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जयपुर में शोक,पूर्व मंत्री महेश जोशी की पत्नी का निधन, ED की गिरफ्त में आज अदालत में पेशी

महेश जोशी

जयपुर में सोमवार सुबह कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री महेश जोशी की पत्नी कौशल जोशी का दुखद निधन हो गया। वह पिछले कुछ समय से बीमार चल रही थीं और मणिपाल हॉस्पिटल में उनका इलाज जारी था।

महेश जोशी की पत्नी कौशल जोशी के निधन से राजनीतिक और सामाजिक हलकों में शोक की लहर दौड़ गई है। परिजनों, समर्थकों और कांग्रेस पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने गहरा शोक व्यक्त करते हुए उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की है।

इस बीच, महेश जोशी खुद एक बड़े कानूनी विवाद में फंसे हुए हैं। 900 करोड़ रुपये के जल जीवन मिशन (जेजेएम) घोटाले के मामले में महेश जोशी वर्तमान में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की हिरासत में हैं।

आज महेश जोशी की रिमांड अवधि समाप्त हो रही है और उन्हें पीएमएलए (प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट) मामलों की विशेष अदालत में पेश किया गया है।

गौरतलब है कि 24 अप्रैल को ईडी ने महेश जोशी को जल जीवन मिशन घोटाले में मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों के तहत गिरफ्तार किया था।

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गिरफ्तारी के समय ईडी के अधिवक्ता अजातशत्रु मीना ने अदालत के समक्ष एजेंसी का पक्ष रखते हुए महेश जोशी के लिए सात दिन की रिमांड की मांग की थी। हालांकि, विशेष न्यायाधीश सुनील रणवाह ने उन्हें चार दिन की ईडी रिमांड पर भेजा था।

इस मामले में ईडी अब तक कई बड़े नामों को अपनी गिरफ्त में ले चुकी है। महेश जोशी के अलावा पीयूष जैन, पदम चंद जैन, महेश मित्तल और संजय बड़ाया को भी जल जीवन मिशन घोटाले के सिलसिले में गिरफ्तार किया जा चुका है।

प्रवर्तन निदेशालय द्वारा की जा रही पूछताछ में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं, जिनसे सरकारी योजनाओं में बड़े पैमाने पर हुई वित्तीय अनियमितताओं और भ्रष्टाचार की परतें खुल रही हैं।

कुल मिलाकर, एक ओर जहां महेश जोशी को अपने निजी जीवन में पत्नी के निधन का गहरा आघात सहना पड़ रहा है, वहीं दूसरी ओर महेश जोशी पर लगे गंभीर आरोपों के कारण उनके राजनीतिक और सामाजिक जीवन में भी गहरा संकट मंडरा रहा है। आने वाले दिनों में अदालत की कार्यवाही और ईडी की जांच इस मामले की दिशा और दशा तय करेगी।

जल जीवन मिशन में टेंडर घोटाला

‘हर घर नल, हर घर जल’ का सपना साकार करने के उद्देश्य से शुरू की गई केंद्र सरकार की महत्त्वाकांक्षी योजना ‘जल जीवन मिशन’ (JJM) एक बड़े घोटाले की चपेट में आ गई है।

साल 2021 में, श्री श्याम ट्यूबवेल कंपनी और मैसर्स श्री गणपति ट्यूबवेल कंपनी ने जलदाय विभाग (PHED) को गुमराह करते हुए फर्जी अनुभव प्रमाण पत्रों का सहारा लेकर करोड़ों रुपए के टेंडर हासिल किए। (महेश जोशी) इस घोटाले में ठेकेदार पदमचंद जैन और महेश मित्तल की अहम भूमिका सामने आई है।

श्री गणपति ट्यूबवेल कंपनी ने पीएचईडी द्वारा जारी 68 निविदाओं में फर्जी कार्य प्रमाण पत्रों के आधार पर भाग लिया और इनमें से 31 निविदाओं में एल-1 बोलीदाता के रूप में चयनित होकर 859.2 करोड़ रुपए के टेंडर अपने नाम किए।

वहीं श्री श्याम ट्यूबवेल कंपनी ने 169 निविदाओं में भागीदारी करते हुए 73 निविदाओं में एल-1 बोली जीतकर कुल 120.25 करोड़ रुपए के ठेके हासिल किए।

जब इस सुनियोजित फर्जीवाड़े का पर्दाफाश हुआ, तो भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) ने तुरंत कार्रवाई करते हुए जांच शुरू की। जांच के दौरान कई भ्रष्ट अधिकारियों को गिरफ्तार किया गया, जिन्होंने इन कंपनियों को गलत तरीके से लाभ पहुंचाने में मदद की थी।

फर्जी प्रमाण पत्रों से करोड़ों का खेल

इसके बाद प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने भी इस घोटाले में केस दर्ज किया और जलदाय मंत्री महेश जोशी तथा उनके करीबी सहयोगी संजय बड़ाया समेत कई अन्य के ठिकानों पर छापेमारी कर महत्वपूर्ण सबूत जुटाए।

इस सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) ने 3 मई 2024 को विधिवत मामला दर्ज किया। इसके ठीक अगले दिन, 4 मई को ईडी ने अपनी विस्तृत जांच रिपोर्ट, दस्तावेजी सबूतों के साथ, एसीबी को सौंप दी। इस पूरे घटनाक्रम ने न केवल जल जीवन मिशन की साख पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि सरकारी तंत्र में फैले भ्रष्टाचार की गहरी जड़ों को भी उजागर कर दिया है।

अब देशभर की नजरें इस बड़े घोटाले की जांच और इसमें शामिल दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई पर टिकी हुई हैं, ताकि भविष्य में इस प्रकार की अनियमितताओं पर प्रभावी रोक लगाई जा सके।

पांच पॉइंट में समझें, क्या है जल जीवन मिशन घोटाला?

पहला बिंदु: ग्रामीण पेयजल योजना में भ्रष्टाचार

जल जीवन मिशन के तहत सरकार का उद्देश्य था कि हर ग्रामीण क्षेत्र में स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए। इसके लिए राज्य और केंद्र सरकार ने मिलकर इस योजना पर 50-50 प्रतिशत खर्च करने का निर्णय लिया था।

इस योजना के तहत, डीआई डक्टाइल आयरन पाइपलाइन डालने की योजना थी, लेकिन इसके स्थान पर बिना किसी योजना के HDPE (हाई डेंसिटी पॉलीएथिलीन) पाइपलाइन डाली गई, जो गुणवत्ता में कमजोर और अस्थायी होती है। यह बदलाव योजना के उद्देश्यों से मेल नहीं खाता और इसे एक बड़े घोटाले के रूप में देखा गया।

दूसरा बिंदु: पुराने पाइपलाइन की फर्जी रिपोर्टिंग

एक और बड़ी धोखाधड़ी यह सामने आई कि पुरानी पाइपलाइनों को नया बताते हुए सरकारी पैसे में हेरफेर किया गया। ठेकेदारों ने सरकार को यह बताकर रकम ली कि उन्होंने नई पाइपलाइन लगाई है, जबकि असल में पाइपलाइन डाली ही नहीं गई थी। इस प्रकार, सरकारी धन की भारी बर्बादी हुई और यह भ्रष्टाचार की एक बड़ी मिसाल बनी।

तीसरा बिंदु: पाइपलाइन का न डालना और पैसे की हेरफेरी

घोटाले की एक और बड़ी घटना यह है कि कई किलोमीटर तक अभी भी पानी की पाइपलाइन डाली ही नहीं गई है। इसके बावजूद, ठेकेदारों ने जलदाय विभाग के अधिकारियों के साथ मिलकर नकली रिपोर्ट प्रस्तुत की और सरकारी धन की हेराफेरी की। इस घोटाले ने यह साबित कर दिया कि विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत के बिना यह संभव नहीं हो सकता था।

चौथा बिंदु: चोरी के पाइप का उपयोग

एक और घटिया कदम यह था कि ठेकेदार पदमचंद जैन ने चोरी की हुई पाइपों को सरकार से प्राप्त धन से बदलने का काम किया। उन्होंने चोरी के पाइपों को नए पाइपों के रूप में दिखाकर बिछाया और इस धोखाधड़ी के माध्यम से करोड़ों रुपये सरकार से हासिल किए। यह एक खतरनाक साजिश थी, जिसमें साजिशकर्ताओं ने शासन की बेखबरियों का लाभ उठाया।

पाँचवाँ बिंदु: फर्जी कंपनी और सर्टिफिकेट

ठेकेदार पदमचंद जैन ने एक फर्जी कंपनी का सर्टिफिकेट लगाकर टेंडर लिया। अधिकारियों को इस फर्जीवाड़े का पहले से ही पता था, फिर भी उसे टेंडर दिया गया।

इस मामले में यह भी सामने आया कि पदमचंद जैन एक प्रभावशाली राजनेता का करीबी दोस्त था, जिससे उसके खिलाफ कोई भी कार्रवाई करने से बचा गया। इस प्रकार, यह घोटाला केवल ठेकेदारों का नहीं, बल्कि सरकारी अधिकारियों और राजनेताओं की मिलीभगत का भी एक बड़ा उदाहरण है।
(source – dainik bhaskar)

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