केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने अपनी ताजा मासिक समीक्षा रिपोर्ट में आगाह किया है कि कर्ज लेने की रफ्तार धीमी है और निजी निवेश सुस्त बना हुआ है। इनका असर भारत की आर्थिक वृद्धि पर पड़ सकता है।
भारतीय अर्थव्यवस्था की चुनौतियां बढ़ रही हैं और अच्छी बात है कि केंद्रीय वित्त मंत्रालय उससे ना सिर्फ वाकिफ है, बल्कि उसने अपना आकलन देश को बताया भी है। अपनी ताजा मासिक समीक्षा रिपोर्ट में उसने आगाह किया है कि कर्ज लेने की रफ्तार धीमी है और निजी निवेश सुस्त बना हुआ है। इनका असर भारत की आर्थिक वृद्धि पर पड़ सकता है। ऊपर से अमेरिकी आयात शुल्क की तलवार लटक रही है। अमेरिका के साथ भारत का द्विपक्षीय व्यापार समझौता हो पाएगा या नहीं, इसको लेकर अनिश्चय जारी है। अमेरिका जिन शर्तों को थोपने पर अड़ा हुआ है, उसे देखते हुए अब कहा जा रहा है कि व्यापार समझौता ना होना बुरा होगा, मगर मौजूदा अमेरिकी शर्तों को मान लेना उससे भी अधिक हानिकारक बात होगी।
वैसे डॉनल्ड ट्रंप के टैरिफ वॉर का साया सिर्फ द्विपक्षीय व्यापार पर नहीं है। बल्कि इससे विश्व बाजार में माहौल बिगड़ा हुआ है, जिसका परिणाम भारत को भी भुगतना पड़ रहा है। वित्त मंत्रालय ने बताया है कि जून में भारत के वस्तु निर्यात में गिरावट दर्ज हुई। यह महज 35.14 बिलियन डॉलर का रह गया। दरअसल, हाल के ज्यादातर महीनों में या तो निर्यात गिरा है या ठहराव का शिकार रहा है। इसका असर घरेलू कारोबार पर हुआ है। जून में 27 तारीख तक 10 कॉमर्शियल बैंकों की ऋण वृद्धि दर 10.4 प्रतिशत रही। जून 2024 में ये दर 13.9 फीसदी थी।
स्पष्टतः ब्याज दरें गिरने के बावजूद उद्यमी ऋण लेकर नए निवेश के लिए उत्साहित नहीं हुए हैँ। हालांकि वित्त मंत्रालय ने यह नहीं कहा है, लेकिन निजी निवेश के सुस्त रहने का एक बड़ा कारण घरेलू बाजार की समस्याएं भी हैं। आबादी के एक छोटे से तबके को छोड़ कर बाकी दायरे में आमदनी गतिरुद्ध है, जिस वजह से मांग नहीं बढ़ रही है। और जब अंदरूनी और बाहरी दोनों जगहों पर मांग नहीं है, तो कारोबारी किसलिए निवेश करेंगे? बहरहाल, बाहरी हालात तो सरकार के हाथ में नहीं हैं, मगर घरेलू बाजार को सुधारने के कदम वह जरूर उठा सकती है। दरअसल, आज के माहौल में ऐसा करने के अलावा कोई विकल्प भी नहीं है।