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12 अक्टूबर को मनाया जाएगा विजयदशमी का पर्व दशहरा

Dussehra 2024

Dussehra 2024: शनिवार, 12 अक्टूबर को दशहरा का पावन पर्व है, इस दिन विशेष रूप से भगवान श्रीराम की पूजा अर्चना करनी चाहिए। श्रीराम के साथ लक्ष्मण, माता सीता और हनुमान जी की प्रतिमाओं को भी पूजा में शामिल करना शुभ माना जाता है। श्रीराम का पूजन करने के साथ उनकी नीतियों को जीवन में अपनाने से व्यक्ति को सफलता, सुख, और शांति प्राप्त हो सकती है। श्रीराम के जीवन से यह सीख मिलती है कि कठिनाइयों का सामना किस तरह धैर्य और संयम से करना चाहिए।

जिस दिन श्रीराम का राज्याभिषेक होने वाला था, उससे ठीक एक रात पहले माता कैकयी ने राजा दशरथ से अपने दो वरदान मांग लिए पहला भरत को राजगद्दी और दूसरा राम को 14 वर्षों का वनवास। एक ही रात में अयोध्या का पूरा दृश्य बदल गया। जहां उत्सव की तैयारियां चल रही थीं, वहीं अगले ही दिन अयोध्या के लोग श्रीराम के वनवास जाने से अत्यंत दुखी थे। यह घटना हमें यह सिखाती है कि जीवन में उतार-चढ़ाव स्वाभाविक हैं, लेकिन सही दृष्टिकोण और साहस से उनका सामना किया जा सकता है।

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ऐसे हुआ था राम जी को वनवास

सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन रात में मंथरा ने कैकयी की बुद्धि को दूषित कर दिया। मंथरा ने अपनी बातों से कैकयी को इतना प्रभावित कर दिया कि वह भरत के लिए राजपाठ और राम को वनवास भेजने के लिए तैयार हो गई। कैकयी ने जिद करके राजा दशरथ से अपने दोनों वरदान मांग लिए, और दशरथ को मजबूर होकर उसकी इच्छाएं पूरी करनी पड़ीं।

जब दशरथ ने राम को बुलाकर यह बातें बताईं, तो श्रीराम ने धैर्यपूर्वक सबकुछ सुना और बिना किसी विरोध के अपने पिता के वचन को पूरा करने के लिए खुशी-खुशी वनवास स्वीकार कर लिया। जब राम वनवास की तैयारी करने लगे, तब राजा दशरथ ने एक बार फिर कैकयी को समझाने की कोशिश की और कहा कि वह राम को वनवास जाने से रोक ले, लेकिन कैकयी अपने निर्णय पर अडिग रहीं।

राम जब वनवास के लिए जाने लगे, तो लक्ष्मण और माता सीता भी उनके साथ चल दिए। इस घटना ने यह सिद्ध किया कि श्रीराम ने अपने पिता के वचनों का पालन करते हुए, जीवन की कठिन परिस्थितियों को धैर्य और समर्पण के साथ स्वीकार किया, जो हर किसी के लिए एक प्रेरणा है। (Dussehra 2024)

श्रीराम की सीख

श्रीराम ने इस प्रसंग में संदेश दिया है कि हमें मुश्किल परिस्थितियों के लिए तैयार रहना चाहिए। राम ने सकारात्मक सोच के साथ नई परिस्थितियों के स्वीकार किया और वनवास चले गए। हमें एक बात ध्यान रखनी चाहिए कि जैसा हम सोचते हैं, वैसा ही हो, ये जरूरी नहीं है। कभी-कभी हमारी सोच से अलग बातें हो जाती हैं, हमें उन विपरीत बातों को भी सकारात्मकता के साथ अपनाना चाहिए, तभी जीवन में सुख-शांति के साथ ही सफलता भी मिल सकती है।

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