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सुप्रीम कोर्ट का नेपाल के हवाले चेताना!

प्रधानमंत्री मोदी, शाह, डोवाल को तुषार मेहता को बुलाकर समझना चाहिए कि बुधवार के दिन सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के बोलने का क्या अर्थ था? वह हमें नसीहत थी या विपक्ष याकि राहुल गांधी को? आखिर मोदी-शाह तो यह मानने से रहे कि दिल्ली कभी काठमांडू बनेगा! उन्होंने तो दिल्ली को किला बनाया हुआ है। किसानों को दिल्ली में पांव नहीं रखने दिए। वे दिल्ली को भी अंबानी-अडानी की बिल्डिंगों जैसी चमचमाती विकसित राजधानी बना दे रहे हैं। इतना ही नहीं अंबानी-अडानी सहित दरबारी जगत सेठों को देश की जीडीपी का पचास-साठ प्रतिशत मालिक बना कर हिंदुओं में स्थायी तौर पर खैरात-रेवड़ियां बटवाने का बंदोबस्त भी हो रहा हैं। क्या जजों ने देखा नहीं कि अडानी ने कैसे भूखे हिंदू भक्तों के लिए कुंभ, पुरी में लंगर खोले थे। सो, विकास का जब ऐसा अमृतकाल है तो सुप्रीम कोर्ट को हिंदुओं के कल्कि अवतार पर गर्व करना चाहिए या यह नसीहत देनी चाहिए कि, ‘हमें अपने संविधान पर गर्व होना चाहिए, देखिए पड़ोसी देशों में क्या हो रहा है। नेपाल में तो हम देख रहे हैं’। और फिर जस्टिस विक्रम नाथ ने और जोड़ा कि, ‘हां, बांग्लादेश भी’।

आपको क्या पता है कि दोनों जजों ने यह टिप्पणी सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता याकि सरकार द्वारा नियुक्त गर्वनरों की निर्वाचित प्रदेश सरकारों पर मनमानी के मामले में सुनवाई के दौरान की थी। सीजेआई ने कहा कि सिर्फ आंकड़ों से निष्कर्ष निकालना उचित नहीं है। अगर राज्यों के दिए आंकड़े नहीं माने गए तो आपके भी नहीं माने जाएंगे। इस मामले पर पांच जजों की संविधान पीठ की सुनवाई में जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदुरकर थे।

यह मामला अपने आपमें राजपक्षे, हसीना और ओली की अंहकारी शासन शैली से वैयक्तिक सनक में शासन का देशी उदाहरण है। यही पूरे दक्षिण एशिया की खूबी है। नेपाल में ओली-प्रंचड ने खुद नया संविधान बनाया। मगर उस अनुसार सामूहिक लीडरशीप का शासन नहीं रचा। ओली की ख्याति चतुर, तिकड़मी और सत्ता के लिए किसी भी हद तक जाने की थी। उन्होंने राष्ट्रभक्ति, राष्ट्रवाद का हल्ला बना कर लोगों को उल्लू बनाया। मधेशियों के खिलाफ राजनीति की। विपक्ष को प्रताड़ित किया। स्वाभाविक था जो भ्रष्टाचार फैला। नौकरशाही का बोलबाला बना। और सोशल मीडिया की छोटी-छोटी चिंगारियों से नौजवानों में भावनाओं का भभका बना।

हैरानी है जो काठमांडू में कम्युनिस्ट सरकार के पक्ष में उनके भक्त, उनका काडर सड़क पर नहीं आया। इसलिए क्योंकि व्यक्तिवादी, अहंकारी, बार-बार प्रधानमंत्री बन जाने वाला नेता धीरे-धीरे पैसे, प्रबंधन, धमकाने-डराने, प्रोपेगेंडा से सत्ता ही जीता है वह अपनी सत्ता, अपनी भूख में चौबीसों घंटे खोए रहता है। सत्ता के इकोसिस्टम का बंधक होता है। दुनिया में और भी देशों में पोपुलिस्ट नेता है। लेकिन आसियान देशों के नेता हो या तुर्की, खाड़ी देशों और लातिनी देशों की सरकारें, सभी की बुनावट दक्षिण एशियाई देशों के डीएनए जैसी नहीं है।

गौर करें, बगल के आसियान देशों पर। नौजवानों की स्कूली-कॉलेज पढ़ाई सख्ती से है। मुझे नहीं लगता कि नरेंद्र मोदी की तरह आसियान या खाड़ी देशों में कोई प्रधानमंत्री हर साल स्कूली बच्चों का भाषण दे कर रिझाने के कार्यक्रम करता है। वे भाषणों से नहीं, बल्कि देश की युवा शक्ति की चिंता में, दुनिया में कंपीटिशन की कसौटी में पूरा ध्यान सस्ती लेकिन मेहनत भरी शिक्षा, कठोर परीक्षा से बच्चों को काबिल, बनाने पर देते हैं। इसलिए पिछले दस सालों का तुलनात्मक फर्क है जो वियतनाम, आसियान की जनरेशन जेड उत्पादकता के साथ देश के अवसरों में योगदान देते हुए है, जबकि मोदी के भारत में जनरेशन जेड सोशल मीडिया की बेहूदगियों, बेगारी और अवसरों के लिए भटकते हुए टाइमपास कर रही है। इसका सत्य यदि समझना है तो भारत की एक्स, वाई, जेड पीढियों के सरकारी नौकरी या कंपीटिशन देने के लिए ट्रेनों में भेड़-बकरियों की तरह की आवाजाही वाली तस्वीरे देखें। दुनिया में ऐसे नजारे कहीं नहीं मिलेंगे। इन युवाओं की नियति झांसे व झूठ में जीना है। और अंत में यह सुनना है कि ट्रंप की साजिश है! राहुल गांधी उकसा रहे हैं।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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