अमेरिका का कोई भी राष्ट्रपति भारत की राजनीति और समाज में इतनी चर्चा का विषय नहीं बना, जितना डोनाल्ड ट्रंप हो गए हैं। ट्रंप की चर्चा घर घर में है। हर व्यक्ति ट्रंप को जान रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव से पहले जो लोग ट्रंप की जीत के लिए पूजा कर रहे थे वे सब लोग उनको कोस रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि ट्रंप अमेरिका के नहीं भारत के राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री हों और उनकी नीतियों से देश के लोगों की किस्मत तय हो रही हो। उधर ट्रंप भी बाज नहीं आ रहे हैं।
10 मई से लेकर अभी तक यानी 90 दिन में 31 बार कहा है कि भारत और पाकिस्तान के बीच व्यापार की धमकी देकर उन्होंने सीजफायर कराया। वे हर प्रेस कॉन्फ्रेंस में, मीडिया बाइट में या इंटरव्यू में भारत का जिक्र जरूर करते हैं। जैसे पाकिस्तान के साथ व्यापार संधि की जानकारी दी और तेल उत्खनन के करार का जिक्र किया तो वहां भी भारत को ले आए और कहा कि वे उम्मीद करते हैं कि एक दिन भारत को पाकिस्तान तेल बेचेगा। सो, बात चाहे यूक्रेन की हो, चीन की हो या रूस, पाकिस्तान और ईरान की राष्ट्रपति ट्रंप उसमें भारत को जरूर ले आते हैं। भारत के साथ उनका क्या ऑब्सेशन समझना सचमुच मुश्किल है।
इधर भारत में संसद से लेकर सड़क तक डोनाल्ड ट्रंप की चर्चा है। संसद के मानसून सत्र की शुरुआत बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के खिलाफ विरोध प्रदर्शन से हुई थी। लेकिन उसके साथ ही विपक्ष का सरकार से सवाल था कि क्या सचमुच ट्रंप ने भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर कराया? मानसून सत्र के दूसरे हफ्ते के पहले दिन यानी सोमवार, 28 जुलाई को जब पहलगाम कांड और ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा शुरू हुई तो कांग्रेस और तमाम विपक्षी पार्टियों के सभी वक्ताओं ने यह सवाल सरकार से पूछा। दोनों सदनों में करीब 32 घंटे की चर्चा में कई बार यह सवाल पूछा गया कि ट्रंप के दावों पर सरकार जवाब दे। लेकिन सरकार ने स्पष्ट जवाब नहीं दिया। लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेहद छायावादी अंदाज में कहा कि दुनिया के किसी नेता ने जंग नहीं रूकवाई। सवाल है कि दुनिया का कौन सा नेता जंग रूकवाने का दावा कर रहा है? जब सिर्फ एक ही नेता दावा कर रहा है तो दुनिया के किसी नेता की बात करने का क्या मतलब है? सिर्फ ट्रंप युद्ध रूकवाने का दावा कर रहे हैं तो उन्हे एक लाइन में कहना था कि ट्रंप ने युद्ध नहीं रुकवाया।
लेकिन प्रधानमंत्री ने अपने एक सौ मिनट के भाषण में ट्रंप का नाम नही लिया। मंगलवार, 29 जुलाई की शाम को जब प्रधानमंत्री का भाषण चल रहा था तो सोशल मीडिया में लोग मिनट गिन रहे थे कि इतने मिनट हो गए अभी तक प्रधानमंत्री ने ट्रंप का नाम नहीं लिया। भाषण के बीच नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने ललकारा कि प्रधानमंत्री एक बार ट्रंप का नाम लें। लेकिन उन्होंने नाम नहीं लिया। उधर राज्यसभा में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी मोदी की ही तरह छायावादी अंदाज में कहा कि पहलगाम कांड और ऑपरेशन सिंदूर के बाद तक प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति ट्रंप की कोई बात नहीं हुई। सोचें, कहना सिर्फ यह था कि ट्रंप की पहल पर सीजफायर नहीं हुआ। लेकिन उसकी बजाय कई दूसरी बातें कही गईं। इससे ट्रंप के नाम की और ज्यादा चर्चा हो गई। विपक्ष के साथ साथ उसका सोशल मीडिया का इकोसिस्टम भी कहता रहा कि भारत की सरकार ट्रंप का नाम लेने से डर रही है।
इस बीच प्रधानमंत्री के भाषण के अगले ही दिन राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत पर 25 फीसदी टैरिफ लगाने और रूस के साथ कारोबार करने के नाम पर भारत के ऊपर जुर्माना लगाने का ऐलान कर दिया। भारत अभी संभलता और इस पर प्रतिक्रिया देता उससे पहले ट्रंप ने पाकिस्तान के साथ करार का ऐलान किया और भारत व रूस की अर्थव्यवस्था को डेड इकोनॉमी बना दिया। इससे भी कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों को मौका मिला। उन्होंने कहना शुरू कर दिया कि ट्रंप ने सच बोल दिया है। राहुल गांधी ने दावा किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों की वजह से भारत की इकोनॉमी मृतप्राय हो गई है। इसके बाद राष्ट्रपति ट्रंप ने ईरान के साथ कारोबार करने का आरोप में भारत की छह कंपनियों को ब्लैकलिस्ट कर दिया।
सो, चाहे युद्ध और युद्धविराम की बात हो या टैरिफ लगाने की बात हो या दुनिया के चुनिंदा देशों के साथ भारत के कारोबार को नियंत्रित करने का मामला हो, हर जगह राष्ट्रपति ट्रंप मौजूद हैं। आज स्थिति यह है कि संसद में ट्रंप के नाम पर चर्चा हो रही है। संसद परिसर में ट्रंप के नाम पर चर्चा हो है। मीडिया में सिर्फ ट्रंप के बारे में चर्चा है। हर दिन अंग्रेजी के अखबारों में दो से चार पेज तक ट्रंप के ऊपर और ट्रंप की नीतियों के ऊपर खबरें और विश्लेषण छप रहे हैं। आम लोगों के बीच भी ट्रंप की चर्चा ही हो रही है। लोग कयास लगा रहे हैं कि आखिर प्रधानमंत्री मोदी के साथ इतनी दोस्ती थी तो अब झगड़ा किस बात पर हुआ है क्यों मोदीजी इस झगड़े को सुलझा नहीं पा रहे हैं? आखिर मोदी के लिए अमेरिका में ‘हाउडी मोदी’ कार्यक्रम हुआ तो मोदी ने भारत में ट्रंप के लिए ‘नमस्ते ट्रंप’ का आयोजन किया। अमेरिका जाकर यह नारा लगाया गया कि ‘अबकी बार ट्रंप सरकार’ और अब कहा जा रहा है कि कूटनीति की वजह से मोदी अपने भाषण में ट्रंप का नाम नहीं ले रहे हैं! अगर कूटनीति में किसी विश्व नेता का नाम लेना ठीक नहीं माना जाता है तो यह कहां कि कूटनीति थी कि दूसरे देश में जाकर वहां के चुनाव में प्रधानमंत्री प्रचार करे और नेता का नाम लेकर उसको राष्ट्रपति बनाने की अपील करने की हद तक जाए?