Naya India-Hindi News, Latest Hindi News, Breaking News, Hindi Samachar

“हवा किस की चल रही है?”

वाराणसी। हवा नहीं है लेकिन गर्मी है। सूरज का पारा चढ़ता हुआ। सबको झुलसाता लेकिन यह बैचेनी और संस्पेंस बनाता हुआ कि मतदान खत्म होने के कगार पर है तो होगा क्या? “ चुनाव है तो टेंपरचर उछलेगा’- मेरे साथी ने कहां। बात सही है लेकिन ऐसी गर्मी में चुनाव का ठंडे दिमाग सत्य बूझना क्या संभव है? पिछले दस दिनों से मैंने लोगों से बार-बार पूछा है कि किसकी हवा चल रही है तो दस दिन घूमने के बाद मेरा अपना क्या जवाब है इस सवाल पर कि हवा किसकी चल रही है?” up assembly election 2022  

हर चुनाव अलग होता है। इसलिए जैसा कि मुझे एक अनुभवी चुनाव विश्लेषक (psephologist) ने कहां कि हर चुनाव को ग्राउंड जीरो से ही बूझना चाहिए। इसलिए यूपी का यह चुनाव पिछले चुनावों से एकदम अलग है। सही है कि सन् 2014 के चुनाव से 2017 का चुनाव बना मगर क्या 2019 से 2022 का बनता हुआ है? भाजपा की माने तो हां, ऐसा ही होगा! मगर ग्राउंड जीरो पर जो छितरा-बिखरा दिख रहा है, गलतियों, अंहकार, अति आत्मविश्वासी सरकार का जैसा चरित्र और चेहरा लोगों के जहन में है उससे तो लगता है इस सबके खिलाफ 2022 में मूड है।   

कोई दस दिन लखनऊ से पूर्वांचल की टूटी-फूटी, धूलभरी सडकों पर घूमते हुए अब आखिरी मुकाम है। तभी अब तक के ज्ञात मूड में पते का निष्कर्ष है कि लोगों का मूड कुल मिलाकर अंदरखाने लिपटा हुआ है। कहते है पूर्वांचल से जीत-हार तय होती है। इसी कारण पार्टियों ने यहां जैसा दम लगाया, प्रतिष्ठा जैसे दांव पर लगी है, मेहनत-कोशिशों के जो धक्के लगे है और जो ऊबाल है वह निश्चित ही पिछले चुनावों से भारी है। पूर्वांचल में सत्तारूढ पार्टी हर तरह से रस्सी पर लडखडाते हुए है मगर विश्वास खोते हुए नहीं।

पूर्वांचल में सब है। गुस्से, असंतोष, हताशा, भय, अनिश्चितता, अंधभक्ति, विश्वास, बिखराव और जातिवाद की तमाम भावनाओं में वोट पडे है। जौनपुर के लड़कों ने नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ की दिवानगी में राष्ट्रवाद योगी तो आएगा की बात कही तो अयोध्या में राम के नाम पर विकास के बावजूद सभी और चौतरफा नाराजगी थी। वही इलाहाबाद में लोगों ने मोदी-योगी सरकार से उम्मीदों का भरोसा जताया। मगर तब यह समझ नहीं आया कि ऐसा है तो शहर में क्यों कम मतदान हुआ? क्या इसलिए कि महंगाई, बेरोजगारी और गंगा के किनारे लोगों के कोविड अनुभव से थके-बूझे लोगों में वोट डालने की इच्छा नहीं बची हुई है?  

फिर कौशांबी और गौरखपुर व गांव-देहात-कस्बों के अनुभव में जात का बार-बार जिक्र। जिंदगी की मुश्किलों का गुस्सा जात के नाम से सुलगा हुआ है जिसे गौरखपुर में लोग बिना राजनैतिक रूझान बताए बताते है लेकिन बनारस और उसके आसपास में बेधड़क बोलते हुए।

up assembly election 2022

Read also काशी में मोदी को खुद लड़ना पड रहा!

मतदाताओं का मूड सीधा-सपाट नहीं है। लोग मन ही मन मुद्दों (अनुभव) को फेटते हुए है। अंदर क्या चल रहा है इसकी साफ तस्वीर नहीं। हालांकि ऊपर से लगता है सब साफ है। भाजपा के लिए मूड पका हुआ है। लेकिन नीचे मूड असंतोष, मोहभंग, गुस्से परत-दर-परत में परिवर्तन की चाहना के साथ। पांच वर्षों का योगी और दो वर्षों का मोदी 2.0 का सफर गंगा में बहुत कुछ बहा चुका है। लोग रोजमर्रा की जिंदगी के मसलों पर बात करते है। किसान के लिए आवारा पशु वह बुरा सपना है जिस पर वह वोट डाल रहा है। घर चलाने वावी गृहणी के लिए एक हजार रू का सिलेंडर और दो सौ रू सरसों तेल का भाव वह चिंता है जिसकी याद में वोट डाल रही है। पढ़े-लिखे डिग्री लिए लड़के-लड़कियों की रोजगार पाने में निराशा और हताशा भी वोट डलावाते हुए है। ब्राह्मण के लिए हिंदुत्व भले राजनीति का नाम है लेकिन वह भी यह सोच परेशान है कि उसे मिला क्या है? ऐसे ही पिछड़ी जातियों में गुस्सा है कि उन्होने मोदी-योगी को जीताया लेकिन सम्मान से बैठाने का व्यवहार भी नहीं मिला। मुसलमान का जहां सवाल है वह बिना बोलते हुए भी अपना गुस्सा, अपनी नफरत को एकमुश्त वोट से बदलता  हुआ है। लबोलुआब कि पांच वर्षों में जातियों और समूहों ने सत्ता-प्रशासन व राजनीति से अपने को आउट पाया और उसकी खदबदाहट ही चुनाव 2022  का ग्राउंड जीरो है। कोई जात खुश नहीं और राजनीति पूरी तरह गैर-समावेशी, मतलब सबका साथ, सबका विकास नदारत। तभी रोजमर्रा की जिंदगी छोटी-छोटी बातों के पहाड़ बनाए हुए है?

पिछले दस दिन मेंरा लोगों से लगातार पूछना रहा कि- कौन बनाएगा सरकार? हवा किसकी चल रही हैं?

बेबाकी से बताऊं, मुझे किसी पार्टी की हवा नहीं लगी। मगर इतना तय कि हवा प्रतिकूल है पर मौन और विनम्र किस्म की। लोगों में भाजपा या समाजवादी पार्टी के प्रति गहरा भावनात्मक लगाव नहीं है। दोनों के कोर वोट अपनी जगह है मगर अप्रतिबद्ध याकि फ्लोटिंग मतदाताओं में कई भावनात्मक मुद्दे है जो दिमाग में हलचल मचाए हुए है। इस हलचल को रोकने-बांधने वाली कोई प्रतिस्पर्धी विचारधारा नहीं है। न शौर है और न कोई जादू। न ही नमक खाने जैसा अहसान। लाभार्थी और नमक से अहसान के वोट प्रतिबद्ध-कोर वोटों का हिस्सा है। इसलिए असली पेंच फ्लोटिंग मतदाताओं की अंडरकरंट का है। यही करंट पार्टियों की गणित बिगाडेगी। बहुमत का हिसाब गडबडा देगी।

पर आएगा तो योगी-मोदी ही।हां, यह तकिया कलाम है मेरे इर्द-गिर्द के सभी पत्रकारों का। मीडियीकर्मियों की हर बहस, फीडबैक आखिरकार इस ब्रह्म वाक्य में चुनाव नतीजा घोषित कर देती है।  कोई किंतु-परंतु नहीं। इसलिए क्योंकि उनके पास पैसा है, पॉवर है। वे सबको खरीद लेंगे!

यह राय इसलिए भी है क्योंकि ये सब सन् 2019 से 2022 का चुनाव मानते है।

बहरहाल, यूपी के मतदाताओं के मूड को बूझने की रिपोर्टिंग अब खत्म है। मुझे गंगा के किनारे बैठे नरेंद्र मोदी की आखिरी वक्त की कोशिशे सुनाई दे रही है। लोग प्रधानमंत्री के लिए तालियां बजा रहे है उन्हे सुन रहे है मगर वह गर्जना नहीं है जो काशी में कभी मां गंगा के बेटे के आने पर गूंजा करती थी। up assembly election 2022

Exit mobile version