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योग के युग में!

विश्व स्वास्थ्य संगठन के सुझाए पैमाने पर देखें, भारत की आधी आबादी को निष्क्रिय माना जाएगा। ब्रिटिश जर्नल लासेंट के मुताबिक साल 2000 में भारत में निष्क्रिय श्रेणी में आने वाली वयस्क आबादी का प्रतिशत 22.3 था, जो 2022 में 49.4 हो गया।

जिस दौर में योग (वास्तव में योगासन) को सरकारी तौर पर ‘राष्ट्रीय कर्म’ बना दिया गया है, उस समय यह खबर कौतुक पैदा करती है कि भारत की लगभग आधी वयस्क आबादी तंदुरुस्त नहीं है। और ऐसा पोषण संबंधी किसी अभाव या महामारी की चपेट में आने के कारण नहीं है। बल्कि इसकी वजह है लोगों की सुस्त जीवन शैली। मशहूर ब्रिटिश मेडिकल जर्नल लांसेट ने अपनी एक ताजा अध्ययन में कहा है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के सुझाए पैमाने पर देखें, तो भारत की आधी आबादी को निष्क्रिय माना जाएगा। लासेंट के मुताबिक साल 2000 में भारत में निष्क्रिय श्रेणी में आने वाली वयस्क आबादी का प्रतिशत 22.3 था, जो 2022 में 49.4 हो गया। इस दौर में पुरुषों की तुलना में महिलाओं में निष्क्रिय रहने का फैशन ज्यादा बढ़ा, जिनके बीच निष्क्रियता की दर अब 57 फीसदी है। इस तरह लासेंट के वैश्विक सूचकांक पर दुनिया में भारत 12वें नंबर पर आया है। यानी सिर्फ 11 और देश ऐसे हैं, जहां वयस्क निष्क्रिय लोगों का प्रतिशत भारत से ज्यादा है। निष्क्रिय जीवन शैली का वैश्विक औसत 31 प्रतिशत आया है।

गौरतलब है कि जिन देशों को समृद्ध और विकसित समझा जाता है, वहां के लोग शारीरिक रूप से अधिक सक्रिय रहते हैं। जबकि दक्षिण एशिया और एशिया प्रशांत क्षेत्र में लोग सक्रियता से अधिक बचते नजर आते हैँ। लांसेट ने आगाह किया है कि अगर यही ट्रेंड आगे बढ़ा, तो 2030 तक भारत में 59.9 प्रतिशत लोग निष्क्रिय जीवन जी रहे होंगे। इसका बहुत भारी बोझ देश की स्वास्थ्य व्यवस्था पर पड़ सकता है। निष्क्रिय जीवन शैली का परिणाम हृदय रोग, पक्षाघात, डायबिटीज, स्मृति-लोप, और यहां तक कि आंत्र एवं स्तन जैसे कुछ प्रकार के कैंसर के रूप में भी सामने आने की आशंका रहती है। चिंताजनक यह है कि भारत में बढ़ते जीवन स्तर के साथ शारीरिक सक्रियता घटती चली जाती है। जाहिर है, अब सचेत होने का वक्त है। योगासन का हल्ला प्रचार तंत्र से उतर कर जमीन तक नहीं पहुंचा है। ऐसे में जमीनी स्तर पर तंदुरुस्त जीवन के लिए जागरूता अभियान की अलग से जरूरत बची हुई है।

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