। इस तरह एक झटके में देश की 85 फीसदी मुद्रा अवैध हो गई थी। उस झटके से उबरने...

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