लाल किले से संसद: सब कुछ ऐंवे ही है!
चाहें तो इसे नरेंद्र मोदी का पुण्य मानें या पाप जो उनके हाथों सभी का अर्थ, सभी की औकात खत्म है! फिर भले संसद हो, लाल किले पर प्रधानमंत्री के भाषण की रस्म हो या राष्ट्रपति-उप राष्ट्रपति, रक्षा मंत्री, गृह मंत्री, कैबिनेट, मुख्यमंत्रियों के चेहरों या आरएसएस जैसे संगठनों, एनजीओ, देश की आर्थिक-विदेश-समारिक नीति का मामला हो या विश्व में भारत के अर्थ का। सब ऐंवे ही हो गए हैं। गुरूवार को संसद का सत्र खत्म हुआ। और सत्र से संसद का क्या मान बना? सोचें, याद करें 2014 में संसद और उसका काम कैसा था और अब क्या है?...