बेशक, स्वस्थ स्थिति यह होगी कि ऑनलाइन गेमिंग इंडस्ट्री में रोजगार-शुदा लोगों के पुनर्वास की उचित व्यवस्था की जाए। लेकिन उसे पूर्व शर्त बना कर इस कारोबार से करोड़ों की बदहाली बढ़ाते जाना किसी स्वस्थ समाज को मंजूर नहीं हो सकता।
ऑनलाइन गेमिंग इंडस्ट्री का बड़ा हिस्सा संगठित जुआ बना हुआ है। इसलिए इसे प्रतिबंधित करने के लिए लाए गए विधेयक को देर से, लेकिन सही दिशा में उठाया गया कदम माना जाएगा। यह भी स्वागतयोग्य है कि इसके दायरे में उन ऑनलाइन गेम्स को नहीं रखा गया है, जिसमें पैसे का लेन-देन नहीं होता। बहरहाल, इस इंडस्ट्री से बहुत बड़े स्वार्थ जुड़े हुए हैँ। इसलिए बिल पारित होने के बाद भी प्रस्तावित कानून के प्रभावी ढंग से लागू हो पाने को लेकर आशंकाएं बरकरार हैं। गेमिंग इंडस्ट्री इसे न्यायपालिका में चुनौती देने की तैयारी में है। इसके अलावा उसने प्रोमोशन एंड रेगुलेशन ऑफ ऑनलाइन गेमिंग बिल 2025 के खिलाफ सरकार और अधिकारियों को प्रभावित करने के लिए बड़े पैमाने पर लॉबिंग शुरू कर दी है।
इसलिए प्रस्तावित कानून को लागू करना नरेंद्र मोदी सरकार की संकल्प-शक्ति का एक बड़ा इम्तहान होगा। खुद सरकार ने बताया है कि देश के युवाओं में ऑनलाइन गेमिंग की लत बढ़ती चली गई है। इस कारण हर साल 45 करोड़ लोग पैसा गंवाते हैं। ऑनलाइन गेम में पैसा लगाने के लिए घरों के भीतर कलेश और हिंसा के मामले बढ़ते चले गए हैँ। कई आत्म-हत्याओं की खबरें भी हर साल आती हैं। लोगों की इसी बदहाली की कीमत पर गेमिंग इंडस्ट्री फूल-फल रही है। उसके संचालकों का दावा है कि यह कारोबार इतना बड़ा हो चुका है कि इस इंडस्ट्री में दो लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है।
इस कारोबार के जरिए इंडस्ट्री हर साल 20 हजार करोड़ रुपए का टैक्स सरकार को देती है। मगर सरकार को ऐसी दलीलों से प्रभावित नहीं होना चाहिए। फिलहाल उसने राजस्व पर सामाजिक हित को तरजीह देने का रुख लिया है, जिस पर उसे कायम रहना चाहिए। सामाजिक बुराई को फैलाने वाले हर कारोबार से कुछ लोगों की रोजी-रोटी चलती है। बुराई को जब कभी रोका जाएगा, ऐसे लोगों को नुकसान होगा। बेशक, स्वस्थ स्थिति यह होगी कि उनके पुनर्वास की उचित व्यवस्था की जाए, लेकिन उसे पूर्व शर्त बना कर जुआ जैसे कारोबार से करोड़ों की बदहाली बढ़ाते रहना किसी स्वस्थ समाज को कतई मंजूर नहीं हो सकता।