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भारत की बेसिरपैर की कूटनीति

भारत की कूटनीति पिछले कुछ दिनों से बुरी तरह अस्थिर हो गई है। पाकिस्तान के प्रति क्या नजरिया है, अमेरिका के साथ कैसे संबंध रखने हैं, चीन के साथ कैसी कूटनीति होनी है, इन सब पर स्पष्टता नहीं है। पाकिस्तान से आए आतंकवादियों ने जम्मू कश्मीर के पहलगाम में भारत के 26 नागरिकों को उनका धर्म पूछ कर मार डाला। उसके बाद भारत ने सिंधु जल संधि स्थगित कर दी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश भर में घूम घूम कर कहा कि खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते। इसके बाद भारत ने सैन्य कार्रवाई की और पाकिस्तान के साथ तीन दिन तक जबरदस्त युद्ध हुआ। भारत की सेना बहादुरी से लड़ी और पाकिस्तान के कई सैन्य ठिकानों को नष्ट किया। आतंकवादियों का तो पूरा ढांचा की नष्ट हुआ। लेकिन पाकिस्तान का पानी रोकने वाले भारत ने अपनी क्रिकेट टीम भेज दी पाकिस्तान से खेलने के लिए। ऑपरेशन सिंदूर के बाद प्रधानमंत्री कह रहे थे कि उनकी नसों में सिंदूर बह रहा है और भारत-पाकिस्तान मैच के बाद लोग सोशल मीडिया में लिख रहे थे कि प्रधानमंत्री की नसों में अभी क्रिकेट बह रहा है। एक तरफ भारत ने 59 नेताओं और राजदूतों को दुनिया भर में भेजा कि पाकिस्तान को अलग थलग करना है और अब खुद पाकिस्तान के साथ मैच खेल रहा है! यह कौन सी कूटनीति हुई पाकिस्तान को अलग थलग करने की!

ऐसे ही बेसिरपैर की कूटनीति अमेरिका और चीन के मामले में है। अमेरिका ने भारत पर टैरिफ लगाया और भारत पर व्यापार संधि का दबाव बनाया तो उससे मोलभाव करने और समझौता करने की बजाय भारत ने चीन से दोस्ती बढ़ानी शुरू कर दी। क्या ऐसे पल पल में कूटनीति बदलती है? भारत ने ब्रिटेन से मुक्त व्यापार संधि की या यूरोपीय संघ को साथ संधि की वार्ता चल रही है। अमेरिका से दूरी बनी है तो यूरोपीय संघ और ब्रिटेन से दोस्ती बढ़ाना तो समझ में आता है, चीन कैसे भारत का दोस्त हो सकता है? लेकिन दो महीने से कम समय में भारत के रक्षा मंत्री, विदेश मंत्री और फिर प्रधानमंत्री तीनों चीन गए। प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति शी जिनफिंग के साथ दोपक्षीय वार्ता की। सोचें, अमेरिका से भारत का व्यापार फायदे का सौदा है, हम अमेरिका से जितना खरीदते हैं उससे दोगुना उसको बेचते हैं तो उससे दुश्मनी हो जाएगी और चीन, जिससे हमारा व्यापार घाटा है और सीमा का ऐतिहासिक विवाद है उससे दोस्ती हो जाएगी! हम चीन को जितना बेचते हैं उससे लगभग सात गुना उससे खरीदते हैं। उससे भारत का व्यापार घाटा एक सौ अरब डॉलर का है।

पता नहीं यह कूटनीति किसके दिमाग की उपज है कि चीन से दोस्ती दिखा कर अमेरिका पर दबाव डाल देंगे और उसके साथ मनमाफिक संधि कर लेंगे। वास्तविकता यह है कि इस तरह से थाली के बैंगन वाली कूटनीति करके भारत ने अपनी स्थिति बहुत कमजोर की है।  चाहे पाकिस्तान के मामले में हो या अमेरिका और चीन के मामले में भारत की कूटनीतिक लाइन ऊपर नीचे होती रही है। इसे स्वस्थ कूटनीति नहीं कह सकते हैं। देशों के संबंध व्यक्तियों की तरह बात बात में बनते बिगड़ते नहीं रहते हैं।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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