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तो पाकिस्तान बना रहा इस्लामी नाटो?

याद करें पांच महिने पहले दुनिया की शतरंज में भारत किस हैसियत में था वही पाकिस्तान क्या था? और अब वैश्विक शंतरज में दोनों देश कहा है? प्रधानमंत्री मोदी उन दिनों डोनाल्ड़ ट्रंप के गले लगते थे? वे खाड़ी देशों के शेखों से उनके राष्ट्रीय सम्मान की मालाएं पहने दिखते थे। तब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल मुनीर को कोई नहीं पूछता था। जबकि अब क्या है? आए दिन अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप भारत को विलेन बताते है। वे पाकिस्तान को आगे बढ़ा रहे है। जनरल नीर को व्हाइट हाऊस में प्राईवेट लंच कराया। उधर चीन ने मई में भारत के आपरेशन सिंदूर के वक्त पाकिस्तानियों की चौडे-धाडे मदद की। राष्ट्रपति शी जिन पिंग और रूस के पुतिन दोनों ने एससीओ की बैठक में शहबाज शरीफ को महत्व दिया। ट्रंप और शी जिन पिंग दोनों की सैन्य परेड में जनरल मुनीर विशेष आमंत्रित मेहमान थे।

ताजा नई अकल्पनीय बात सऊदी अरब का पाकिस्तान के साथ सैन्य करार करना है। सैन्य संधि अनुसार यदि किसी एक देश पर हमला हुआ तो वह दूसरे देश पर भी हमला माना जाएगा? सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने बुधवार को इस रक्षा समझौते पर दस्तखत किए। शहबाज शरीफ के साथ पाकिस्तानी सेना प्रमुख आसीम मुनीर, उप प्रधानमंत्री इशाक डार, रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ, वित्त मंत्री मोहम्मद औरंगजेब और अनेक नेता व अधिकारी सऊदी अरब में थे। इस समझौते के अनुसार जरूरत पड़ने पर पाकिस्तान के परमाणु हथियारों का इस्तेमाल सऊदी अरब भी कर सकेगा।

ध्यान रहे सऊदी अरब, कतर जैसे देश अमेरिका के बड़े साझेदार है। इसका अर्थ है ट्रंप प्रशासन से बात करके पाकिस्तान ने यह संधि की है। जाहिर है नौ सितंबर को कतर की राजधानी दोहा में इजराइल के हमले के बाद अरब देशों में अमेरिका से सुरक्षा की गांरटी का जो भरोसा था वह टूटा है। तभी सऊदी अरब ने पहल कर पाकिस्तान की एटमी छतरी को थामा है तो यह न केवल इस्लामी-अरब देशों की नई सोच का प्रमाण है बल्कि पाकिस्तान का मौके का फायदा उठाना भी है। इसके पीछे उसे जहा चीन का समर्थन होगा तो डोनाल्ड़ ट्रंप भी पाकिस्तान का वैश्विक रोल बनवा रहे है।

सवाल है इससे इजराइल यदि खटका तो मोदी सरकार क्या उसके साथ होगी? या वह सऊदी अरब, कतर, दुबई, यूएई के साथ दोस्ती दिखाती रहेगी? इजराइल का समर्थन करते-करते अलग फिलीस्तीनी देश और कतर पर इजराइली हमले की घटना में भारत के रूख, दुविधा को साफ बताया है। अब ट्रंप प्रशासन ने ईरान के चाबहार बंदरगाह का संचालन करने वाली भारतीय कंपनियों पर 29 सितंबर से प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है। इसका अर्थ है कि रूस के अलावा ईरान के साथ भारत को नत्थी करके उसे अछूत याकि विश्व राजनीति का प्यादा बनाने की पैंतरेबाजी वैश्विक स्तर पर भी है। और यह सब मोदी सरकार की पांच महिनों की बेहूदा सामरिक व कूटनीतिक हरकतों का नतीजा है। मूर्खता का ताजा हैरानी वाला मामला जो भारत ने बेलारूस- रूस के सैनिक अभ्यास में भारतीय सेना का जत्था भी भेजा। योरोप, यूक्रेन सभी तरफ प्रतिक्रिया हुई होगी। योरोपीय संघ की विदेश नीति मामलों की प्रमुख काजा कालास ने भारत की आलोचना में कोताही नहीं बरती।

सबसे खतरनाक बात इजराइल के आंतक में अरब-खाड़ी देशों द्वारा पाकिस्तान की एटमी ताकत को अपनी ताकत बनाना या मानना है। कल्पना करें यदि चीन और अमेरिका के परोक्ष समर्थन से पाकिस्तान इस्लामी बिरादरी का नाटो जैसा सैनिक संगठन बनवा ले और वह मुखिया हो जाए तो भारत कितनी तरह की मुसीबतों में फंसेगा? क्या पांच महिने पहले ऐसी कल्पना कोई कर सकता था?

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By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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