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कानूनी प्रावधान के अनुरूप

सुप्रीम कोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि विवाह व्यक्ति का मौलिक अधिकार नहीं है, इसलिए समलैंगिक व्यक्तियों के विवाह की मांग के पक्ष में उसने फैसला नहीं दिया। उसने यह उचित व्याख्या की कि स्पेशल मैरिज ऐक्ट में समलैंगिक विवाह का प्रावधान नहीं है।

समलैंगिक विवाह मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला संविधान और वर्तमान कानून के मुताबिक है। सुप्रीम कोर्ट से अति अपेक्षा रखने वाले आलसी कार्यकर्ता समूहों को भले इससे मायूसी हुई होगी, लेकिन कोर्ट का खुद को अपने दायरे में रखने के निर्णय से वैधानिक तौर पर असहमत होने की कम गुजाइशें ही हैँ। यह कहा जा सकता है कि ऐसी अति अपेक्षाएं पैदा करने में खुद सर्वोच्च न्यायालय की भी भूमिका रही है। एक दौर में संविधान से मिले न्यायिक समीक्षा के अधिकार की बेहद व्यापक परिभाषा करते हुए उसने संविधान के बुनियादी ढांचे की अवधारणा स्थापित कर दी और फिर चूंकि मौलिक अधिकार संविधान के इस ढांचे का हिस्सा हैं, इसलिए उसने खुद को इन अधिकारों का संरक्षण घोषित कर दिया। उस दौर में उसने खुद मौलिक अधिकारों की व्यापक से व्यापक व्याख्याएं कीं। इससे एक तबके में यह धारणा बन गई कि बिना सामाजिक-राजनीतिक माहौल बनाए भी न्यायपालिका के हस्तक्षेप से समाज में बड़े बदलाव लाए जा सकते हैँ।

बहरहाल, अब उस समझ की सीमाएं स्पष्ट हो गई हैँ। चूंकि सुप्रीम कोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि विवाह व्यक्ति का मौलिक अधिकार नहीं है, इसलिए समलैंगिक और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के विवाह की मांग के पक्ष में उसने फैसला नहीं दिया। उसने यह उचित व्याख्या की कि स्पेशल मैरिज ऐक्ट में समलैंगिक विवाह का प्रावधान नहीं है। यह प्रावधान जोड़ना विधायिका के अधिकार क्षेत्र में आता है। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने यह सटीक टिप्पणी की कि अगर अदालत एलजीबीटीक्यू समुदाय के लोगों को विवाह का अधिकार देने के लिए स्पेशल मैरिज एक्ट की धारा 4 में कोई शब्द जोड़ती है, तो वह विधायिका के अधिकार क्षेत्र में प्रवेश माना जाएगी। ऐक्टिविस्ट समूह इस निर्णय से निराश हैं, तो बेहतर होगा कि वे पहले समाज में समलैंगिक विवाह के पक्ष में माहौल बनाएं। जहां तक समलैंगिकों के साथ रहने की बात है, तो न्यायपालिका पहले ही उनके बीच के यौन संबंध को अपराध की श्रेणी से हटा चुकी है। चूंकि यह मुद्दा मौलिक अधिकारों से जुड़ा हुआ था, इसलिए कोर्ट के उस फैसले का संदर्भ अलग था। वह प्रावधान ताजा निर्णय से प्रभावित नहीं होगा।

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