बस, आ पहुंचे हैं, चार क़दम अब चलना है
यह हमारी राजनीतिक-सामाजिक-सांस्कृतिक यात्रा के संक्रमण काल का चरम है। इस दौर के उस पार एक मुकद्दस आसमान हमारा इंतज़ार कर रहा है। बस, आ पहुंचे हैं, दूर नहीं कुछ, चार क़दम अब चलना है। जो लोग नरेंद्र भाई मोदी के आजीवन सत्तासीन बने रहने में यक़ीन करते हैं, वे चंद महीनों बाद अपना माथा पीट रहे होंगे। अगली होली आते-आते हमारे वर्तमान अधिपतियों के चेहरे इतने बदरंग हो चुके होंगे कि पहचाने नहीं जाएंगे। देखते रहिए, इस बार टेसू के फूल नए रंग बिखेरने वाले हैं। मतदाता सूचियों में ‘संगठित’ और ‘केंद्रीयकृत’ तिकड़मों के ज़रिए देश भर के निर्वाचन...