दोनों देशों में एक दूसरे की वस्तुओं पर दस फीसदी टैरिफ लगेगा। चूंकि ट्रंप प्रशासन ने चीन पर मादक पदार्थ फेंटानील भेजने का आरोप लगाते हुए अतिरिक्त शुल्क लगा रखा है, तो फिलहाल अमेरिका में चीनी आयात पर व्यावहारिक टैरिफ 30 प्रतिशत रहेगा।
राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के टैरिफ वॉर को लेकर अमेरिका और चीन के बीच जिनेवा में हुई उच्चस्तरीय वार्ता अपेक्षा से अधिक सफल रही। संभावना जताई गई थी कि बातचीत के पहले चरण में कोशिश आपसी भरोसा बनाने तक सीमित रहेगी। लेकिन दो दिन की वार्ता के दौरान दोनों देश एक- दूसरे के आयात पर शुल्क में भारी कटौती के लिए राजी हो गए। अब दोनों देशों में एक दूसरे की वस्तुओं पर दस फीसदी टैरिफ लगेगा। चूंकि ट्रंप प्रशासन ने चीन पर मादक पदार्थ फेंटानील भेजने का आरोप लगाते हुए उसके दंड के रूप में चीनी वस्तुओं पर 20 प्रतिशत अतिरिक्त शुल्क लगा रखा है, तो फिलहाल अमेरिका में चीनी आयात पर व्यावहारिक टैरिफ 30 प्रतिशत रहेगा। फेंटानील के मुद्दे पर दोनों देश अगले दौर की वार्ताओं में चर्चा करेंगे।
अमेरिका चीन टैरिफ समझौता
इस बात ने ध्यान खींचा है कि चीन ना तो रेयर अर्थ सामग्रियों के निर्यात पर लगाई रोक हटाने पर राजी हुआ है, ना ही अमेरिका से अधिक खरीदारी का वादा उसने किया है। फिर भी ट्रंप प्रशासन उसकी वस्तुओं पर आयात शुल्क को 145 से घटा कर 30 फीसदी करने पर राजी हो गया। खुद अमेरिकी विश्लेषकों ने कहा है कि पलकें पहले ट्रंप ने झपकाईं, और फिर चीन ने भी इसका फायदा उठाया। अमेरिका के रिटेल स्टोर्स खाली हो रहे थे, जिससे वहां चीजों की किल्लत और महंगाई के अंदेशे गहराते जा रहे थे। इससे ट्रंप के मागा (मेक अमेरिका ग्रेट अगेन) समर्थकों में भी बेचैनी देखी जा रही थी।
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इसलिए चीन से लगभग ठप पड़े आयात को फिर से शुरू करना ट्रंप प्रशासन की प्राथमिकता बन जा रही थी। तो चीन से तार जोड़े गए। अब खबर है कि इसकी शुरुआत आईएमएफ की सालाना बैठक के दौरान हुई और फिर जिनेवा वार्ता की पृष्ठभूमि बनी। इस घटनाक्रम का सबक यह है कि उत्पादक अर्थव्यवस्था की किसी देश की ताकत या आत्म-सम्मान का आधार है। चीन अपनी इसी अर्थव्यवस्था के कारण अमेरिका से बराबरी पर वार्ता और सहमति बनाने में सक्षम हुआ है। बाकी देशों के साथ अमेरिका कैसा व्यवहार कर रहा है, यह तो जग-जाहिर है ही।