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तृणमूल कांग्रेस की संसद में सरकार को घेरने के लिए रणनीति तय

नई दिल्ली। तृणमूल कांग्रेस (Trinamool Congress) बजट सत्र के दूसरे चरण के दौरान एलआईसी (LIC) और एसबीआई (SBI) के जोखिम भरे निवेश, आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि, बेरोजगारी और केंद्रीय एजेंसियों के ‘दुरुपयोग’ जैसे मुद्दों को संसद में उठाएगी।

राज्यसभा में तृणमूल कांग्रेस के नेता डेरेक ओब्रायन (Derek O Brien) ने कहा कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी और पार्टी के अखिल भारतीय महासचिव अभिषेक बनर्जी ने संसद के दोनों सदनों में पार्टी के नेताओं के साथ एक बैठक में सदन को लेकर पार्टी की रणनीति तय की।

सुदीप बंदोपाध्याय लोकसभा में तृणमूल कांग्रेस के नेता हैं। ओब्रायन ने कहा कि एलआईसी का जोखिम भरा निवेश और मूल्य वृद्धि आम आदमी के जीवन और उनकी बचत को प्रभावित करते है और इस मुद्दे को उठाया जाना जरूर है।

ओब्रायन ने कहा कि तृणमूल कांग्रेस संसद में गैर-भाजपा शासित राज्यों के खिलाफ ‘राजनीतिक प्रतिशोध’ का मुद्दा भी उठाएगी और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना (मनरेगा) जैसी योजनाओं के लिए धन रोकने को लेकर केंद्र सरकार से सवाल भी करेगी। उन्होंने कहा कि सत्र शुरू होने से पहले जल्द ही अन्य विपक्षी दलों के साथ भी विचार-विमर्श किया जाएगा।

एलआईसी और एसबीआई द्वारा अडाणी समूह को दिए गए कर्ज को लेकर विभिन्न विपक्षी दलों ने संसद के बजट सत्र के पहले चरण में कई बार हंगामा किया था। कांग्रेस जहां अडाणी समूह से जुड़े आरोपों की संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से जांच की मांग कर रही है, वहीं समाजवादी पार्टी, वाम दलों और द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) जैसे अन्य दलों ने संघीय ढांचे पर कथित हमले और संस्थानों के दुरुपयोग के खिलाफ कड़ा विरोध दर्ज कराया है।

हाल ही में अडानी समूह के शेयरों में उस समय गिरावट आई थी, जब अमेरिका स्थित शॉर्ट सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च ने कंपनी के खिलाफ धोखाधड़ी वाले लेनदेन और शेयर-मूल्य में हेरफेर सहित कई आरोप लगाए थे। गौतम अडाणी इस समूह के अध्यक्ष हैं। समूह ने आरोपों को झूठ बताते हुए खारिज कर दिया और कहा है कि वह सभी कानूनों और आवश्यकताओं का पालन करता है।

संसद में दूसरी सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने महिला आरक्षण विधेयक पेश करने की अपनी मांग को फिर से शुरू कर दिया है। लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में 33 प्रतिशत आरक्षण के लिए विधेयक 2010 में राज्यसभा में पारित हो गया था, लेकिन लोकसभा में इस पर चर्चा नहीं होने के कारण यह निष्प्रभावी हो गया था। (भाषा)

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