राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

एसआईआर में सावधानी बरतने की जरुरत

चुनाव आयोग मतदाता सूची की सफाई के लिए विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर का दूसरा चरण शुरू कर चुका है। अगले साल चुनाव वाले चार राज्यों के साथ साथ 12 राज्यों में यह प्रक्रिया चलेगी। इन 12 राज्यों में मतदाता सूची फ्रीज कर दी गई है और चार नवंबर से पहले चरण यानी मतगणना प्रपत्र भरे जाने की शुरुआत होगी। नौ दिसंबर को मसौदा मतदाता सूची जारी की जाएगी और एक महीने तक आपत्ति, दावे लिए जाएंगे। सात जनवरी 2026 को अंतिम मतदाता सूची जारी होगी। इन 12 राज्यों से पहले चुनाव आयोग ने एसआईआर की प्रक्रिया का बिहार में परीक्षण किया था, जो सफल रहा है।

अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में चुनाव आयोग ने इस कामयाबी का जिक्र भी किया। हालांकि आयोग ने यह नहीं बताया कि बिहार में उसके काम में कितनी बाधाएं आईं और राजनीतिक दलों व सामाजिक संगठनों को कैसी लड़ाई लड़नी पड़ी। बिहार में एसआईआर को लेकर जो मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा उसकी सुनवाई अभी चल ही रही है। इसी आधार पर कई पार्टियां और सामाजिक कार्यकर्ता सवाल उठा रहे हैं कि जब मामला सुप्रीम कोर्ट में विचारधीन है और अंतिम फैसला नहीं आया है तो चुनाव आयोग को दूसरे राज्यों में एसआईआर की प्रक्रिया नहीं शुरू करनी चाहिए थी। हालांकि उसमें आयोग यह तर्क दे सकता है कि सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में भी एसआईआर पर रोक नहीं लगाई थी इसलिए दूसरे राज्य में इसे शुरू करने में कोई कानूनी बाधा नहीं है।

ठीक बात है कि दूसरे राज्य में इसे शुरू करने में कोई कानूनी बाधा नहीं है लेकिन राजनीतिक बाधा है और कुछ सवाल अब भी अनसुलझे हैं। जैसे बिहार में 10 हजार ऐसे लोगों के नाम कटे हैं, जिनको नाम काटने वाली किसी श्रेणी में नहीं रखा गया है। इसी तरह स्थायी रूप से शिफ्ट हो जाने की जो श्रेणी है उसे लेकर भी आपत्ति है क्योंकि स्थायी रूप से बहुत कम लोग शिफ्ट होते हैं। ज्यादातर लोग अंततः वापस लौटते हैं और अपने स्थायी पते के ही वासी होते हैं। कोरोना के समय या दूसरे आर्थिक संकट के समय यह देखने को मिला है कि लोग अपने घरों को लौटे हैं।

स्थायी रूप से शिफ्ट हो जाने वाली श्रेणी में सबसे ज्यादा नाम कटे हैं। तभी चुनाव आयोग को बहुत सावधानी बरतने की जरुरत होगी ताकि ऐसे लोगों के नाम नहीं कटें, जो अपने स्थायी पते पर नहीं रहते हैं लेकिन दूसरी जगह के मतदाता नहीं हैं और स्थायी पते पर ही मतदाता बने रहना चाहते हैं। ऐसे प्रवासियों के लिए बूथ लेवल अधिकारी के तीन बार उसके पते पर जाने का नियम पर्याप्त नहीं है। बिहार में ऐसा देखने को मिला कि बूथ लेवल अधिकारी यानी बीएलओ तीन बार तो छोड़िए एक बार भी लोगों के घरों तक नहीं पहुंचा। कई जगह सफाईकर्मी या दूसरे कर्मचारियों के हाथों मतगणना प्रपत्र भेजे गए। खाली घरों के आसपास ज्यादा से ज्यादा एक बार पूछताछ हुई और नाम काट दिया गया। अस्थायी रूप से कहीं गए लोगों के भी नाम कटे।

चुनाव आयोग को यह ध्यान रखना होगा कि एसआईआर की प्रक्रिया उसने मतदाता सूची की सफाई के लिए चलाई है, लोगों के मताधिकार छीनने के लिए नहीं। उसकी कोशिश यह होनी चाहिए कि मृत मतदाताओं या एक से ज्यादा जगहों पर दर्ज नाम वाले मतदाताओं के नाम काटे लेकिन इस प्रक्रिया में किसी वास्तविक मतदाता का नाम नहीं कटना चाहिए। बिहार के अनुभव के आधार पर उसे इस प्रक्रिया को आम लोगों के लिए सहज और सरल बनाने का प्रयास भी करना चाहिए। जिस तरह की खबरें और तस्वीरें बिहार से एसआईआर की आईं वैसी दूसरे राज्यों से नहीं आनी चाहिए। आयोग को भी पता है कि कैसे बूथ लेवल अधिकारियों ने अपने घरों में बैठ कर मतगणना प्रपत्र भरे और उन्हें जमा कर दिया। कैसे पहले से भरे हुए दो मतगणना प्रपत्र की जगह मतदाताओं को एक प्रपत्र दिया गया। मतदाताओं पर छोड़ दिया गया कि वे इसकी फोटोकॉपी कराएं। मतदाताओं की तस्वीरों के मामले में भी कई तरह की गड़बड़ियां हुईं। नाम, पता, लिंग आदि की विसंगतियां तो अब भी बड़ी संख्या में मतदाता सूची में हैं। इनका भी ध्यान रखने की जरुरत है।

आधार के मामले में अब भी स्पष्टता नहीं है। चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मुताबिक आधार को 12वें दस्तावेज के तौर पर स्वीकार करने का निर्देश दिया है। लेकिन पहले से ही यह स्थिति स्पष्ट है कि आधार सिर्फ पहचान का दस्तावेज है और यह नागरिकता प्रमाणित करने का दस्तावेज नहीं हो सकता है। तभी कहा जा रहा है कि चुनाव आयोग की 11 दस्तावेजों की जो प्राथमिक सूची है वही मान्य होगी। यानी इन 11 में से कोई एक दस्तावेज दिखाना जरूरी होगी। इस मामले में स्पष्टता होनी चाहिए। यह भी कहा जा रहा है कि आधार पर संदेह होने की स्थिति में बूथ लेवल अधिकारी इसके सत्यापन के लिए दूसरे दस्तावेज की मांग कर सकता है। एसआईआर के दौरान आधार का क्या स्टैटस होगा इसे लेकर जन साधारण को सूचित किया जाना जरूरी है। इसी तरह माता, पिता के दस्तावेजों को लेकर भी बिहार में कुछ जगहों पर आपत्ति की गई थी। शेल्टर होम्स में पले बढ़े लोगों ने इसे चुनौती दी थी। इस मामले में भी कुछ स्पष्टता आनी चाहिए।

चुनाव आयोग ने बिहार के एसआईआर अभियान से सबक लेकर एक बदलाव यह किया है कि पहले चरण में यानी मतगणना प्रपत्र भरे जाते समय किसी तरह के दस्तावेज की मांग नहीं की है। बिहार में मतगणना प्रपत्र भरे जाते समय ही दस्तावेज लिए जा रहे थे, जिससे बहुत लोगों को परेशानी हुई। इस बार बूथ लेवल अधिकारियों की ओर से पहले से आधा भरा हुआ मतगणना प्रपत्र मतदाताओं को दिया जाएगा और उसमें दी गई जानकारि की पुष्टि  करके, बाकी जानकारी भर कर और दस्तखत करके उसे लौटाना होगा। उसके बाद मतदाता सूची की पहले से की गई मैपिंग के आधार पर पिछले एसआईआर के बाद बनी मतदाता सूची के साथ उसका मिलान होगा। जिन लोगों के मतगणना प्रपत्र आयोग को नहीं मिलेंगे उनके घरों पर बूथ लेकर अधिकारी जाएंगे और पता करेंगे कि उनकी मृत्यु हो गई है या वे स्थायी रूप से शिफ्ट हो गए हैं।

दूसरे चरण में मतदाताओं से सत्यापन के दस्तावेज लिए जाएंगे। अगर किसी का नाम एक से ज्यादा जगह पर दर्ज है तो उसे कटवाना होगा और अगर मतदाता सूची में नाम नहीं है तो उसके लिए फॉर्म भर कर जरूरी दस्तावेजों के साथ जमा कराना होगा। इस बार चुनाव आयोग ने मतगणना प्रपत्र में अलग से कॉलम जोड़ा है, जिसमें मतदाताओं को बताना है कि आखिरी बार हुई एसआईआर के बाद बनी मतदाता सूची में उसका या उसके माता, पिता का नाम था या नहीं। चुनाव आयोग ने बिहार के अनुभव के आधार पर कुछ चीजों को ठीक किया है लेकिन बुनियादी रूप से प्रक्रिया वैसी ही जैसी बिहार में थी। तभी अगर बिहार जैसी समस्याएं दूसरे चरण में भी आती हैं तो आयोग की मुश्किल बढ़ेगी क्योंकि कई राज्यों में विपक्षी पार्टियों की सरकारें हैं, जो जरा सी गड़बड़ी को बड़ा मुद्दा बना सकती हैं और आयोग से असहयोग कर सकती हैं।

By अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *