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शनिश्चरी अमावस्या पर विधि-विधान से करें पूजा, पितृ होते हैं प्रसन्न

Prayagraj, Jan 14 (ANI): Saint Jagadguru Shankaracharya Swami Avimukteshwarananda Saraswati Maharaj takes second 'Amrit Snan' at 'Triveni Sangam' on the occasion of Mauni Amavasya during the ongoing Maha Kumbh Mela 2025, in Prayagraj on Wednesday. (ANI Photo)

भादो की अमावस्या शनिवार (23 अगस्त) को पड़ रही है, इसलिए इसे शनिश्चरी अमावस्या भी कहा जाता है। दृक पंचांग के अनुसार अमावस्या 11 बजकर 35 मिनट तक रहेगी।

मान्यतानुसार इस दिन पितरों का तर्पण करने से कई कष्टों से मुक्ति मिलती है। चूंकि ये शनिश्चरी है, तो इसलिए शनि महाराज और पितृों की समान रूप से पूजा अर्चना की जाती है। पूर्वजों की आत्मा की तृप्ति हेतु अमावस्या के सब दिन श्राद्ध की रस्मों को करने के लिए उपयुक्त हैं। कालसर्प दोष निवारण की पूजा के लिए भी अमावस्या का दिन उपयुक्त होता है। अमावस्या को अमावस या अमावसी के नाम से भी जाना जाता है।

अमावस्या को ही इष्टि अनुष्ठान भी संपन्न किया जाता है। हिंदू कैलेंडर में इष्टि एवं अन्वाधान का जिक्र है। अन्वाधान अनुष्ठान का विधिवत समापन इष्टि पर होता है। संस्कृत में अन्वाधान का अर्थ अग्निहोत्र (हवन या होम) करने के बाद पवित्र अग्नि को जलाए रखने के लिए ईंधन जोड़ने की एक परंपरा है। इस दिन, वैष्णव एक दिन का उपवास रखते हुए इस क्रिया को करते हैं।

इष्टि, जैसा कि नाम से अर्थ स्पष्ट होता है, इच्छा से जुड़ा है। यह एक ऐसा अनुष्ठान है जिसे भक्त अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए ‘हवन’ की तरह आयोजित किया करताे हैं।यह कुछ घंटों तक चलता है। शनि अमावस्या के दिन इसका भी योग है।

वहीं, अगर कोई शुभ कार्य करना चाहते हैं तो राहुकाल का खास ध्यान दें, इस समय कोई शुभ कार्य नहीं करने चाहिए। राहुकाल प्रातः 9 बजकर 9 मिनट से 10:46 (प्रातः) तक रहेगा। चन्द्रमा सिंह राशि में संचार करेंगे और सूर्योदय 05:55 प्रातः और सूर्यास्त 06:52 सायं होगा।

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हिन्दु कैलेण्डर में इष्टि एवं अन्वाधान महत्वपूर्ण घटनायें मानी जाती हैं। हिन्दु धर्म के अनुयायी, विशेषतः वैष्णव सम्प्रदाय के अनुयायी, अन्वाधान के दिन एक दिवसीय उपवास का पालन करते हैं तथा इष्टि के दिन यज्ञ सम्पन्न करते हैं।

इष्टि एवं अन्वाधान की तिथियों को ज्ञात करने के विषय में विद्वानों के भिन्न-भिन्न मत प्रचलित हैं, जिसके कारण धर्म अनुयायियों के मध्य अनावश्यक सन्देह की स्थिति उत्पन्न होती है। द्रिक पञ्चाङ्ग के पण्डित जी ने इष्टि एवं अन्वाधान की व्यापक रूप से स्वीकृत तिथियाँ प्रदान की हैं, जो अधिकांश अनुयायियों हेतु मान्य होंगी।

अमावस्या तिथि को पवित्र नदी में स्नान करना बहुत शुभ माना जाता है। ज्यादा से ज्यादा पूजा-पाठ करनी चाहिए जबकि इस मौके पर कोई भी नया काम नहीं करना चाहिए। शनिश्चरी अमावस्या को लेकर मान्यता है कि जो लोग इस दिन सच्चे भाव से भगवान शनि की पूजा करते हैं और गंगा स्नान करते हैं, उनके सभी पापों का नाश हो जाता है।

शनि अमावस्या के दिन सुबह स्नान करने के बाद पितरों की तस्वीर के सामने दीपक जलाकर भोग अर्पित करना अच्छा माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस उपाय को करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और उनकी कृपा प्राप्त परिवार के सदस्यों को प्राप्त होती है। 

धार्मिक मान्यता है कि पीपल के पेड़ में पितरों का वास होता है। ऐसे में शनि अमावस्या को पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाकर पेड़ की परिक्रमा करने से पितृ दोष से छुटकारा मिलता है और आर्थिक तंगी दूर होती है। वहीं इस दिन घर के मुख्य द्वार पर दीपक जलाने से नकारात्मक ऊर्जा का शमनहोता है और घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

Pic Credit : ANI

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