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झारखंड में कुड़मी जाति को आदिवासी दर्जा देने की मांग तेज

झारखंड में कुड़मी जाति को अनुसूचित जनजाति (आदिवासी) का दर्जा देने की मांग पर सियासी और सामाजिक गोलबंदी तेज हो गई है। एक ओर जहां कुड़मी समाज के संगठन इस मांग पर झारखंड, ओडिशा और बंगाल में एक साथ आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं, वहीं आदिवासी संगठन इसका कड़ा विरोध कर रहे हैं। हालात सामुदायिक टकराव की ओर बढ़ते दिख रहे हैं।

कुड़मी संगठनों ने इस मांग को लेकर रणनीति बना ली है। बीते हफ्ते दिल्ली के जंतर-मंतर पर हुए विशाल धरने के दौरान ‘रेल रोको-रास्ता रोको’ (रेल टेका-डहर छेका) आंदोलन का फैसला लिया गया। आंदोलन को अनिश्चितकाल तक चलाने की तैयारी है।

संगठनों का कहना है कि जब तक कुड़मी जाति को आदिवासी का दर्जा नहीं मिलता, उनका संघर्ष जारी रहेगा। दूसरी ओर, आदिवासी संगठनों ने सोमवार को रांची में दो अलग-अलग प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस मांग का पुरजोर विरोध किया। पूर्व मंत्री देवकुमार धान, पूर्व शिक्षा मंत्री गीताश्री उरांव और कई अन्य आदिवासी नेताओं ने कहा कि कुड़मी समाज का यह दावा गलत है और आदिवासी हक पर सेंधमारी की कोशिश है।

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उन्होंने आरोप लगाया कि “कुड़मी समाज के नेताओं का मकसद केवल विधायक, सांसद और मंत्री बनने का है, इसके लिए वे आदिवासी समाज के संवैधानिक अधिकारों पर कब्जा करना चाहते हैं।” गीताश्री उरांव ने कहा कि पिछले वर्ष कुड़मी समाज ने पांच दिन तक रेल रोको आंदोलन चलाया, लेकिन एक भी केस दर्ज नहीं हुआ।

उन्होंने कहा, “कुड़मी खुद को शिवाजी महाराज का वंशज और मराठा साम्राज्य से जुड़ा बताते हैं। ऐसे में उन्हें आदिवासी का दर्जा देना संभव नहीं है।” उन्होंने चेताया कि संविधान द्वारा मिले अधिकारों की रक्षा के लिए आदिवासी समाज हर स्तर पर संघर्ष करेगा। इसी क्रम में केंद्रीय सरना समिति ने 20 सितंबर को राजभवन के समक्ष धरना और 17 अक्टूबर को सभी जिलों में उपायुक्त कार्यालय घेराव का ऐलान किया।

समिति की महिला इकाई की अध्यक्ष निशा भगत ने कहा कि आदिवासी भारत के प्रथम नागरिक हैं और उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में बड़ी कुर्बानियां दीं। उन्होंने कहा, “कुड़मी, कुरमी और महतो तीनों एक ही हैं, कभी आदिवासी नहीं थे। यदि इन्हें आदिवासी का दर्जा मिला तो पूरे देश में आदिवासी अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।” इस मौके पर केंद्रीय सरना समिति महासचिव संजय तिर्की, हर्षिता मुंडा, फूलचंद तिर्की, कुंदरसी मुंडा, निरंजना हेरेंज, डबलु मुंडा और लक्ष्मी नारायण मुंडा समेत कई आदिवासी नेता मौजूद रहे।

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