जम्मू कश्मीर के पहलगाम में आतंकवादी हमले और उसका बदला लेने के लिए भारत की ओर से की गई सैन्य कार्रवाई के बाद चार महीने में दूसरी बार पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर अमेरिका के दौरे पर जा रहे हैं। इससे पहले वे जब अमेरिका गए थे तो राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने उनके लिए व्हाइट हाउस में लंच का आयोजन किया था। वे अमेरिकी की सैन्य परेड में भी शामिल हुए थे। बाद में खबर आई कि जिस समय मुनीर अमेरिका में थे उस समय व्यापार वार्ता के लिए गई भारतीय टीम भी वही थी। और भारतीय टीम के सदस्य इस बात को लेकर चिंतित थे कि कहीं ट्रंप ने मुनीर से आमना सामना करा कर हाथ मिलाने के लिए मजबूर कर दिया तो क्या होगा। बहरहाल, वैसा नहीं हुआ। अब मुनीर दूसरी बार अमेरिका जा रहे हैं। इस बार उनके साथ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ भी होंगे। अमेरिका में शरीफ की मुलाकात राष्ट्रपति ट्रंप से होने वाली है।
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री की इस बार की अमेरिका यात्रा कई मायने में बहुत खास है। वे अमेरिका जाने से पहले उसके एक बेहद अहम साझीदार सऊदी अरब के साथ एक बड़ा सैन्य करार करके जा रहे हैं। पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच एक दूसरे की रक्षा के लिए एक अहम सैन्य करार हुआ है। इसमें तय हुआ है कि दोनों देशों में से किसी पर हुआ हमला दोनों पर हुआ हमला माना जाएगा और दोनों देश एक दूसरे की रक्षा करेंगे। बताया जा रहा है कि इस संधि में पाकिस्तान ने अपने परमाणु हथियारों के इस्तेमाल का अधिकार भी सऊदी अरब को दिया है। यह बहुत बड़ी संधि है। चाहे इसे इजराइल की वजह से हुई संधि मानें लेकिन इसका बड़ा असर भारत के ऊपर होगा। सऊदी अरब भारत का मित्र देश है, जबकि पाकिस्तान दुश्मन देश है, जिसके साथ आजादी के समय से ही विवाद चल रहा है। इस संधि के बाद अगर भारत ऑपरेशन सिंदूर जैसी कोई सैन्य कार्रवाई पाकिस्तान के खिलाफ करता है तो सऊदी अरब उसके बचाव में आ सकता है।
इस संधि से पहले कतर की राजधानी दोहा में दुनिया के इस्लामिक देशों के 50 नेता इकट्ठा हुए थे। इनमें पाकिस्तान को काफी तरजीह मिली। उसके अलावा सऊदी अरब, तुर्किए, जॉर्डन, मलेशिया, इंडोनेशिया, मिस्र, फिलस्तीन के साथ साथ ईरान और इराक दोनों शामिल हुए थे। इनके अलावा गल्फ कोऑपरेशन कौंसिल, अरब लीग और ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन के सदस्य भी शामिल हुए थे। इन तीन संगठनों में लगभग सभी मुस्लिम देश जुड़े हुए हैं। भारत के लिए एक अच्छी बात यह मान सकते हैं कि बांग्लादेश और मालदीव जैसे पड़ोसी देश इसमें शामिल नहीं हुए थे। लेकिन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन में 57 इस्लामिक देश शामिल हैं, जिसमें ये देश भी हैं। ओआईसी के इस बैठक में शामिल होने का मतलब ही है कि सारे मुस्लिम देश शामिल हुए।
इस बैठक में अमेरिका के नेतृत्व वाले नाटो जैसा एक इस्लामिक नाटो बनाने का प्रस्ताव भी आया। हालांकि यह अनौपचारिक बातचीत में आया लेकिन इस पर चर्चा शुरू हो गई है। बताया जा रहा है कि मिस्र की ओर से इसका प्रस्ताव किया गया, जिसका समर्थन पाकिस्तान और तुर्किए ने किया। ध्यान रहे कश्मीर के मसले पर तुर्किए का नजरिया वही है, जो पाकिस्तान का है। इसलिए ऐसे किसी संगठन का बनना भारत के लिए भी चिंता की बात हो सकती है। दोहा में हुई बैठक में इस्लामिक नाटो का प्रस्ताव करते हुए मिस्र ने कहा कि इसका मुख्यालय उसके यहां बनाया जा सकता है। बैठक के बाद इस विचार पर चर्चा शुरू हो गई है। गौरतलब है कि नाटो के सदस्य देशों में से किसी के ऊपर हमले का मतलब नाटो पर हमला माना जाता है।
सारे देश मिल कर उसका जवाब देते हैं। इसी तर्ज पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच समझौता हुआ है। एक देश पर हमला दोनों देशों पर हमला माना जाएगा। ऐसे ही अगर इस्लामिक नाटो बनता है तो उसके किसी भी देश पर हमला समूचे इस्लामिक जगत पर हमला माना जाएगा। इजराइल के मसले पर इस्लामिक देशों की एकजुटता का फायदा उठाने की कोशिश पाकिस्तान कर सकता है। ध्यान रहे वह अपने को मुस्लिमों मुद्दों का चैंपियन मानता है और परमाणु शक्ति से संपन्न इकलौता इस्लामिक देश है। आर्थिक रूप से कमजोर और राजनीतिक रूप से विभाजित होने के बावजूद मुस्लिम हितों के नाम पर पाकिस्तान अभी नेता बना हुआ है। भारत से तीन दिन के संघर्ष के बाद उसकी स्थिति पहले से काफी मजबूत हुई है।


