नई दिल्ली। संवैधानिक विवाद का कारण बने सुप्रीम कोर्ट के दो जजों के फैसले पर 10 दिन की सुनवाई के बाद संविधान बेंच ने फैसले सुरक्षित रख लिया है। इस साल अप्रैल में दो जजों की बेंच ने विधानसभा से पास विधेयकों को मंजूरी देने की डेडलाइन तय कर दी थी। अदालत ने कहा था राज्यपालों और राष्ट्रपति को विधानसभा से पास विधेयकों पर तीन महीने के भीतर फैसला करना होगा। इस पर राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 143 के तरह रेफरेंस भेजा है। इस फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर चीफ जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने सुनवाई की है।
गुरुवार को सुनवाई के आखिरी दिन सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कोर्ट को यह साफ करना चाहिए कि आठ अप्रैल को दो जजों की बेंच का राष्ट्रपति और राज्यपाल की मंजूरी की डेडलाइन तय करने का फैसला सही नहीं है। उन्होंने कहा, ‘अगर उस फैसले को ही सही माना गया तो भविष्य में बड़ी संख्या में याचिकाएं अदालत में दाखिल होंगी और न्यायपालिका पर बोझ बढ़ेगा’।
दूसरी ओर वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और अरविंद दातार ने केंद्र के इस तर्क का विरोध किया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति ने इस बारे में कोई सवाल नहीं पूछा, इसलिए सुप्रीम कोर्ट को इस मुद्दे पर विचार नहीं करना चाहिए। चीफ जस्टिस बीआर गवई के साथ इस पीठ में जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंद्रचूड़कर शामिल थे। सुनवाई 19 अगस्त से शुरू हुई थी। सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र सरकार का पक्ष रखा। वहीं, विपक्ष शासित राज्य तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, केरल, कर्नाटक, तेलंगाना, पंजाब और हिमाचल प्रदेश ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समर्थन किया।