महिला क्रिकेट में भारत का चैंपियन बनना एक युगांतकारी घटना बन सकती है। यहां से संभव है कि मुख्य मुकाबले की धुरी उसी तरह खिसक जाए, जैसा पुरुष क्रिकेट में वेस्ट इंडीज के उदय के साथ 1970 के दशक में हुआ था।
भारत की महिला क्रिकेट टीम ने आखिरकार उस शिखर पर विजय पताका लहराया है, जिसके करीब पहुंचने के बाद दो बार (2005 और 2017 में) वो वहां से फिसल गई थी। 2017 का दर्द तो अब तक भारतीय क्रिकेट प्रेमियों के दिल में है, तब मंजिल से कुछ कदम पहले तक मजबूती से पहुंचने के बाद अचानक टीम इंडिया ढह गई। इंग्लैंड के हाथों उस हार को भारतीय महिलाओं में मारक क्षमता के अभाव के रूप में पेश किया गया था। मगर रविवार को भारतीय टीम का अलग जज्बा सामने आया, जब कप्तान हरमन प्रीत कौर और उनके साथियों ने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ आरंभ से अंत तक दबदबा बनाए रखा।
वैसे भारतीय टीम ने मनोवैज्ञानिक बढ़त तो सेमी-फाइनल में अपराजेय दिखने वाली ऑस्ट्रेलियाई टीम पर अविश्वसनीय जीत के साथ ही बना ली थी, जिसका मुजाहिरा खिलाड़ियों ने फाइनल में किया। यह जीत बताती है कि धीरज, प्रतीक्षा, परिश्रम, और लंबी तैयारी के बाद आखिरकार भारतीय महिलाएं उस मुकाम पर पहुंची हैं, जिसे कभी उनकी पहुंच से बाहर समझा जाता था। तथ्य है कि सीमित ओवरों वाले मैच के विश्व कप टूर्नामेंट की शुरुआत पुरुष से पहले महिला क्रिकेट में हुई। 1973 के पहले टूर्नामेंट के समय भारत के पास महिला टीम नहीं थी। 1978 में दूसरे टूर्नामेंट में भारत ने पहली बार भाग लिया। अब 13वें टूर्नामेंट में जाकर वह विश्व विजेता बन पाई है।
इस बीच ऑस्ट्रेलिया ने सात, इंग्लैंड ने चार और न्यूजीलैंड ने एक बार यह खिताब जीता। अतः इसे ध्यान में रखना चाहिए कि एंग्लो-सैक्सन मूल के देशों के बाहर विश्व चैंपियन बनने वाला भारत पहला मुल्क बना है। इस रूप में यहां से महिला क्रिकेट में भी उन देशों का वर्चस्व टूटने की शुरुआत हुई है, जैसा पुरुष क्रिकेट में बहुत पहले हो चुका है। यानी मुंबई के डीवाई पाटिल स्टेडियम में 2 नवंबर को जो हुआ, वह महिला क्रिकेट में युगांतकारी घटना बन सकती है। यहां से संभव है कि मुख्य मुकाबले की धुरी ठीक उसी तरह खिसक जाए, जैसा पुरुष क्रिकेट में वेस्ट इंडीज के उदय के साथ 1970 के दशक में हुआ था।


