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आंशिक, लेकिन सही दिशा

हालिया कदमों के बावजूद आयोग के सामने साख संबंधी कई चुनौतियां हैँ। उसे ये धारणा तोड़नी होगी कि चुनाव कार्यक्रम एक दल विशेष की सुविधा से तय होता है और आदर्श आचार संहिता लागू करने में आयोग भेदभाव करता है।

आखिरकार निर्वाचन आयोग को आभास हुआ है कि उसकी साख पर देश में गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं। तो संदेहों का निवारण करने की दिशा में आयोग ने दो महत्त्वपूर्ण कदम उठाए हैँ। पहले कदम का संबंध विपक्ष के इस आरोप से है कि बड़ी संख्या में ऑनलाइन माध्यम से मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से हटाए गए। इल्जाम है कि इसके जरिए उन मतदाताओं के नाम कटे, जिनके बारे में धारणा थी कि वे गैर-भाजपा दलों को वोट देंगे। तो अब आयोग ने नियम बदले हैं। नए कायदे के मुताबिक सिर्फ आधार से जुड़े मोबाइल फोन के जरिए ही मतदाता सूची से नाम हटाने या उसमे नाम जोड़ने की अर्जी दी जा सकेगी। एक तरह से यह आयोग द्वारा इसे स्वीकार करना है कि चूंकि अब तक ऐसा नहीं हो रहा था, नतीजतन संभव है कि संदिग्ध लोगों ने संदिग्ध मकसदों से नाम हटवाए या जुड़वाए हों।

इसलिए जरूरी है कि आयोग ऐसी घटनाओं और उनके पीछे जो लोग भी रहे हों, उनके नाम सामने लाने का प्रयास करे। इस सिलसिले में कर्नाटक की सीआईडी जांच में सहयोग कर वह ठोस शुरुआत कर सकता है। आयोग ने दूसरा नियम यह बदला है कि अब पोस्टल बैलेट की गिनती खत्म होने के बाद ही वोटिंग मशीन के आखिर दौर की मतगणना होगी। हाल में ऐसी अनेक शिकायतें आईं कि वोटिंग मशीन से जीते उम्मीदवार को पोस्टल बैलेट की गणना के आधार पर पराजित घोषित कर दिया गया। स्पष्टतः विपक्ष ने इसमें घोटाला देखा। इसलिए यह नियम बदलना सही कदम है।

बहरहाल, इन कदमों के बाद भी आयोग के सामने साख संबंधी कई चुनौतियां हैँ। उसे ये धारणा तोड़नी होगी कि चुनाव कार्यक्रम एक दल विशेष की सुविधा से तय होता है और आदर्श आचार संहिता लागू करने में आयोग भेदभाव करता है। आरोप यह भी है कि हर विपक्षी शिकायत पर आयोग निष्पक्ष रेफरी की भूमिका में होने के बजाय खुद एक पक्ष बन जाता है। इन इल्जामों ने कम-से-कम विपक्षी खेमों में शक और गुस्सा भरा है। अगर उसे दूर करने की जरूरत अब आयोग ने समझी है, तो उसका स्वागत किया जाएगा।

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