विपक्षी खेमों में एसआईआर के खिलाफ भावनाएं सिर्फ चंद राज्यों तक सीमित नहीं हैं। बल्कि यह राष्ट्र-व्यापी मुद्दा बना हुआ है। हैरतअंगेज है कि इसके बावजूद निर्वाचन आयोग ने विपक्षी दलों से संवाद शुरू करने की जरूरत नहीं समझी है।
एक नवंबर को मुंबई में शिवसेना और महाराष्ट्र नव-निर्माण सेना के नेतृत्व में कई विपक्षी दलों ने कथित वोट चोरी के खिलाफ बड़ा मोर्चा निकाला। उन्होंने मांग की जब तक मतदाता सूची को सुधारा नहीं जाता, राज्य में स्थानीय निकाय चुनाव नहीं होने चाहिए। शरद पवार ने इस आंदोलन की तुलना 1950 के दशक के संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन से की है, जिसकी वजह से इस मराठी भाषी राज्य का गठन हुआ। दो नवंबर को चेन्नई में मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने तकरीबन 40 दलों के नेताओं के साथ बैठक की, जिसमें मतदाता सूची में विशेष गहन पुनरीक्षण को लाखों लोगों को मताधिकार से वंचित करने का प्रयास बताया गया। इन दलों ने निर्वाचन आयोग के इस अभियान के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने का एलान किया है।
मंगलवार को कोलकाता में एसआईआर के खिलाफ मुख्यमंत्री ममता बनर्जी मोर्चा संभालेंगी। तृणमूल कांग्रेस ने इस प्रक्रिया पर आपत्ति जताने के लिए वहां रैली का आयोजन किया है। केरल की विधानसभा बकायदा एसआईआर के खिलाफ प्रस्ताव पारित कर चुकी है। इस बीच बिहार में चल रहे विधानसभा चुनाव अभियान के दौरान जब-तब “वोट चोरी” की चर्चा जारी है। बिहार का मामला पहले से सुप्रीम कोर्ट में है, जिसमें अभी फैसले का इंतजार है। विपक्षी खेमों में एसआईआर और निर्वाचन आयोग के खिलाफ ऐसी भावनाएं सिर्फ इन पांच राज्यों तक सीमित नहीं हैं। बल्कि यह राष्ट्र-व्यापी मुद्दा बना हुआ है।
हैरतअंगेज यह है कि इसके बावजूद निर्वाचन आयोग ने विपक्षी दलों से संवाद शुरू करने की जरूरत नहीं समझी है। हालांकि इस बात के संकेत हैं कि केंद्र सरकार के नीति-निर्माताओं के बीच इस प्रकरण में चुनावी लोकतंत्र की प्रमुख संचालक संस्था के खिलाफ बन रहे माहौल को लेकर चिंता है, फिर भी सार्वजनिक रूप से सत्ता पक्ष विपक्ष के इससे संबंधित आरोपों को ठेंगे पर रखे हुए है। नतीजतन एक ऐसी स्थिति बन रही है, जिसके परिणामस्वरूप हर चुनावी नतीजा एक बड़े जनमत की निगाह में संदिग्ध बना रहेगा। इसका दूरगामी असर आबादी के एक बड़े तबके की निगाह में निर्वाचित सरकारों की वैधता पर पड़ेगा। यह एक ऐसी आशंका है, जिसको लेकर सबको चिंतित होना चाहिए।


