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नीति-कार्यक्रम के बिना!

भारतीय राजनीति

सहज ही यह सवाल उठा कि क्या इंडिया गठबंधन की प्राथमिकता में नीति और कार्यक्रम महत्त्वहीन या सबसे नीचे है? इंडिया नेताओं का दावा है कि वे सत्ता पाने के लिए इकट्ठा नहीं हुए हैं। लेकिन आखिर लोग उनके इस दावे पर कैसे यकीन करें?

इंडिया गठबंधन के नेताओं ने मुंबई में हुई अपनी बैठक में अगले आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को हरा देने का इरादा एक स्वर से जताया। बल्कि उन्होंने कथानक तो यह पेश किया कि इंडिया नाम के बैनर तले 28 दलों के इकट्ठा हो जाने से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी घबरा गए हैं। मोदी ने जिस तरह इस गठबंधन के नाम को निशाना बनाया है, या अचानक पांच दिन का विशेष सत्र बुलाने और वन नेशन-वन इलेक्शन के लिए कमेटी बनाने का फैसला किया है, इंडिया नेताओं ने उसे उनकी घबराहट का संकेत बताया। इसके अलावा गठबंधन ने चार कमेटियों का एलान किया। ये कमेटियां इन दलों में समन्वय, सीटों के तालमेल का फॉर्मूला बनाने, चुनाव अभियान चलाने और मीडिया अभियान को संभालने के लिए हैं। मगर गठबंधन के नीति और कार्यक्रम अथवा साझा न्यूनतम कार्यक्रम की घोषणा की उम्मीद लगाए लोगों को मायूसी झेलनी पड़ी। राहुल गांधी ने अपने भाषण में यह जरूर कहा कि नीति और कार्यक्रम तय करने के लिए एक समिति बनेगी, लेकिन उसका एलान बैठक के आखिरी दिन नहीं हुआ।

तो सहज ही यह सवाल उठा कि क्या इन दलों की प्राथमिकता में नीति और कार्यक्रम महत्त्वहीन या सबसे नीचे है? इंडिया नेताओं का दावा है कि वे सत्ता पाने के लिए इकट्ठा नहीं हुए हैं। बल्कि वे देश, संविधान, लोकतंत्र, संघीय व्यवस्था, सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता को बचाने के लिए अपने मतभेदों को भुला कर एकजुट हुए हैं। उनका आरोप है कि मोदी सरकार देश में महंगाई, बेरोजगारी, देश की सरहद की रक्षा करने आदि जैसे मसलों पर नाकाम हो गई है। वह लोगों की अन्य समस्याओं के लिए जिम्मेदार है। मगर जो लोग इन बातों से सहमत होंगे, वे भी यह अवश्य जानना चाहेंगे कि अगर इंडिया सत्ता में आया, तो वह महंगाई या बेरोजगारी पर कैसे काबू पाएगा, उसकी चीन और विदेश नीति क्या होगी, और कुल मिलाकर वह संवैधानिक भावनाओं को पुनर्स्थापित करने के लिए क्या कदम उठाएगा? मगर इंडिया गठबंधन ने सबसे पहले यह बताने को प्राथमिकता नहीं दी है। स्पष्ट है कि उसकी निर्भरता एंटी इन्कबेंसी पर है। मगर यह खुद उसके लिए हानिकारक सोच है।

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